नई दिल्ली – ‘दृश्यते ज्ञायते वस्तुतत्त्वमनेनेति दर्शनम्’ अर्थात् जिसके द्वारा किसी वस्तु के तात्त्विक स्वरूप से अवगत हुआ जाये, उसे ‘दर्शन’ कहतेे है। छः प्रमुख आस्तिक और तीन नास्तिक दर्शन माने जाते है। इन दर्शन के प्रर्वतक आचार्यों के सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य, भाष्य पर वार्त्तिक, टीका आदि ग्रन्थ लिखे गये। कालान्तर में ‘बालानां सुखबोधाय’ प्रकरण ग्रन्थों की रचना होने लगी। कुछ प्रकरण-ग्रन्थों में विषय-वस्तु का प्रतिपादन विशद् रूप में किया गया है, यथा तर्कभाषा, वेदान्तसार, अर्थसंग्रहादि। इन ग्रन्थों में स्वपक्ष के साथ-साथ परपक्ष का खण्डन भी संक्षेप में किया गया है। कुछ सूत्र रूप में लिखे गये है, यथा तर्कसंग्रहादि। न्यायशास्त्रपरक भाष्यादि ग्रन्थ ‘त्रिविधा चास्य प्रवृत्तिरुद्देश्यो लक्षणं परीक्षा चेति’ शैली में लिखे गये है किन्तु प्रकरण ग्रन्थों में उद्देश्य और लक्षण दिये गये है। लक्षण के परीक्षण के बिना तत्त्वज्ञान नहीं होता है। फलतः परीक्षण के लिए ग्रन्थकार अपने ही ग्रन्थ पर पृथक् से टीका लिखते है। यथा – अन्नम्भट्ट ने ‘तर्कसंग्रह’ पर ‘तर्कदीपिका’ टीका तथा आचार्य विश्वनाथ कृत ‘भाषापरिच्छेद’ पर ‘न्यायसिद्धान्तमुक्तावली’। ग्रन्थकारकृत इन तथा अन्य टीकाओं के अध्ययन-अध्यायपन के बिना विषय को आत्मसात् नहीं किया जा सकता है। टीकाएँ बिना सूत्र, भाष्यादि के समझी और समझाई नहीं जा सकती है। अतः प्रकरण ग्रन्थों को बालकों के लिए सुखबोध पूर्वक कैसे बनाया जाए? क्या टीकाओं के आधार पर पढ़ाया जाए अथवा ऐतिहासिक क्रम से पदार्थों के विकास को भी बतलाया जाए? पूर्वपक्ष का उपस्थापन किन ग्रन्थों के आधार पर किया जाये? अथवा किसी अन्य नवाचार माध्यम से पढ़ाया जाये? इत्यादि बिन्दुओं पर विचार-विमर्श करने के प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। एक दिवसीय संगोष्ठी की संयोजक व हिन्दू कॉलेज की डॉ अनीता राजपाल ने बताया कि भारतीय दर्शन में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियोें और शिक्षकों दोनों को ही दर्शन की नींव मजबूत करने का सुअवसर प्राप्त होगा। उन्होंने बताया इसमें देश के विभिन्न महाविद्यालयों के शोधार्थी भाग लेंगे।
नास्तिक दर्शनों की प्रमुख विशेषताएँ।
आस्तिक अथवा नास्तिक दार्शनिक सम्प्रदायों के शिक्षण-प्रविधि सम्बन्धी सामान्य सिद्धान्त।
प्रकरण-ग्रन्थों की शिक्षण-विधियाँ।
ग्रन्थ विशेष की विषय-वस्तु: प्रमेय, प्रमाण, मूल्यमीमांसा, कोई सूत्र अथवा पंक्ति इत्यादि की व्याख्या पद्धति।
ग्रन्थकार की विषय-प्रतिपादन की भाषा-शैली।
हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत अथवा अन्य किसी भाषा में उपलब्ध प्रकरण-ग्रन्थों की व्याख्याओं में निर्दिष्ट शिक्षण-प्रविधि।
प्रकरण-ग्रन्थों की शिक्षण-प्रविधि में नवाचार प्रयोग।
भारतीय/ आस्तिक अथवा नास्तिक दर्शन की प्रमुख समस्यायें और उनके समाधान।