एक साथ चुनाव होना संविधान के अनुरूप

क्या देश में एक साथ विधानसभा और लोकसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं? क्या ये संभव है? केंद्र की मोदी सरकार पिछले कुछ समय से इसी सवाल का जवाब तलाश रही है और ऐसा ही करने की कोशिश भी की जा रही है. अब लॉ कमीशन ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस मिशन पर काम करना शुरू कर दिया है.

लॉ कमीशन की ओर से इस परिस्थिति से जुड़े सभी मुद्दों पर चर्चा कराने की कोशिश की जा रही है. सूत्रों की मानें तो कमीशन की तरफ से सभी मुद्दों की एक लिस्ट तैयार की गई है. इसके लिए लोगों की राय, विशेषज्ञों की राय और अन्य सभी विकल्पों पर काम करने की उम्मीद है.

दरअसल, इस मिशन को साकार करना इतना आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए संविधान के कुछ प्रावधानों में भी बदलाव करना होगा. इसमें आर्टिकल 83, आर्टिकल 85, आर्टिकल 172, आर्टिकल 174, आर्टिकल 356 और दसवां शेड्यूल में बदलाव करना होगा. इसके अलावा 1951 के रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट में भी बदलाव करना होगा.

हालांकि, इस तरह के बदलाव करना इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान में बदलाव नहीं हो सकता है.

लॉ कमीशन के सामने जो बड़ी चुनौती है वो ये है कि एक साथ चुनाव कराने जो फायदे होंगे. लेकिन इन बदलावों के लिए जो संविधान के प्रावधानों में बदलाव होंगे. उससे संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर पर सवाल खड़े हो सकते हैं. इसके अलावा अगर किसी स्थिति में कुछ राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की बात आती है तो उससे किस प्रकार का असर पड़ेगा. इस पर भी विचार किया जा रहा है.

अभी जो नियम है उसके तहत 6 महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लग सकता है और अगर उसे आगे बढ़ाना हो तो संसद की अनुमति जरूरी है. वहीं राष्ट्रपति की अनुमति से इसे कभी भी हटाया जा सकता है. बताया जा रहा है कि अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो करीब 10000 करोड़ रुपए का खर्चा आएगा. जो कि अभी के खर्चों से काफी कम है.