“””मज़दूर माँ””
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यह मज़दूर माँ है,
क्यूँ ये मजबूर माँ है,
आंचल में दूध नही है,
किस्मत जैसे रुठ गई है,
लाल को गोदी में भरकर,
बैठ जाये कहीं थक कर,
फिर चलती जाए,
धूप में तप कर,
पल्लू से बेटे पर छाया करतीं,
अपने छालो की परवाह न करती।
इस माँ ने ही सरकार बनाई थी,
दिल मे कुछ उम्मीद जगाई थी।
जो आये थे जो वोट मांगने,
अब वो सब कहाँ है?
देखती आगे पीछे,
वो मज़दूर माँ है,
क्यूं ये मज़बूर माँ है।
खाने को मजबूर माँ है।
दिल से मजबूत माँ है,
अपनी चिंता नही है इसको,
आंखे भर आती,
जब बच्चा भूखा रोता,
कभी उठ जाए,
फिर पानी पीकर सोता।
गठरी में थोड़ा सत्तू है,
पानी मिल जाये इसे बनाऊ,
कुछ मैं खाऊं,
फिर इसको दूध पिलाऊँ।
पसीने से लथ पथ है,
चलती जाए,
यह ही अग्नि पथ है,
बच्चे को स्नान कराऊँ,
नदी कितनी दूर कहां है?
यह मज़दूर माँ हैं,
क्यूँ मज़बूर माँ है।
यह बेटा ही इसका सपना है,
यह ही इसकी दौलत है
सब कुछ यह ही अपना है,
देखकर इसके गर्म हाथ,
हो गई वो आत्म घात,
कभी पत्ते तोड़े,
रखे सर पर,
बैचेन होकर देखे वो,
ठंडी मिट्टी का लेप कहाँ है।
ऐसी वो मज़दूर माँ है।
क्यूँ तू मज़बूर माँ है।।
लेखक
नरेंद्र राठी
सदस्य- अखिल भारतीय कांग्रेस
सदस्य-परमर्शदात्री समिती,
उत्तर रेलवे(भारत सरकार)