तलाक को तलाक

– संजय स्वामी राम नगर शाहदरा दिल्ली

मनुष्य और पशु में अंतर है। पशु जीवन पर्यंत एक ही सा कार्य करता रहता है जबकि मनुष्य जीवन को
विभिन्न सोपानों में विभाजित कर अनेकानेक कार्य व्यवहार करता है। मनु महाराज ने मनुष्य के जीवन को
4 सोपानों में यथा ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ एवं सन्यास में विभक्त कर एक आदर्श जीवन जीने का लक्ष्य
सभी मनुष्यों को दिया था। मनुष्य अपनी गृहस्थ की जिम्मेदारियों को पूर्ण करता हुआ उन से निवृत हो
अपना जीवन का बचा समय जब उस अल्लाह ताला की इबादत में लगाने का मन बना चुका होता है तब
अचानक तलाक-तलाक- तलाक के भयानक शब्दभेदी बाण से घायल उसकी लाड़ली पुन:उसकी गोद में
आ सिसकती है फिर वह दोनों हाथ उठा अल्लाह से पूछता है या खुदा यह मुझे किसकी सजा दी है मात्र
23 साल की उम्र में 5 बच्चे पैदा कर तलाक का फरमान सुना शाहबानो को अपनी जिंदगी के साथ-साथ 5
बच्चों को पालने के लिए मजबूर कम से कम खुदा ने तो नहीं किया था । एक तरफ तुगलकी तलाक में
उस मजलूम के 7 साल चले मुक़दमे में मात्र गुजारा भत्ता मांगने पर, जिसे देश की अवाम ने प्रधानमंत्री पद
की जिम्मेदारी सौंपी उनका यह कहना कि तुम गुजारा भत्ता ने मांगो और फिर सत्ता के मद में चूर हो उस
मजलूम के साथ साथ भारत की धरती पर न्याय की सर्वोच्च अदालत के फैसले को ही बदल,धरती पर
अनेक स्वयंभू खुदा पैदा कर दिए। हमें जितनी मर्जी शादी करने का, औलादें पैदा करने का, और कैसी
भी स्थिति,परिस्थिति में तलाक देने का हक है तो क्या हम धरती पर स्वयंभू भगवान ने बन गए?
पशु-पक्षी भी नर- मादा मिलकर अपने बच्चों की परवरिश करते हैं परंतु आधुनिक सभ्य कहे जाने वाले
इंसान ने तो हद ही कर दी। आज शादी कल तलाक, पत्नी गर्भवती तो तलाक, 4-5 मासूम से बच्चे तो
तलाक, और तो और बुढ़ापे में भी तलाक,आखिर किस युग में जी रहे हैं हम…. ! 21वी सदी में स्मार्टफोन
प्रगतिशील शिक्षित समाज की निशानी है या तलाक का संदेश भेज आदिम युग की मानसिकता की…?
सदियों से हिंदू मुस्लिम दोनों समाजों के युवक-युवतियां आपस में विवाह, निकाह करते रहे हैं देर-सवेर
समाज उन्हें मान्यता देता है तो तलाक जैसे अहम मुद्दे पर मात्र कुछ फिरकापरस्त लोगों की बयान बाजी
को तवज्जो नहीं दी जा सकती।
लोकतंत्र में सरकारें बहुमत से बनती हैं। न्यायालय फैसला बहुमत से करते हैं तो आज देश की अवाम का
बहुमत सदियों से पीड़ित,धरती के खुदाओं द्वारा सताई गई मजलूमों के साथ है। न आज राजीव गांधी हैं,न
उनकी न उनके दल की सरकार है परंतु शाहबानो आज भी है मात्र राजनीतिक लाभ के लिए 1986 में
लिए गए अमानवीय पुरुषवादी सोच के फैसले से 31 सालों में हजारों शाहबानो आहत हुई है उन्हें आज
कुछ रोशनी की किरण दिखाई दी है देश की अवाम राजा को पालक के रुप में देखती है किताबों में राजा
को धरती पर ईश्वर का प्रतिरूप कहा गया है अतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक नफे-नुकसान से

ऊपर उठ सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से मुस्कुराए चेहरों को सदा सदा के लिए खिलखिलाने का पुख्ता
इंतजाम करेंगे यही आशा और विश्वास है