भारत में प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रहे लंबे समय तक रहने वाले दर्द में कारगर है टार्गेट-स्पेशफिक इंटरवेंशन तकनीक

• भारत में 19% से अधिक वयस्क आज किसी न किसी प्रकार के लंबे समय तक रहने वाले दर्द से पीड़ित है, और महिलाएं इससे अधिक पीड़ित (25%) होती हैं।
• अस्वस्थ, शारीरिक रूप से निष्क्रिय जीवनशैली के कारण अधिक से अधिक युवा भी लंबे समय तक दर्द का सामना करने लगे हैं।
• लंबे समय तक रहने वाले दर्द के अधिकांश मामलों के लिए, न्यूनतम इंवैसिव और बिना सर्जरी वाले उपचार ओपन शल्य चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में बेहतर विकल्प हैं।
दिल्ली 15 सितंबर, 2021 : लंबे समय तक रहने वाला दर्द या क्रोनिक पेन आने वाले वर्षों में भारत में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल चुनौती के रूप में तेजी से उभर रहा है जो देश के सामाजिक और स्वास्थ्य ढांचे पर भारी असर डालने वाला है। क्रोनिक पेन या लंबे समय तक रहने वाले दर्द वैसे दर्द को कहा जाता है जो तीन महीने से अधिक समय तक लगातार हो।
इंटरवेंशनल पेन एंड स्पाइन सेंटर (आईपीएससी) के पेन स्पेशियलिस्ट का कहना है कि भारत में 19% से अधिक वयस्क आज किसी न किसी प्रकार के पुराने दर्द से पीड़ित है, और यह महिलाओं में अधिक व्यापक (25%) है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 65 वर्ष की आयु के बाद पुराने दर्द के मामले तेजी से बढ़ जाते हैं। यह समस्या तेजी से बढ़ सकती है क्योंकि भारतीय आम तौर पर अपने स्वास्थ्य की समस्याओं को कमतर आंकते हैं और अपनी दर्द की समस्याओं को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करते हैं।
इंटरवेंशनल पेन एंड स्पाइन सेंटर (आईपीएससी) न्यूनतम इंवैसिव तकनीकों से रीढ़ की अत्याधुनिक देखभाल और पुराने दर्द का उपचार करने वाले सिंगल-स्पेशियलिटी सेंटर्स की एक श्रृंखला है।
आईपीएससी इंडिया के प्रबंध निदेशक और सीईओ डॉ. (मेजर) पंकज एन सुरंगे ने कहा: “सर्जिकल उपचार और अस्पताल में भर्ती होने पर होने वाले भारी खर्च के कारण अगले दो दशकों में पुराना दर्द एक बड़ा सामाजिक और आर्थिक समस्या पैदा करेगा। पुराने दर्द, विशेष रूप से कमर दर्द के कारण कार्य दिवसों में छुट्टी करने के कारण, काम पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। यह प्रभावित व्यक्ति के सामाजिक जीवन, दैनिक दिनचर्या जैसे चलना या व्यायाम करना, अपनी और परिवार की देखभाल करना और एक स्वतंत्र जीवन शैली का पालन करना को भी बाधित करता है। कई रोगी डिप्रेशन, एंग्जाइटी और नींद न आने की समस्या से पीड़ित होने लगते हैं। लंबे समय तक रहने वाले दर्द के कारण अक्सर कई तरह की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।”
भारत में लंबे समय तक रहने वाले दर्द के बढ़ते मामलों के बारे में बात करते हुए, डॉ (मेजर) पंकज एन सुरंगे ने कहा: “लोगों के जीवित रहने की उम्र बढ़ने के कारण समाज में वृद्ध लोगों की संख्या में धीरे-धीरे वृद्धि हुई है। इसके कारण पुराने दर्द के मामलों में भी वृद्धि हो रही है। यही नहीं, अब तो युवा लोग भी इससे प्रभावित हो रहे हैं, जिसका मुख्य कारण आराम तलब और शारीरिक रूप से निष्क्रिय जीवन शैली है। लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले सबसे सामान्य प्रकार के पुराने दर्द में रीढ़ की हड्डी में दर्द, जोड़ों का दर्द और माइग्रेन शामिल हैं। आर्थराइटिस, उम्र बढ़ने के कारण होने वाले रीढ़ के दर्द और कैंसर पुराने दर्द का सबसे सामान्य कारण हैं।”
