कैंसर से जुड़े 5 मिथक- डाॅ सुदर्शन डे,

कैंसर दुनिया भर में मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। हर साल भारत में कैंसर के तकरीबन 13-15 लाख नए मामलों का निदान किया जाता है। कैंसर का नाम ही डर, नकारात्मकता और कलंक का कारण बन जाता है। मरीज़, उसके परिवारजन और रिश्तेदार इसे सिर्फ गंभीर बीमारी और मौत से ही जोड़ कर देखते हैं। पौराणिक कहानियों की तरह हमारे देश में कैंसर से जुड़े कई मिथक और गलत अवधारणाएं भी फैली हैं। तो आइए इस विश्व कैंसर दिवस के मौके पर इन मिथकों के बारे में वास्तविकता की जांच करेंः

मिथक 1ः कैंसर का इलाज नहीं है।
बिल्कुल गलत! वर्तमान में आधुनिक डायग्नाॅस्टिक्स एवं उपचार प्रोटोकाॅल्स के साथ, कैंसर अब एक ऐसी बीमारी बन चुका है जिसका इलाज संभव है और शुरूआती अवस्थाओं में निदान होने पर तो कैंसर के इलाज की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। वास्तव में लिम्फोमा और ल्यूकेमिया जैसे कैंसर का जल्दी निदान होने पर तो मरीज़ 15-20 साल तक जीवित रह सकता है। हालांकि अडवान्स्ड एवं अंतिम अवस्था के कैंसर के लिए भी प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं, जो मरीज़ की ज़िंदगी बढ़ा सकते हैं और बहुत से मामलों में सम्पूर्ण इलाज उपलब्ध करा सकते हैं।

मिथक 2ः कैंसर वृद्धावस्था की बीमारी है।
हालांकि कैंसर के ज़्यादातर मामले 50 साल की उम्र के बाद ही होते हैं, किंतु युवाओं में भी कैंसर के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। यह जानना बेहद ज़रूरी है कि युवाओं में होने वाला कैंसर अधिक उग्र होता है और इस पर जल्दी नियन्त्रण करना बहुत ज़रूरी होता है। भारत में सिर, गले और स्तन कैंसर के ज़्यादातर मामले जीवन के तीसरे और चैथे दशक में पाए जाते हैं।

मिथक 3ः कैंसर भयंकर दर्द का कारण है और जिन गांठों में दर्द नहीं होता, वे कैंसर की नहीं होतीं।
वर्तमान में यह कैंसर से जुड़ा सबसे बड़ा मिथक है कि लोग उन गांठों की अनदेखी करते हैं जिनमें दर्द नहीं होता। आमतौर पर लोगों को लगता है कि यह गांठ अपने आप ठीक हो जाएगी। लेकिन इस तरह की गांठों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, आपको जल्द से जल्द अपने चिकित्सक की राय लेनी चाहिए और ओंकोलोजिस्ट से सैकण्ड ओपिनियन भी लेना चाहिए। हालांकि कैंसर बाद की अवस्थाओं में भयंकर दर्द का कारण बन जाता है, लेकिन शुरूआती अवस्थाओं में कैंसर की गांठे दर्दरहित ही होती हैं।

मिथक 4ः कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी में दर्द होता है।
बिल्कुल नहीं, हालांकि कीमोथेरेपी के दौरान आपको इंजेक्शन जैसी हल्की सी चुटकी महसूस होती है, जिसमें दर्द बिल्कुल नहीं होता। कैंसर की ज़्यादातर दवाएं डाइल्यूटेड इन्ट्रावीनस फ्लूड के रूप में ठीक उसी तरह दी जाती है जैसे सलाईन या ग्लुकोज़। हालांकि कीमोथेरेपी के बाद की अवधि में इसके साईड इफेक्ट्स होते हैं, लेकिन उचित देखभाल द्वारा स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है। रेडियोथेरेपी की नई तकनीकों के साथ तो साईड इफेक्ट्स अब बहुत हद तक कम हो गए हैं और यह पूरी तरह से दर्दरहित प्रक्रिया है।

मिथक 5ः बायोप्सी से कैंसर फैलता है।
यह एक आम मिथक है कि बायोप्सी या एफएनएसी (फाईन नीडल एस्पीरेशन साइटोलोजी) के कारण कैंसर फैलता है। ज़्यादातर बायोप्सी सर्जन या सर्जिकल ओंकोलोजिस्ट द्वारा सही तरीके से की जाती हैं, जिसमें कैंसर के फैलने की संभावना नहीं होती। बायोप्सी या एफएनएसी कैंसर निदान एवं इलाज की ज़रूरी प्रक्रिया है और इसकी अनदेखी बिल्कुल नहीं की जानी चाहिए।