2019 में भारतीय जनता पार्टी को क्या दोबारा मिल पाएगा सांसद दार्जिलिंग क्षेत्र से

राजेश शर्मा

दार्जीलिंग 25 जुलाई । भारत में इन दिनों भारतीय जनता पार्टी हो या विभिन्न राजनीतिक पार्टियों हो उन लोगों ने छोटा छोटा राज्य गठन को लेकर सोचने की आरंभ कर दिया है जिसका जानकारी भारत का सरकारी संबंधित विभागीय की ओर से जानकारी मिली है  । इसी छोटे राज्य गठन हेतु भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र में रहने वाले गोरखालैंड एवं बोडोलैंड के लिए केंद्र सरकार की गृह मंत्रालय ने अपना कदम उठाना आरंभ कर दिया है । इसी दौरान गोरखालैंड के संबंध में हम कुछ जानकारी प्राप्त हेतु कहानी में आसान हो रहा है। गोरखा होने गोरखालैंड की मांग भारत का पश्चिम बंगाल राज्य के अधीन रहा दार्जिलिंग जिला एवं  कालेबुङ्ग जिला लगाए पराए एवं डुवार्स क्षेत्र का कुछ हिस्सा को मिलाकर नया राज्य करने मांग विगत 1986 से आरंभ हुआ था जिसके तहत गोरखा होने गोरखालैंड की आवाज बुलंद करते हुए भारत सरकार को सोचना मजबूर कर दिया था। उस 1986 के आंदोलन के दौरान 12:00 सौ गोरखा सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी आंदोलन के दौरान । 1986 के आंदोलन में गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के संस्थापक स्वर्गीय सुभाष  घिसिंग अगुवाई में हुआ था। इस आंदोलन के दौरान स्वर्गीय सुभाष की घिशिग ने भारत सरकार के समक्ष बातचीत के दौरान 1950 भारत। एवं नेपाल की संधि को लेकर भारत सरकार को सोचने में मजबूर कर दिया था । जिसके तहत भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री एवं पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सरकार की बातचीत के दौरान दार्जिलिंग पर्वतीय परिषद के नाम से दार्जिलिंग को एक ऑटो नवमी काउंसिल दिया गया जो बंगाल सरकार के अधीन रहा था । इस गोरखा जाति के लिए दार्जिलिंग गोरखा पार्वती परिषद को लेकर स्वर्गीय सुभाष   घिसिंग ने 22 अगस्त 2000 अट्ठासी में शासन का बागडोर लेकर लेते हुए 22 साल करीबन राज करने के उपरांत दार्जिलिंग क्षेत्र में पूर्ण गोरखालैंड राज्य का लेकर आवाज बुलंद हो गया । परंतु 22 साल तक राज किया हुआ गोरामुमो पार्टी के और से जनता को उन अलग राज्य का आपूर्ति को लेकर कुछ सहूलियत देने में सक्षम नहीं रहा जिसके तहत 7 अक्टूबर 2007 के दिन में से बिमल गुरुंग के नेतृत्व पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नाम से एक नई पार्टी उबड़ के आया । इन पार्टी ओने गोरखालैंड राज्य की आवाज को बुलंद करने के तहत पहाड़ में  रहा गोरखाओं की समर्थन जुटाने में समक्ष सफल होते हुए तराई एवं 2 वर्ष में रहने वाले उन गोरखाओं का मनु बल को बढ़ोतरी करते हुए गोरखालैंड आंदोलन का कार्यक्रम चरम सीमा में लेकर गोरखा उनकी अलग से पहचान बनाने के लिए विमल गुरुङ ने 18:जुलाई 2011 के दिन सिलीगुड़ी का प्रिन्टल विलेज मेंकेंद्र सरकार राज्य सरकार एवं गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के साथ में एक त्रिपक्षीय वार्ता के तहत गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन का स्थापन किया जो 22 अगस्त 1988 में प्राप्त हुआ दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद को अंत करते हुए गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन जो गोरखालैंड  टैरोलिरियल एडमिशन के नाम से स्थापित किया गया । मगर गोरखाओं