कश्मीर राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक है – जतिन कुमार

पश्चिमी दिल्ली –  कश्मीर राजनीतिक शास्त्र अथवा इतिहास का विषय नहीं अपितु इस राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक है । लेकिन बहुत कष्ट होता है जब युवा पीढ़ी में पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए कश्मीर के विषय में जानकारी का अभाव देखते हैं। जानकारी बिना उनके हृदय में कश्मीर के उस भूभाग को पुनः प्राप्त करने का उत्साह हिलोरे नहीं ले सकता। यह शब्द है दिल्ली प्रांत सह प्रचारक जतिन कुमार के जो जम्मू कश्मीर पीपल फोरम की दिल्ली शाखा की ओर से विकास पुरी के आर्य समाज मंदिर सभागार में आयोजित संकल्प दिवस समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे ।
श्री  कुमार  ने कश्मीर की भौगोलिक स्थिति और विलय से संबंधित प्रावधान की विस्तार से चर्चा करते हुए दोहराया कि पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। 22 फरवरी 1994 को संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव जब जन जन की आवाज बनकर गूंजेगा तो दुनिया की कोई शक्ति इतिहास की भूल सुधारने से नहीं रोक सकती । उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन की बात करने वालों से पूछा कि 1947 से वहां रह रहे विस्थापितों के मानवाधिकार कहां है?  जम्मू कश्मीर में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान क्यों नहीं ? अनुसूचित जाति जनजातियों को आरक्षण अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने वाले राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर में आरक्षण ना होने पर मौन क्यों हैं?  एक षड्यंत्र के तहत कश्मीर घाटी से निष्कासित किए गए विस्थापितों के मानवाधिकार की आवाज क्यों नहीं उठती । उन्होंने प्रबुद्ध श्रोताओं से संसद के प्रस्ताव को अपनी चर्चा संवाद का अंग बनाने की अपील करते हुए जम्मू कश्मीर पीपल फोरम को ऐसे आयोजनों के लिए साधुवाद दिया!
इस कार्यक्रम में मरणोपरांत कीर्ति चक्र प्राप्त मेजर अविनाश सिंह की पत्नी कैप्टन शालिनी सिंह और कीर्ति चक्र प्राप्त शहीद विशाल भन्दराल के पिता  दिलीप भंदराल भी उपस्थित थे। इस अवसर अनेक गणमान्य उपस्थित थे ।