बाद 60 करोड़ की लागत से संगीत एकेडमी बनाएगी अवध यूनिवर्सिटी

अख्तरीबाई फैजाबादी. दुनिया जिन्हें बेगम अख्तर के नाम से जानती है. 2014 में उनकी 100वीं जन्म शताब्दी वर्ष के वक्त कुछ हलचल जरूर नजर आई, लेकिन बाद में वह ठहर गई. मौत के करीब 44 साल बाद तक जो काम तमाम सरकारों ने नहीं किया अब बेगम की विरासत संजोने एक शिक्षण संस्थान आगे आ रहा है.

डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी ने ‘बेगम अख्तर संगीत कला एकेडमी’ की स्थापना करने का फैसला लिया है. प्रस्तावित योजना सीधे यूनिवर्सिटी के कुलपति और विशेष कार्य अधिकारी की निगरानी में है. जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी ने प्रस्तावित योजना के कंस्ट्रक्शन और एकेडमी के स्वरूप का पूरा खाका तैयार कर लिया है. यूनिवर्सिटी की खाली पड़ी 36 एकड़ जमीन पर 9 हजार 951 वर्गमीटर पर करीब 60 करोड़ रुपये की लागत से एकेडमी का भव्य निर्माण होगा. यूनिवर्सिटी वीसी ने बताया, भवन निर्माण के लिए 4266.36 लाख रुपये का शुरुआती इस्टीमेट प्रस्तावित है. वार्षिक परीक्षाओं के बाद मई तक शिलान्यास कर दिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए 18 महीने की समयावधि निर्धारित की गई है एकेडमी में बेगम अख्तर से जुड़ी चीजों का एक भव्य म्यूजियम होगा. इसमें बेगम के दुर्लभ रिकॉर्ड्स, फ़िल्में, तस्वीरें और जीवन से जुड़ी तमाम दूसरी संग्रहों का कलेक्शन किया जाएगा. एकेडमी के तहत बेगम की परंपरा के शास्त्रीय संगीत के शिक्षण और प्रशिक्षण पर जोर दिया जाएगा. मनोज दीक्षित के मुताबिक बेगम पर रिसर्च करने वाले स्कॉलर्स को इससे काफी सहूलियत मिलेगी. उन्हें तमाम चीजें दुनिया में एक ही जगह मिल जाएंगी. अवध यूनिवर्सिटी उसी जगह है जहां से महज 5 किलोमीटर दूर भदरसा नाम के गांव में 7 अक्टूबर 1914 को बेगम अख्तर का जन्म हुआ था.इस सवाल कि एकेडमी बनाने के लिए यूनिवर्सिटी करोड़ों का भारी भरकम बजट कैसे जुटाएगी? मनोज दीक्षित ने कहा, “हम स्वायत्तशासी यूनिवर्सिटी हैं. लागत का कुछ हिस्सा यूनिवर्सिटी फंड से होगा. कुछ फंड चैरिटी या दूसरों की मदद से जुटाएंगे. उन्होंने कहा, यूपी गवर्नमेंट से फंड मिलना मुश्किल है लेकिन केंद्र सरकार की संस्कृति मंत्रालय से कुछ न कुछ मिल जाएगा. जरूरत पड़ी तो हम बेगम के को चाहने वाले संगीतकारों, प्रशंसकों की मदद लेंगे. दीक्षित इस बात पर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि वो बजट जुटा लेंगे और उनके कार्यकाल में ही इसका निर्माण भी हो जाएगा.उधर,  दस्तावेजी फिल्म निर्माता शाह आलम ने यूनिवर्सिटी की पहल का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, “अवध में बेगम के चाहने वाले लंबे वक्त से सरकार से ऐसी व्यवस्थित पहल की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन इतने वर्षों में किसी ने कुछ नहीं किया. जन्मशती वर्ष में केंद्र सरकार ने बेगम के नाम पर 5 रुपये का सिक्का जारी किया था. पुरस्कारों की बंदरबाट में यूपी की अखिलेश सरकार ने 5 लाख के अवॉर्ड की घोषणा से अपना दायित्व पूरा कर लिया.”

