या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

स्त्री ह्रदय

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अक्सर यह कहा बोला सुना जाता है की स्त्री के मन को तो ईश्वर भी नहीं समझ सकता पर स्त्री के मन को समझा जा सकता है ;अगर समझने की चाह हो तो स्त्री के मन में किसी भी घटना, दृश्य को लेकर जिस तरह के विचार आते हैं वह बड़े-बड़े साहित्यिक लोगों के मन में आते हो यह जरूरी नहीं है!वह एक दृश्य के कई मतलब कई भागों से कई रिश्तो के माध्यम से समझती है अगर मैं अपने पौराणिक कथाओं की बात करें तो द्रौपदी सिर्फ पांडवों की पत्नी की तरह से नहीं एक सशक्त स्त्री की तरह से देखी जाती है ,और हम देखें तो उसने हर अधर्म की बात पर अपनी बात कही है। इसी तरह से जानकी ने भी अपनी यात्रा को कितने भाव के माध्यम से कहा है। समाज में जब भी स्त्री कुछ नया करती है कुछ अलग करती है तो तरह-तरह के लोग उसको परेशान करते हैं उसे पीछे हटने के लिए कहते हैं ,उसको अपने मन के भाव नहीं कहने के लिए कहते हैं ।
यह गलत है ,यह कई बार जताया जाता है ,पर मेरी कोशिश है कि मैं अपनी कला के माध्यम से स्त्री मन को पढ़ सकूं और लोगों तक पहुंचा सकूं जरूरी नहीं है कि बहुत पढ़ी लिखी हो एक साधारण सी महिला भी जिस तरह के विचार रखती है अगर समाज में रखी जाए तो समाज की यह दुर्दशा हो रही है , वह रोकी जा सकती है,
मेरी सोच है की कला एक सशक्त माध्यम है अपनी बात अपने विचार लोगों तक पहुंचाने का यह बहुत आसान नहीं है क्योंकि इससे पहले बहुत सारे मंथन से स्वयं को निकालना पड़ता है ।
कि क्या सही रहेगा क्या नृत्य की शास्त्रीय शैली में आता है ?क्या विचार कहना किसी को दुखी तो नहीं करेगा? किसी की भावनाओं को आहत तो नहीं करेगा? उसको नृत्य में संगीत के साथ कहना एक जटिल प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया सिर्फ 1 दिन में खत्म होने वाली नहीं है इसके लिए हर रोज खुद के द्वारा किया गया पिछला और आगे आने वाला सुधार लाना पड़ता है !
अपनी गलतियां किस तरह से सुधारी जाए और सुंदर रूप में प्रस्तुत करें या एक कलाकार ही जान सकता है कई बार ऐसा होता है कि सुबह कब हो जाती है? विचारों में समझ नहीं आता है।
उसके बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपके द्वारा किया गया कला प्रदर्शन कोई महान प्रस्तुति बने मैं अक्सर अपनी प्रस्तुतियों में कोशिश करती हूं ,की समाज में जो भी चल रहा है या कोई प्रश्न जो सदियों से मन में है ,उसका उत्तर या निवारण कला के माध्यम से निकाला जा सके, कई बार यह दर्शकों द्वारा सराहा भी जाता है कई बार कलाकार होने के नाते नहीं भी सराहा जाता है जोकि बहुत अच्छा है क्योंकि जब तक कला को निंदक भी नहीं मिलते तब तक समझ लीजिए आपके द्वारा किया गया कार्य लोगों में लोकप्रिय नहीं हुआ मेरे राम वही सोच है, जो सिर्फ स्त्री और स्त्री ही समझ सकती है।