ने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन जो अमान्य मानते हुए पूर्ण रूप से आंदोलन करने की तैयारी की गई जिसमें बंगाल सरकार असंतुष्ट होकर गोरखा को विभाजन के तहत गोरखाओं को विभिन्न आजाद गोष्ठियों पर विभाजन करने की योजना बनाते हुए बंगाल सरकार ने गोरखाओं परिवारजन की नीति अपनाई गई जिसके तहत पहाड़ में दोबारा सलका गोरखालैंड की आवाज जिसके तहत 104 दिन पहाड़ बंद रहा और इस आंचल के दौरान बंगाल सरकार से हाथ मिलाने के लिए गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के वर्तमान अध्यक्ष मोन घिसिङ्ग ने बंगाल सरकार को एक पत्र लिखते हुए गोरखाओं को चलनी करने की आरंभ कर दिया जिसके तहत पहाड़ में रहने वाले इन दिनों गोरखा बंगाल सरकार एवं केंद्र सरकार से असंतुष्ट है ।  इस रूठे हुए गोरखा होने आने वाले2019 के लोकसभा चुनाव में किस पार्टी को बुलंद करके वह विजय बनाकर यहां से सांसद बना कर भेजेंगे यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है इन दिनों इस क्षेत्र में । मगर गोरखालैंड आंदोलन के तहत गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के संस्थापक प्रमुख नेता विमल गुरूंग भूमिगत होने के उपरांत पहाड़ में उन गोरखालैंड प्रेमी गोरखा साथियों ने भी बंगाल सरकार से कुछ हाथ मिलाना मजबूर हो गए जिसके बाद देखा जा रहा है पिछले दिनों में गोरखा जातियों का बहुमत से मतदान देकर भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुरेंद्र सिंह आहलूवालिया को यहां से भारी मतों से विजय बनाकर भारतीय जनता पार्टी का सांसद बनाकर दिल्ली भेजे थे परंतु इन दिनों यूज़ पर खड़ा सवाल खड़ा हो रहा है सुरेंद्र सिंह आहलूवालिया अपने संसदीय क्षेत्र में अभी तक नहीं जा पा रहे हैं जिसके साथ वहां की जनता रूठे हुए हैं भारतीय जनता पार्टी से ।  देखना यह है कि वह खाओ कि मन सुबह की मांग जो अलग राज्य की है उस पर भारत की केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाएंगे उस पर इन दिनों बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी की इस बार 2019 में लोकसभा के सांसद दार्जिलिंग क्षेत्र से बन पाना काफी बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है जिसे भारतीय जनता पार्टी को बंगाल में काफी बड़ा नुकसान होने की संकेत भी दिखा जा रहा है जो कि 2014 में हुआ उसके आगे के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का सांसद यहां से खाता खोला गया था मगर अभी आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी गोरखाओं की जन्म सिद्ध अधिकार गोरखालैंड को क्या दे पाएगी या पहाड़ को क्या नया रूप दे पाएगी इस पर निर्णायक घड़ी पर टिकी हुई है । देखना यह है कि 2019 में अगर भारतीय जनता पार्टी दार्जिलिंग क्षेत्र से अपना उम्मीदवार विजय कर के भेजते का मंसूबा है तो दार्जिलिंग को केंद्र शासित प्रदेश घोषणा करना होगा इस तरह का मांग क्षेत्र का लोगों का कहना है ।  