“घायल एक परिंदा हूँ”

 

घायल एक परिंदा हूँ,
क्यूं अब तक जिंदा हूँ।।
चल पड़ा वो श्रवण कुमार,
गोद मे बूढ़ी माँ ,
बापू का हाथ पकड़,
साथ में सारा परिवार,
पत्नी के था पेट मे बच्चा,
सिर पर सामान लिए थी जच्चा,
दर्द से थी सरोबार,
टूट गई वो आगे चलकर,
बैठ गई वो पेड़ पकड़ कर,
हो गया बच्चा चिल्लाकर,
चल पड़ी नवजात को उठाकर,
ऊपर बोर्ड बड़ा सा था,
फ़ोटो हँसते नेता जी का था।
“”नारी शक्ति को सलाम,
माताओ का खास ख्याल””
पढ़कर हो गया मै निहाल।
सभी है पीड़ा में है इतने,
या मै ही एक चुंनिन्दा हूँ,
घायल एक परिंदा हूँ।
क्यों अब तक जिंदा हूँ।।
माँ अब नही चल पाऊंगी
प्यारी बेटी आ गया घर
थोड़ी दूर ओर चला चल,
जाकर खाना खिलाऊंगी
थोड़ी कुछ सम्भल कर,
गिर पड़ी वो थोड़ा चलकर
हो गई अमर, वो मरकर,
रोता परिवार किश्मत का मारा था,
ऊपर “बेटी बचाओ”का नारा था,
इन नारो पर विश्वाश किया था,
अब पढ़कर मै शर्मिंदा हूँ।
घायल एक परिंदा हूँ
क्यों अब तक जिंदा हूं।।
दर्द कहाँ,भूख कहाँ,
प्यास कहाँ,आश कहा,
कहाँ गई ये सरकार ,
माँ बहनों की है चीत्कार ,
जिंदा होता,
ऐसे सोता
पटरी से उठ न जाता,
जिंदा होता,
रेल की कम्पन सुन पाता,
क्यो कट जाता
क्यों मर जाता,
चलते चलते बहुत थका था,
पहले से ही डरा सा था,
मेहनत कश एक करिंदा हूँ,
रोड पर बड़ा बोर्ड लगा था,
“”जुड़ता युवा -बदलता भारत””
समंझ ना पाया था इस नारे को,,
देखकर,, फिर भी अंधा हूँ,
घायल एक परिंदा हूँ,
क्यूँ अब तक जिंदा हूँ।।
लेखक
नरेंद्र राठी
सदस्य-अखिल भारतीय कांग्रेस
सदस्य-D.R.U.C.C, उत्तर रेलवे
(भारत सरकार)