दक्षिण अफ्रीका में मिला दुनिया का सबसे प्राचीन ग्लेशियर, उम्र 290 करोड़ साल

दक्षिण अफ्रीका में मिला दुनिया का सबसे प्राचीन ग्लेशियर, उम्र 290 करोड़ साल

लेखक- संपादक बानीब्रत दत्त

दक्षिण अफ्रीका के सोने के खदान में दुनिया का सबसे प्राचीन ग्लेशियर मिला है. यह खुलासा एक नई स्टडी में हुई है, जिसकी रिपोर्ट हाल ही में जियोकेमिकल पर्सपेक्टिव लेटर्स में छपी है. यह ग्लेशियर 290 करोड़ साल पुराना है. हैरानी ग्लेशियर के सबूत मिलने पर है. आमतौर पर ग्लेशियर ध्रुवों पर या फिर पहाड़ों पर मिलते हैं.

इस ग्लेशियर की स्टडी करने के लिए वैज्ञानिकों ने उत्तर-पूर्वी दक्षिण अफ्रीका में मौजूद पोंगोला सुपरग्रुप के सोने की खदानों की गहरी मिट्टी की जांच की. जांच करने पर पता चला कि जो पत्थर मिले हैं, जो सबूत मिले हैं, वो 320 करोड़ साल से लेकर 280 करोड़ साल के बीच के हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगॉन में ज्वालामुखीय गतिविधियों और जियोकेमिस्ट्री की जानकार प्रो. इल्या बिंडेमैन ने कहा कि हमने सोने की खदानों में बेहद सुरक्षित तरीके से मौजूद ग्लेशियर को देखा. इन खदानों में मौजूद ये ग्लेशियर कई स्थानों पर बेहद सुरक्षित तरीके से हैं. वो ठीक वैसे ही हैं, जैसे धरती के बनने के बाद रहे होंगे.

इससे पहले भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस इलाके में प्राचीन ग्लेशियर के सबूत खोजे थे. लेकिन उसकी उम्र पता नहीं चल पाई थी. इसलिए वैज्ञानिकों ने कापवाल क्रेटॉन नाम के इलाके से पत्थरों के सैंपल जमा किए. इन पत्थरों को जिन सोने के खदानों से निकाला गया है, उसे एंग्लोगोल्ड-अशांति माइनिंग कंपनी चलाती है.

पत्थरों पर ग्लेशियर के जमा कचरा मौजूद था. जो वैज्ञानिकों को मिला. जब भी ग्लेशियर पिघलता है. तब वह अपने पीछे कुछ कचरा छोड़ जाता है. जो करोड़ों साल पुराने हो सकते हैं. ऐसे कचरे की जांच ट्रिपल ऑक्सीजन आइसोटोप एनालिसिस से की जाती है. यहां ऐसे आइसोटोप्स मिले जो आमतौर पर ग्लेशियरों पर मिलते हैं.

ये आइसोटोप्स बताते हैं कि ये ग्लेशियर करीब 290 करोड़ साल पुराना था. ये जिस समय मौजूद था, उस समय पृथ्वी पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी. उस समय ग्रीनहाउस गैसें नहीं होती थीं. रिवर्स ग्रीनहाउस गैसों की वजह से धरती जमी हुई थी. वैज्ञानिकों का दावा है कि ये धरती के सबसे पुराने सर्दी वाले इलाके का सबूत है.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में जियोलॉजी के प्रोफेसर आंद्रे बेकर कहते हैं कि अभी इस ग्लेशियर के सबूतों की और जांच होनी चाहिए. इससे नया अध्याय शुरू हो सकता है. धरती के शुरुआती मौसम, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को लेकर समझ बढ़ती है.