गोरखालैंड की आवाज बुलंद करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को अपना घटक दल के रूप में माना गया था परंतु आज तक उन्होंने वह वादे को पूरा नहीं करने कि बिलाल जाना लगा रहे हैं विभिन्न राजनीतिक पार्टियों इस वक्त। जिसे भारतीय जनता पार्टी को काफी नुकसान है भारतीय जनता पार्टी अगर बंगाल में 25 सीट लाने की जो घोषणा अमित शाह ने की थी उस पर खड़ा अंकुश आने का संकेत है । भारतीय जनता पार्टी एक विशाल राजनीतिक पार्टी है मगर इस बार बंगाल में उनका खाता खोलना भी मुश्किल देखा जा रहा है जो कि ममता सरकार ने बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को चुनावी जनसभा तो छोड़ दे अगर वर्तमान अवस्था में किसी भी क्षेत्र में किसी भी गांव में किसी भी प्रांत में जनसभा आदि कार्यक्रम करने की अनुमति सरकारी तौर से नहीं मिल रहा है जिसके तहत कोई भी उसका उल्लंघन करते हुए सभा आदि करते हैं उन पर बंगाल सरकार की कानूनी रूप से कार्रवाई होती है जिसे 2019 के लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को तृणमूल सरकार की यह नीति पर टिक पाना काफी बड़ा सवाल खड़ा हो गया है ।  बताया जा रहा है कि इन दिनों गोरखाओं की गोरखालैंड मांग को सोचने के बदले आसाम के बोरों जाति का बोडोलैंड के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपना कदम उठाना आरंभ कर दिया है जिस पर गोरखाओं ने असंतुष्ट व्यक्त करते हुए गोरखालैंड राज्य को लेकर दिल्ली में आंदोलन करने की घोषणा भी गोरखालैंड राज्य निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष दावा फाखरीन ने अपने पत्रकार सम्मेलन में घोषित कर दिया है । देखना यह है कि पहाड़ में होने वाले इन दिनों और रणनीति के सामना एवं तराई क्षेत्र में रहने वाले उन तमाम गोरखाओं तथा भारत के विभिन्न प्रांतों में रहने वाले गोरखाओं ने क्या भारतीय जनता पार्टी को देंगे वहां नहीं देंगे यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो चुका है । भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बारंबार लाल चना लगाने की कार्य भी हो रहा है। यह सवाल गोरखाओं का जायज है जोकि 2014 की चुनावी जनसभा में सिलीगुड़ी का अप्रैल में आयोजित सुरेंद्र सिंह आलिया का प्रचार के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से घोषणा की थी कि गोरखाओं की सपना मेरी सपना बोल कर वहां से उन्होंने मत  हासिल करने का रणनीति अपनाया था जिसको देखकर वह सुनकर क्षेत्र का गोरखा उन्हें नरेंद्र मोदी की सरकार कमल के फूल में अपना मत खराब कर भारतीय जनता पार्टी का सांसद दिल्ली भेजा गया था मगर आज तक गुड़गांव की समस्या के ऊपर भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुरेंद्र सिंह आहलूवालिया ने कुछ कदम नहीं उठाए कर गोरखाओं को लूटना मजबूर कर दिया है। इन प्रधानमंत्री की गुफाओं की मेरी सपना आवाज की घोषणा की थी उस पर बारंबार एक सवाल खड़ा हो रहा है गुड़गांव की सपना मेरा सपना गोरखालैंड पर भारत के प्रधानमंत्री आप कब सोचेंगे इस तरह का सोशल मीडिया एवं प्राथमिक मीडिया में चर्चा का विषय बन गया है । तथा2016 के विधानसभा के चुनाव के दौरान आए हुए प्रधानमंत्री ने वीर बड़ा का खेल मैदान से एक घोषणा की थी गोरखा एक वीर जाती है जो भारत के चारों सिवाना में अपना जान की परवाह नहीं करते हुए भारत माता का सुरक्षा में अपना प्राण का अवधी देकर अपना कार्य निभाते हैं जो भारत के गोरखाओं का गर्व है जिसे के कारण भारत में रहने वाले तमाम लोग शांति से रह पाने में काफी बड़ा भूमिका होने की बात कही गई थी उस पर भी लोगों का एक विश्वास था गोरखाओं के प्रति भारत का नरेंद्र मोदी ने कुछ ना कुछ करेंगे परंतु आज तक  गोरखाओं को लेकर केंद्र सरकार ने कुछ कदम नहीं उठाने पर केंद्र शासित रहा भारतीय जनता पार्टी को इस बार मत देंगे या नहीं देंगे यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो चुका है .