वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए ‘मेड इन इंडिया’

देश में विकसित नवजात श्रवण स्क्रीनिंग उपकरण – सोहम का आज नई दिल्‍ली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री श्री वाईएस चौधरी ने औपचारिक रूप से शुभारंभ किया। नवजात श्रवण स्क्रीनिंग उपकरण को स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायो डिजाइन (एसआईबी) के स्टार्टअप मैसर्स सोहम इनोवेशन लैब्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने विकसित किया है।

यह अभिनव चिकित्सा उपकरण, बायोटैक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन विकसित किया गया है। एसआईबी डीबीटी का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य भारत की नैदानिक ​​आवश्यकताओं के अनुसार अभिनव और सस्‍ते चिकित्‍सा उपकरणों को विकसित करना तथा भारत में चिकित्सा प्रौद्योगिकी आविष्कारकर्ताओं की अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करना है। यह सरकार के मेक इन इंडिया अभियान में एक महत्वपूर्ण योगदान है। एम्‍स और आईआईटी दिल्ली ने अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के सहयोग से संयुक्त रूप से इस कार्यक्रम को लागू किया गया है। बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड इस कार्यक्रम की तकनीकी और कानूनी गतिविधियों का प्रबंधन करता है।

सोहम एक कम लागत वाला विशेष उपकरण है, जो मस्तिष्क की श्रवण की आवाज का उपयोग करता है और नवजात शिशु में सुनने की प्रक्रिया की जांच करने के लिए श्रवण परीक्षण में स्वर्ण मानक है। अभी तक, यह तकनीक बेहद महंगी है और अनेक लोगों के लिए इस तक पहुंच नहीं है। स्‍टार्टअप सोहम ने संसाधनों के लिए उपयुक्त यह तकनीक बनायी है और इसका उद्देश्‍य देश में प्रति वर्ष पैदा होने वाले लगभग 26 मिलियन बच्चों की जरूरत पूरा करना है।

श्रवण बाधिता जन्म विकारों में से सबसे एक सबसे प्रमुख विकार है – जन्म से ही सुनाई न देना, आनुवांशिक और गैर-आनुवांशिक दोनों कारकों का ही परिणाम है। ये कारक भारत में ज्यादातर संसाधन रूप से गरीब अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े हैं। उन्नत स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के विपरीत, श्रवण बाधित का पता ही नहीं चल पाता। इस प्रकार, इसका पता बच्‍चे की उम्र चार वर्षसे अधिक होने पर पता चलता है, जब त‍ब इस हानि को दूर करने में बहुत देर हो चुकी होती है। इससे कई बार बच्‍चे बोल पाने में भी असमर्थ होते हैं और मानसिक रूप से भी बीमार हो सकते हैं। इन सबका बच्‍चे पर गहरा कुप्रभाव पड़ता है तथा जन्‍म पर्यन्‍त खामियाजा भुगतना पड़ता है।

विश्व स्तर पर हर साल लगभग 8,00,000 श्रवण रूप से दिव्‍यांग बच्चें पैदा होते है, जिनमें से करीब 1,00,000 भारत में पैदा होते हैं, इसलिए इस रोके जाने वाली क्षति की जल्दी स्क्रीनिंग किये जाने की आवश्‍यकता है, इससे समय पर उपचार और पुनर्वास की सुविधा प्रदान करने में मदद मिलेगी। सोहम की टीम ने नवजात शिशुओं की नियमित जांच करने के लिए एक स्क्रीनिंग उपकरण तैयार किया है, जिसमें बच्चों के महत्वपूर्ण चरण में विकास के लिए मदद प्रदान करने की संभावना है।

श्रवण स्क्रीनिंग बच्चे के सिर पर लगाये गये तीन इलेक्ट्रोड के माध्यम से श्रवण मस्तिष्क की तरंग मापता है। उत्तेजित होने पर ये इलेक्‍ट्रोड बच्‍चे की श्रवण प्रणाली द्वारा उत्पन्न विद्युत प्रतिक्रियाओं का पता लगाती हैं। अगर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, तो बच्चा सुन नहीं सकता। बैटरी संचालित उपकरण गैर-इनवेसिव है, जिसका अर्थ है कि शिशुओं को बेहोश करने की ज़रूरत नहीं है। इस उपकरण का अन्य परीक्षण प्रणालियों की अपेक्षा महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह पेटेंट और इन-बिल्‍ट एल्गोरिथम है, जो परीक्षण संकेत से परिवेश के शोर को बाहर निकालता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वास्थ्य क्लीनिकों में बहुत भीड़भाड़ और शोर हो सकता हैं। इस उपकरण को पांच नैदानिक ​​केंद्रों में स्थापित किया गया है जो वर्तमान में श्रवण स्क्रीनिंग कार्यक्रम चला रहे हैं। इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर उत्‍पादन बढ़ाने से पहले प्रथम वर्ष में अस्पताल में पैदा होने वाले दो प्रतिशत बच्‍चों की जांच करना है। इस परियोजना की महत्वाकांक्षी योजना हैं- भारत में पैदा होने वाले प्रत्येक बच्चे की जांच करना।