आईपीएससी इंडिया के इंटरवेंशनल स्पाइन एंड कैंसर पेन की कंसल्टेंट डॉ. स्वाति भट ने कहा: “पश्चिमी देशों में, दर्द की दवा पिछले तीन से चार दशकों से एक सुपर-स्पेशियलिटी रही है। भारत में यह केवल 15-20 वर्ष पुराना है। देश में कई अस्पताल अब दर्द प्रबंधन को एक अलग विषय के रूप में पेश करते हैं। पांच साल पहले तक, पुराने दर्द से पीड़ित भारतीय रोगियों के प्रबंधन के लिए पश्चिमी प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि, अब बेहतर परिणामों के लिए भारत के विशिष्ट प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं।”
पुराने दर्द के उपचार के बारे में बात करते हुए, डॉ स्वाति भट ने कहा: “पुराने दर्द के अधिकांश मामलों के लिए, कम इंवैसिव और टार्गेट-स्पेशफिक इंटरवेंशन (जिसे इंटरवेंशनल पेन मैनेजमेंट कहा जाता है) ओपन शल्य चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि इनमें कम जोखिम होता है और रोगी को कम आघात पहुंचता है। ये पद्धतियां अधिक सुरक्षित भी हैं और रोगी को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है। चूंकि इन पद्धतियों में से अधिकांश सर्जरी रहित प्रक्रियाएं हैं, इसलिए ये डे केयर सेटिंग में की जा सकती हैं, इसलिए पारंपरिक सर्जरी की तुलना में इनकी लागत लगभग आधी होती है। मरीज उसी दिन घर वापस जा सकते हैं। जल्द इलाज न केवल दर्द से राहत दिलाता है, बल्कि मार्बिडिटी को भी कम करता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। वर्तमान में हमारे पास दर्द के प्रबंधन के लिए सभी पारंपरिक प्रक्रियाओं के लिए भारतीय प्रोटोकॉल हैं, जो एक बड़ा कदम है।”
आईपीएससी इंडिया के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. ओम प्रकाश गुप्ता, जो एक प्रसिद्ध आर्थोपेडिक, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट और स्पाइन सर्जन हैं, ने कहा‚ “इंटरवेंशनल पेन मैनेजमेंट में, पीठ ⁄ कमर दर्द, स्लिप डिस्क, डिस्क में उभार, सियाटिका आदि से पीड़ित रोगियों का इलाज ओजोन डिस्केक्टॉमी, परक्यूटेनियस डिस्क डीकंप्रेसन और एंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी जैसी न्यूनतम इंवैसिव तकनीकों से किया जाता है जिसमें डिस्क के हर्नियेटेड हिस्से को हटाने के लिए एक छोटा स्कोप डाला जाता है। जोड़ों की आर्थराइटिस से पीड़ित मरीजों में बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही रीजेनेरेटिव इंटरवेंशन्स की मदद से इसका प्रबंधन किया जाता है। घुटने, कंधे, कूल्हे और रीढ़ की हड्डी के जोड़ों के एडवांस आर्थराइटिस में दर्द का प्रबंधन रेडियोफ्रीक्वेंसी प्रक्रियाओं से किया जाता है। न्यूरैल्जिया और न्यूरोपैथिक दर्द सहित नर्व से संबंधित दर्द को दवा और न्यूरोलाइटिक प्रक्रियाओं से प्रबंधित किया जाता है। ये सभी प्रक्रियाएं लोकल एनीस्थिसिया के तहत की जाती हैं और रोगियों को उसी दिन छुट्टी दे दी जाती है।
भारतीय मेट्रो शहरों में पीठ ⁄ कमर दर्द के 20,000 रोगियों के 2018 के सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि कम आयु वर्ग में बेंगलुरु की 46% आबादी रीढ़ की हड्डी की समस्याओं से पीड़ित है। यह देश में सबसे ज्यादा रीढ़ की हड्डी की समस्याओं वाले शहरों में शामिल है। लगभग 43% रोगी 7 सप्ताह से अधिक समय तक अपने दर्द की अनदेखी करते हैं, जिससे इलाज में देरी होती है और सर्जरी का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ. (मेजर) पंकज एन सुरंगे ने कहा: “पुराने दर्द और तकनीकी प्रगति की बेहतर समझ के साथ, पेन फिजिशियन अब पुराने दर्द को अच्छी तरह से नियंत्रित कर सकते हैं और ज्यादातर मामलों में इसका इलाज कर सकते हैं। हालांकि, यह डॉक्टरों की जिम्मेदारी है कि वे दर्द के तीव्र चरणों का तुरंत इलाज करें ताकि रोगियों के दर्द को लंबे समय तक रहने वाले दर्द में तब्दील होने से रोका जा सके।”
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