शाह आलम ने कहा, “बहुत दुःख होता है जब अवध में बेग़म अख्तर की स्मृतियां, उनकी परंपरा उनके ही जन्मस्थान में नजर नहीं आतीं. जिस फैजाबाद में उनका जन्म हुआ वहां की एक पूरी पीढ़ी उनकी शख्सियत से अंजान है. ऐसा इसलिए है कि उनकी मौत के सालों बाद इसे सहेजने की कोशिश ही नहीं हुई.” शाह ने कहा, बेगम जिस भदरसा में पैदा हुई थीं वो घर अब खंडहर है. फैजाबाद के जिस मोहल्ले में रहीं, उसके बारे में लोगों को पता तक नहीं. कुछ साल पहले नगर पालिका की बनवाई एक संकरी गली है जिसे बेग़म साहिबा का नाम दे दिया गया.” शाह ने बेगम की शख्सियत के सम्मान में इन पहलों को शर्मनाक माना.

इस परियोजना को देख रहे यूनिवर्सिटी कार्य परिषद सदस्य ओम प्रकाश सिंह ने कहा, “किसी ने भी आम लोगों के बीच बेगम की उपलब्धियों के लिए ठोस शुरुआत नहीं की. अब यूनिवर्सिटी की कोशिश से नई पीढ़ी को अपनी विरासत करीब से जानने का मौका मिलेगा.”उधर,  ओम प्रकाश सिंह ने कहा, “एकेडमी का मकसद फैजाबाद की उस खोई विरासत को सहेजना भी है, जिसे बेग़म ने यहीं से दुनियाभर को दिया. हमारी कोशिश अकादमिक स्तर पर उनके बहुमूल्य योगदान को दूसरी पीढ़ी तक पहुंचना है. बेगम को लेकर ये एकेडमी वैश्विक स्तर का केंद्र बनेगी.”उधर,  ओम प्रकाश सिंह ने कहा, “एकेडमी का मकसद फैजाबाद की उस खोई विरासत को सहेजना भी है, जिसे बेग़म ने यहीं से दुनियाभर को दिया. हमारी कोशिश अकादमिक स्तर पर उनके बहुमूल्य योगदान को दूसरी पीढ़ी तक पहुंचना है. बेगम को लेकर ये एकेडमी वैश्विक स्तर का केंद्र बनेगी.”

कौन थीं बेगम अख्तर

बेगम अख्तर क्लासिकल सिंगर थीं. उनका जन्म फैजाबाद से कुछ किलोमीटर दूर भदरसा गांव में हुआ था जो अब एक छोटा क़स्बा बन चुका है. बेगम ने विधिवत संगीत की शिक्षा ली. अलग-अलग शहरों में रहते हुए कई साल तक उन्होंने नामी संगीत घरानों में प्रशिक्षण हासिल किया. वो ठुमरी, दादरी और गज़ल गायकी करती थीं. खासतौर से गज़ल के लिए दुनिया ने उन्हें याद किया. मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता में पहला स्टेज परफॉर्म किया था. बेगम ने कई हिंदी फिल्मों में गाने के साथ ही अभिनय भी किया.

शाह बताते भी हैं बेगम साहिबा को हिंदुस्तान और संगीत से बेहद प्यार था. उन्होंने बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से शादी कर ली. अब्बासी एक मुस्लिम लीग नेता के भतीजे थे. बंटवारे के दौरान बेगम भारत छोड़ने को राजी नहीं हुईं. उन्होंने कहा, वो संगीत और हिंदुस्तान के बिना नहीं रह सकतीं. हालांकि शादी के बाद पारिवारिक दबाव के चलते उन्हें कुछ समय के लिए गायन बंद करना पड़ा. लेकिन जब उन्हें फेफड़े में शिकायत हुई तो डॉक्टरों ने गाने की सलाह दी.

परिवार की रजामंदी के बाद बेगम ने फिर गायकी शुरू की. बेगम ने फिल्मों, लाइव कॉन्सर्ट, आकाशवाणी में जमकर गाया. उन्हें प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी के साथ पद्मश्री (1968) मिला. भारत सरकार की ओर से मरणोपरांत पद्म भूषण (1975) भी दिया गया. 30 अक्टूबर 1974 को बेगम का निधन हुआ था. ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया, जैसी उम्दा दर्जनों गजलें आज भी सुनी जाती हैं. करीब 300 रिकॉर्ड्स में बेगम की आवाज आज भी दुनिया के सामने मौजूद है.