आम लोगों के लिए नहीं रहा अब देश का आम बजट

नरेन्द्र मोदी सरकार अपना आखिरी पूर्ण बजट पेश करने जा रही है. लेकिन मोदी सरकार का आने वाला यह बजट कई मामलों में अजूबा है जिसमें सबसे अहम यह है कि यह पहली बार होगा कि देश के आम बजट में आम आदमी के लिए कुछ नहीं आएगा. दरअसल, देश के दर्जनों वार्षिक बजट में यह पहला बजट होगा जहां लोगों को सरकार की घोषणाओं का इंतजार नहीं रहेगा.

उपभोक्ताओं के लिए इस बजट में रोमांच नहीं रहेगा हालांकि आगामी चुनावों के मद्देनजर सरकार की नीतियों पर असर देखने को मिल सकता है. इन तथ्यों को देखें तो कहा जा सकता केन्द्र सरकार के इस बजट में सिर्फ वित्त मंत्री अरुण जेटली का अंकगणित देखने को मिलेगा.

नहीं रहेगा उपभोक्ताओं के लिए रोमांच

अभी तक देश के वार्षिक बजट पर आम आदमी की टकटकी रहती थी क्योंकि बजट में केन्द्र सरकार एक्साइज से लेकर सर्विस टैक्स में बदलाव का ऐलान करती थी जिसके चलते देश में कई उत्पाद और सेवाओं की कीमतों में बदलाव होता था. लेकिन 1 जुलाई 2017 से देश में जीएसटी लागू होने के बाद बजट के जरिए यह बदलाव नहीं किए जाएंगे.

इस काम के लिए अब प्रति माह जीएसटी काउंसिल एक मिनी बजट पेश करता रहेगा. जीएसटी के अलावा वार्षिक बजट में कस्टम ड्यूटी और इनकम टैक्स में बदलाव की संभावना बची रह गई है लेकिन केन्द्र सरकार के लिए रेवेन्यू बढ़ाने की चुनौती के आगे टैक्सपेयर के लिए किसी अहम घोषणा की संभावना कम है. वहीं जीएसटी ने राज्य सरकारों द्वारा टैक्स वसूलने के अधिकार को भी खत्म कर दिया है लिहाजा राज्य सरकारों के बजट में भी राज्यों के बहीखाते से ज्यादा कुछ देखने को नहीं मिलेगा.

केन्द्र सरकार का खजाना

अभी तक संसद में बजट पेश करते समय वित्त मंत्री जैसे ही किसी मद में बड़े फंड का ऐलान करते थे तो बाकी सदस्य मेज पीटकर उसका स्वागत करते थे. लेकिन मौजूदा आर्थिक स्थिति में इसकी उम्मीद कम है कि केन्द्र सरकार किसी मद में बड़े खर्च की घोषणा करे. जीएसटी से आए कम राजस्व और जीएसटी में राज्यों के बकाए के दबाव में केन्द्र सरकार हाथ खींचकर खर्च करते देखी जाएगी.

न्हीं दबावों के चलते केन्द्र सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में अगस्त और सितंबर के दौरान अपने खर्च में बड़ी कटौती को अंजाम दिया था जिससे राजस्व घाटे को कम किया जा सके. वहीं बजट प्रक्रिया पर कुछ रिपोर्ट्स के आधार पर कहा जा सकता है कि केन्द्र सरकार अगले वित्त वर्ष के लिए रेवले के बजट में 25 फीसदी से अधिक की कटौती का ऐलान कर सकती है.

ये है नया बजट

इस आधार पर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री का हाल में दिया बयान कि आगामी बजट लोकलुभावन नहीं होगा पूरी तरह सही है. यह साल दर साल पेश किए जा रहे बजट में प्रारूप में बदलाव का नतीजा है कि केन्द्र सरकार के राजस्व का बड़ा हिस्सा जीएसटी में जाने से बजट में उस हिस्से के लिए प्रावधान नहीं देखने को मिलेंगे.

लिहाजा, आप को यदि 1 फरवरी का इंतजार इसलिए है कि वित्त मंत्री की बजट स्पीच में आप सस्ता-महंगा देखने को पाएंगे तो आपका नाउम्मीद होना तय है. क्योंकि बजट 2018 नया बजट है और यह बजट के प्रावधानों को नए ढंग से देश के सामने रखेगा जिसका सरोकार आम आदमी से कम और अर्थशास्त्री से ज्यादा रहेगा.