बचाव के साथ-साथ आरोग्यकारी स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना आवश्यक – वेंकैया नायडू

नई दिल्ली – भारत में पहली बार आयोजित 15वें विश्व ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन 2018 का उद्घाटन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने नई दिल्ली में किया।  चार दिन  तक चलने वाले इस चार दिवसीय सम्मेलन में 40 से अधिक देशों के हजारों विदेशी प्रतिनिधि, मेडिकल प्रैक्टिसनर्स और प्रोफेशनल प्रशिक्षु हिस्सा लेंगे।

भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा ‘ 70 साल की आजादी के बाद भी भारत की 52 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और समग्र रूप से उनके विकास को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। भारत सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखकर काम कर रही है। डॉक्टर-मरीज का गिरता अनुपात, स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति और स्वास्थ्य सेवाओं की कम उपयोगिता, कुशल पारामेडिक का अभाव और खराब बुनियादी सुविधाएं इस क्षेत्र की बड़ी समस्याएं हैं। निजी क्षेत्रों, एनजीओ और डॉक्टरों के संगठन समेत सभी अंशधारकों की सक्रिय भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित और तरजीही चिकित्सा दी जानी चाहिए। समग्र और व्यवस्थित पहल ही इन असमानताओं को दूर कर सकती है और किफायती स्वास्थ्य प्रणाली सुनिश्चित कर सकती है। दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की दिशा में भारत भी सबसे तेजी से उभरता क्षेत्र है जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर 72 फीसदी खर्च निजी क्षेत्र में ही होता है।“
इस सम्मेलन में मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे में सुधार की रणनीति पर चर्चा के लिए कई कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा और भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना की बेहतरी के लिए नवोन्मेषण लाने में यह उपयोगी साबित होगा। वैज्ञानिक कार्यक्रमों पर चर्चा और चिकित्सा जगत के पेशेवरों द्वारा दूरदराज के इलाकों में ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए दौरा कार्यक्रमों पर भी इस आयोजन में चर्चा की जाएगी।
रूरल वॉन्का के चेयरमैन डॉ. जॉन विन ने कहा, “दुनिया में ग्रामीण स्वास्थ्य एक बड़ा मसला है और ज्यादातर ग्रामीणों तथा उनकी स्वास्थ्य जरूरतें मुख्य फोकस हैं। इस सम्मेलन का उद्देश्य 2030 (एसडीजी3) तक स्थायी विकास लक्ष्य हासिल करना है।”

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ग्रामीण स्वास्थ्य आडियाथॉन, अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माण और ग्रामीण स्वास्थ्य पर आर्ट फेस्टिवल शामिल हैं जिनके तहत लघु फिल्मों, संक्षिप्त, डॉक्यूमेंटरी, एनिमेशन और वीडियो प्रदर्शित किए जाएंगे।

एएफपीआई के आयोजक चेयरमैन और राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रमण कुमार के अनुसार, “ग्रामीण और प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सा में सुधार पर फोकस करना एक गंभीर मुद्दा बन गया है जो स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान के संदर्भ में देश की एक एक बड़ी चुनौती है। इस तरह का सम्मेलन, खासकर भारत में जहां 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, सभी आयुवर्ग के लोगों की सेहत को प्रोत्साहित करेगा। प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना में शोध एवं संशोधन की पद्धति के जरिये सरकार का सुधारात्मक कदम न सिर्फ स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार लाएगा, बल्कि देश के समग्र विकास में भी महत्वपूर्ण होगा।”

इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन दूसरे और तीसरे दिन पुरस्कार वितरित करेंगे। सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक अवधारणा का चयन फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर के जर्नल में प्रकाशन के लिए भी किया जाएगा।
एएफपीआई, नई दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अंकित ओम ने बताया कि, “ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों के अभाव पर लंबे समय से चर्चा होती रही है, जो बहुत हद तक सही नहीं है। जिस देश में जहां सालाना 60,000 एमबीबीएस डॉक्टर तैयार होते हैं, वहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए बमुश्किल 1700 भर्तियां की जाती हैं। बेहतर नीति निर्माण के साथ-साथ डॉक्टरों की प्रभावी उपयोगिता ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र के बेहतर प्रबंधन में मददगार हो सकती है। दूसरा, भारत में 200 से ज्यादा फार्मास्यूटिकल कंपनियां पंजीकृत हैं, लेकिन मरीज अभी भी मेडिसिन के लिए सरकारी सेक्टर पर निर्भर रहते हैं। सरकारी नीतियों को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि कम से कम दवाइयां भी सिर्फ सरकारी केंद्रों और निजी केंद्रों पर सब्सिडाइज्ड मूल्यों पर उपलब्ध हो सकें।