अर्जुन अवार्डी कृपाशंकर की कलम से…… नए नियमों का खामियाजा भुगता भारतीय पहलवानों ने …..

किर्गिस्तान के बिश्केक में जब सीनियर एशियन कुश्ती के महा-आयोजन में भारतीय कुश्ती टीम अपनी चुनौती पेश करने उतरी थी, तभी से ये आशंका जन्म लेने लगी थी कि नए नियमों से ज्यादा रूबरू न होने का खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है और हुआ भी यही…भारतीय पहलवान यहां पर अपने पिछले प्रदर्शन से भी कम ही पदक जीत पाए । यह बात भारतीय महिला कुश्ती टीम के पूर्व कोच अर्जुन अवॉर्डी कृपाशंकर बिश्नोई ने कही ।

उल्लेखनीय है कि कृपाशंकर ने एशियन कुश्ती के पहले ही भारत की घरेलू कुश्ती प्रतियोगिताओं में इन नए नियमों को लागू करने की जरूरत के बारे में भारतीय कुश्ती संघ को कहा था, लेकिन उनके इस सुझाव को संज्ञान में नहीं लिया गया था । यही कारण है कि एशियन कुश्ती में भारत की झोली पदकों से भरने के बजाए और कम हो गई ।

भारतीय रेलवे के कोच कृपाशंकर के अनुसार आधुनिक कुश्ती में वजन को नियंत्रित करने का महत्व अब बदल गया है । नए नियमों के अनुसार पहलवानों का वजन तौलने के तुरंत बाद कुश्ती मुकाबले में उतरना पड़ा, जिसके भारतीय पहलवान अभ्यस्त नहीं थे । इसका खराब असर सीनियर एशियाई चैम्पियनशिप में देखने को मिला, जहां ज्यादातर भारतीय पहलवान वजन तौलने के तुरंत बाद खेलने के आदि नहीं थे, जिससे पिछले वर्ष अर्जित किए पदको की संख्या के बराबर भी भारत नहीं पहुच पाया।

अपने जमाने व देश के विख्यात पहलवान व प्रथम अर्जुन पुरस्कार विजेता उदयचंद, ध्यानचंद पुरस्कार विजेता ज्ञान सिंह व शोकिन्द्र तोमर सहित कई पहलवानों ने माना की गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष एशियन चैम्पियनशिप में भारतीय पहलवानों का प्रदर्शन बेहतर नहीं था ।

उन्होंने कहा, ‘इस बात से आप अनुमान लगा सकते हैं की नए नियमो के मुताबित वजन को नियंत्रित करना और उसके तुरंत बाद कुश्ती खेलना, दोनों बातें अपने आप में अलग-अलग दो युद्ध खेलने जैसा है । वजन कम करने के तुरंत बाद कुश्ती मुकाबले के लिए मैट पर उतरना बहुत मुश्किल होता है ।

कृपाशंकर ने कहा कि वजन कम करके कुश्ती करना बहुत मुश्किल है । इसकी आदत में ढालने के लिए भारतीय पहलवानों को कोई मंच भारत में नहीं दिया गया और इनती बड़ी प्रतियोगिता के लिए भेज दिया गया । उन्होंने कहा कि भारतीय पहलवान अंतिम समय में शरीर से पानी की कमी करके वजन कम करते हैं, जिससे डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है । डिहाइड्रेशन से मस्तिष्क में पानी की कमी हो जाती है और मुकाबले के दौरान पहलवान को तुरंत निर्णय लेने में परेशानी आती है । यही नहीं, डिहाइड्रेशन की वजह से आप चीजों पर फोकस भी नहीं रख पाते हैं । कुश्ती का मुकाबला करते वक्त आपके अंदर वह उर्जा नहीं होती कि किसी समस्या या मुद्दे पर सही निर्णय ले सकें । डिहाइड्रेशन  से आप की रिएक्शन एबिलिटी प्रभावित हो जाती है ऐसे में मस्तिष्क से मांसपेशी को सन्देश पहुचाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, इस मामले में पहलवान का मन तो तकनीक लगाने के लिए जाता है पर तन उतनी तेजी से काम नहीं करता, दोनों का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है । नतीजा ये होता है कि आप अपनी कुश्ती खेलने की शैली को भूलने लगते हैं और गलतियां करने लग जाते हैं ।

सीनियर एशियन कुश्ती में एक नायाब उपलब्धि भारत की नवजोत कौर दिलाई। उन्होंने महिलाओं के 65 किग्रा में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। वह महाद्वीपीय चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं जबकि रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक को भी 62 किग्रा में कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा।उल्लेखनीय है कि नवजोत और साक्षी को भी कृपाशंकर कोचिंग दे चुके हैं।

पिछले साल 2017 के सीनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में 8 वजन वर्ग में 96 पदक दांव पर लगे थे। उसमें से 1 स्वर्ण, 5 रजत और 3 कांस्य सहित कुल 9 पदक भारत ने जीते थे। इस वर्ष सीनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में 10 वजन वर्गों में 120 पदक दांव पर लगे। इसमें भारत 1 स्वर्ण, 1 रजत 6 कांस्य सहित कुल 8 पदक जीते…

पिछले साल की तुलना में इस साल 6 अतिरिक्त वजन समूहों के साथ 24 पदक अधिक दांव पर लगे लेकिन पुराने नियमों से खेलने की अभ्यस्त वाली भारतीय कुश्ती टीम नए नियमों के तहत खेलकर पिछले साल जीते 9 पदक की संख्या में इजाफा करने में क्यों कामयाब नहीं हो सकी यह सबसे बड़ा सवाल है?

पिछले वर्ष 96 पदकों के लिए 24 भारतीय पहलवान मैदान थे और इस बार 120 पदको के लिए 30 भारतीय पहलवान मैदान में उतरे लेकिन नए नियमों से अभ्यस्त नहीं होने की वजह से पदकों की संख्या में अपेक्षानुरूप इजाफा नहीं हो सका ।