कोर्ट ने सीबीआई जांच पर लगाई रोक,त्रिवेंद्र सरकार को बड़ी राहत

मुख्यमंत्री उत्तराखंड त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाईकोर्ट के CBI जांच के आदेश पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई है। जानकारी के अनुसार सुप्रीकोर्ट इस फैसले की समीक्षा करेगा। उसके बाद ही मामले में आगे की कार्रवाई की जाएगी। तब तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाएगी। त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाईकोर्ट के CBI जांच के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।

 2015-16 में झारखंड के बीजेपी प्रभारी रहते हुए उन्होंने वहां के एक व्यक्ति से 25 लाख रुपये की रिश्वत अपने नाते रिश्तेदारों के बैंकखातों के जरिये ली। इस मामले की एसआईटी जाँच में इन आरोपों को निराधार पाया गया है। उल्टा, इस मामले में हरेंद्र रावत नाम के जिस व्यक्ति की पत्नी के खाते में पैसा डाले जाने के आरोप लगाए गए थे, उसने ही नेहरू कॉलोनी थाने में आरोप लगाने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया था। इस मुकदमे में हाईकोर्ट का फैसला आया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कोर्ट के सीबीआई जांच वाले आदेश का सम्मान करने की बात कही है। कोर्ट के इस आदेश से जांच होने पर दूध का दूध-पानी का पानी हो जाएगा
लेकिन ये भी सोचना होगा कि निजी स्वार्थ के चलते कैसे कुछ राजनेता और भ्रष्टाचारी प्रदेश की छवि तक दांव पर लगा देते हैं। जरा सोचिये! 5 साल पुराने ऐसे मामले में जो उत्तराखंड में घटित नहीं हुआ उसके बूते कैसे उत्तराखंड में सियासी अस्थिरता फैलाने की कोशिशें हो रही हैं। उस समय त्रिवेंद्र भाजपा के झारखण्ड प्रभारी थे। सवाल यह है कि जब तक त्रिवेन्द्र मुख्यमंत्री नहीं थे तो तब तक ये मुद्दा क्यों नहीं उठाया गया। तब उनके खिलाफ झारखंड या उत्तराखंड में मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया गया। उस वक़्त तो वे सीएम नहीं थे, आसानी से उन पर कार्रवाई हो सकती थी। ऐसा इसलिये नहीं किया गया क्योंकि त्रिवेन्द्र के खिलाफ पुलिस कार्रवाई नहीं बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाना असल मकसद है।
उत्तराखंड की कमान फिर से भ्रष्टाचारियों को सौंपना इनका उद्देश्य है। इस पॉवर गेम में उत्तराखंड सुर्खियों में है। राज्य की छवि दांव पर है। जनता के मुद्दे हाशिये पर है। विकास की गति प्रभावित हो रही है। काश! ये बात विघ्नसंतोषियों की समझ में आती।