छत्तीसगढ़ का पूरा बस्तर डिवीजन का ओडीएफ मतलब खुले में शौच से मुक्त होना राज्य के लिए गौरव की बात है. लेकिन चंद दिनों में ही शौचालय निर्माण से जुड़ी योजनाएं ज्यादातर इलाकों में धरी की धरी रह गई. इसका मुख्य कारण शौचालय के इस्तेमाल के लिए पानी का ना होना है.
बस्तर के एक बड़े हिस्से में ना तो नल जल योजनाओं का विस्तार हो पाया और ना ही आबादी के अनुसार हैण्ड पम्प लगे हैं. इसके चलते पानी के लिए ज्यादतर लोगों को सुबह से लेकर रात तक दो चार होना पड़ता है. उनकी प्राथमिकता तय हैं, पहले पीने के लिए पानी फिर खाना बनाने और बर्तन साफ़ करने के लिए, इसके बाद कपड़े धोने और फिर शौच के लिए पानी की जरुरतें तय हैं. शौचालय के लिए पानी उनकी अंतिम आवश्यकता है. यह बात ग्रामीण इलाको में साफ़ तौर पर दिखाई देती है.
एक बड़ी आबादी घरों में शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच की राह पकड़ती है. शहरी इलाकों में पानी का बंदोबस्त जितना पुख्ता है उतनी ही लचर हालत ग्रामीण इलाकों की है. लोग जंगल, पहाड़ी इलाकों, झरनों, तालाबों और कुओं से पानी ला कर गुजारा करते हैं. ऐसे में ODF योजना के औचित्य पर सवालिया निशान लग गया है.
शौचालय है, पानी नहीं
छत्तीसगढ़ के बस्तर में आधा दर्जन जिले ODF घोषित कर दिए गए हैं. सरकार का दावा है कि तमाम आदिवासी इलाकों में सौ फीसद घरों में शौचालय बनाये गए हैं. लेकिन शौचालय बन जाने के बावजूद कई लोग घरों से बाहर शौच के लिए जा रहे हैं. उन्होंने कई बार अपने घरो में बने टॉयलेट में शौच के लिए जाने की कोशिश की लेकिन दिन भर परेशान रहे क्योंकि घर में पानी नहीं था. इसके चलते खुले में शौच में जाने के बाद ही उन्हें राहत मिल सकी.
दरअसल बस्तर के ज्यादातर इलाके कागजों में ही ODF घोषित हैं. हकीकत में इन्हें ODF की स्थिति में आने में लम्बा अरसा लग सकता है क्योंकि जब तक गांव में वाटर सप्लाई लाइन नहीं आएगी, पर्याप्त हैण्ड पम्प नहीं लगेंगे, तब तक लोग खुले में शौच जाते रहेंगे. जगदलपुर से बाहर जाते ही हाथ में पानी का डिब्बा लिए लोगों को देखा जा सकता है. उनसे पूछने पर उनकी दलील भी गौरतलब होती है. ग्रामीण साफ़ तौर पर कहते हैं कि शौचालय के लिए आखिर पानी कहां से लायें, बड़ी मुश्किल से पीने के पानी का जुगाड़ हो पाता है.
बस्तर के विधायक और बस्तर विकास प्राधिकरण के सदस्य संतोष बाफना के मुताबिक सरकार हर सम्भव प्रयास कर रही है कि लोगों को पर्याप्त पानी मुहैया हो सके. उनके मुताबिक ग्रामीणों की सोच में तेजी से बदलाव आ रहा है और वे शौचालय का इस्तेमाल करने लगे हैं. हालांकि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
जिलों को मिला प्रमाण पत्र
छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा, सुकमा, कोंडागांव और बीजापुर को ODF जिला घोषित करने के बाद प्रशासन ने ना केवल राहत की सांस ली बल्कि इस बात को लेकर अपनी पीठ भी थपथपाई. इन तमाम जिलों को ODF प्रमाण पत्र मिला और राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने चारों जिलों के कलेक्टरों को शाबाशी भी दी थी.
प्रशासन इस माथापच्ची में जुटा है कि आखिर कैसे ग्रामीणों की आदतों में सुधार लाया जाए, उन्हें घर में ही शौच के लिए ताकीद की जा रही है. लेकिन पानी का बंदोबस्त करने के मामले में अफसर चुप्पी साध लेते हैं. उनकी दलील है कि देर से ही सही ग्रामीण पानी लाएं और उसे अपने घर में सहेज कर रखें. अब ODF की हकीकत बताने पर अफसर जांच की बात कह रहे हैं.
आधी आबादी की मजबूरी
बस्तर डिवीजन को ODF घोषित करने के लिए सरकार ने पूरा जोर लगाया. कलेक्टरों को टारगेट फिक्स कर जल्द से जल्द उनके इलाकों को ODF घोषित करने के लिए दबाव डाला गया. कलेक्टरों ने भी सरकारी आदेशों का पालन करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. उन्होंने ना तो नल-जल योजनाओं के विस्तार की ओर ध्यान दिया और ना ही एक बड़ी ग्रामीण आबादी को सहजता से पानी मुहैया हो, इसका कोई प्रबंध नहीं किया. नतीजतन सौ दो सौ नहीं बल्कि आधी से ज्यादा आबादी अभी भी खुले में शौच को जा रही है. इसके चलते शौचालय निर्माण की कवायद धरी की धरी रह गयी. यही नहीं इन इलाकों के ODF घोषित करने के औचित्य पर भी सवालिया निशान लगने लगा है.