कर्नाटक विधानसभा चुनाव की औपचारिक ऐलान आज हो गया है. विधानसभा चुनाव की घोषणा आज भले ही हुई हो, लेकिन राज्य की सियासी बाजी जीतने के लिए राजनीतिक दल रणभूमि में पहले से ही उतरकर पसीना बहाने में जुटे हैं. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस अपना किला बचाने में जुटी है तो वहीं बीएस येदियुरप्पा को सीएम फेस बनाकर बीजेपी भी मैदान में डट गई है. जेडीएस बसपा के साथ गठबंधन कर सत्ता की बाजी जीतने के लिए जद्दोजहद कर रही है.
2013 का सियासी समीकरण
कर्नाटक में कुल 225 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन 224 सीटों के लिए चुनाव होता है. एक सीट पर एंग्लो-इंडियन समुदाय से सदस्य मनोनित होता है. 2013 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 224 सीटों में से कांग्रेस ने 122 जीती थी. जबकि बीजेपी 40 और जेडीएस ने 40 सीटों पर कब्जा किया था. बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले बीएस येदियुरप्पा की केजेपी महज 6 सीटें जीत सकी थी. इसके अलावा अन्य को 16 सीटें मिली थी. हालांकि, बाद में येदियुरप्पा दोबारा से बीजेपी के साथ आ गए. येदियुरप्पा बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हुए
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2008 के मुताबिक 2013 में बीजेपी को 70 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. जबकि राज्य की सभी सभी पार्टियों को फायदा मिला था. सबसे ज़्यादा लाभ कांग्रेस को 42 सीटों का, जेडीएस को 12 और अन्य उम्मीदवारों को 10 सीटों पर लाभ हासिल हुआ था. कांग्रेस 2013 में 9 साल के बाद अपने बूते पर राज्य की सत्ता में आई थी. इससे पहले अंतिम बार 1999 में सत्ता में आई थी और तब एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद कांग्रेस ने सत्ता में अपने दम पर 2013 में वापसी की. सत्ता के सिंहासन पर सिद्धारमैया विराजमान हुए. पांच साल के कार्यकाल के बाद कांग्रेस एक बार फिर उन्हीं के नेतृत्व में मैदान में उतरी है. कर्नाटक में 1999 के बाद गठबंधन का दौर रहा. कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार चलाया लेकिन वो भी सफल नहीं रही. इसके बाद जेडीएस ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. मुख्यमंत्री का ताज जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी के सर सजा था.
कुमारस्वामी ने 20 महीने तक गठबंधन सरकार चलाने के बाद वादे के मुताबिक बीजेपी को सत्ता नहीं सौंपी थी. इसके बाद 2008 में चुनाव हुए, जिसके बाद बीजेपी जनता की सहानुभूति का पुरस्कार हासिल कर सत्ता में आई थी. लेकिन पांच साल में कई उठापटक देखने को मिली. मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी इसके बाद वो पार्टी से अलग हो गए. 2013 में बीजेपी की हार का कारण येदियुरप्पा बने थे. अब फिर बीजेपी येदियुरप्पा के सहारे मिशन कर्नाटक को जीतने में जुटी है.