अपने स्वरूप का अनुसंधान ही ध्यान है – श्रीस्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज

11 जून, 2018। गीता शिक्षक शिविर के दूसरे दिन प्रातः कालीन सत्र में शिविरार्थियों द्वारा श्रीमद्भगवत गीता के आठवें अध्याय पर आधारित ‘ब्रह्म प्राप्ति का मार्ग’ पुस्तक का स्वाध्याय कर ब्रह्म क्या है? ब्रह्म-विद्या क्या है? सृष्टि के मूल में क्या है? ब्रह्म को इसी जन्म में प्राप्त करने का मार्ग क्या है? सदाचार का हमारे जीवन में क्या महत्व है जैसे विषयों पर विमर्श किया गया। संध्याकालीन सत्र में श्रीस्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज द्वारा शिविरार्थियों की शंकाओं का समाधान किया तथा प्रकृति की सुरम्य गोद में अगई माता मन्दिर के निकट पहाड़ी पर ध्यान शिविर में प्रकृति के महत्व के बारे मंे जानकारी देते हुए कहा कि जितना अधिक हम प्रकृति से संवाद करेंगे उतना ही मन शान्त होगा जिससे पठन-पाठन में तीव्रता आयेगी। जिन चट्टानों पर हम बैठे हैं यह आग्नेय चट्टानें हैं। इनका निर्माण लावा के ठण्डे होने से हुआ है। सूर्यास्त के साथ इनकी शीतलता को हम अनुभव कर सकते हैं। पूज्य स्वामीजी ने कहा कि अपने स्वरूप का तन्मय होकर अनुसंधान करना ही ध्यान हैं सनातन संस्कृति में उठना, बैठना, खाना-पीना, पढ़ना यहां तक कि युद्ध करना भी ध्यान की साधना है। शिक्षक जितना ध्यानपूर्वक अपने विषय का मनन-चिन्तन करेगा उतना ही वह अपने विद्यार्थियों में ज्ञान का सम्प्रेषण कर सकेगा। ध्यान की कला को साध कर ही विद्यार्थी के मन को तेजस्वी, बुद्धि को प्रखर एवं चित्त को एकाग्र किया जा सकता है ताकि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह शीर्ष पर पहुँच सके, अपने लक्ष्य को प्राप्त कर परिवार, समाज और श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण में अपनी महती भूमिका निभा सके।