कुष्ठ  रोग- कलंक   नहीं बल्कि ऐसी बीमारी है जिसका  इलाज संभव है

डाॅ साक्षी श्रीवास्तव, कन्सलटेन्ट,
जेपी    हाॅस्पिटल, नोएडा
कुष्ठरोग जिसे आमतौर पर हैन्सन्स रोग कहा जाता है, इसका कारण धीमी गति से विकसित होने वाला एक जीवाणु है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्रीडण् समचतंमद्ध कहलाता है। इस रोग में त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है, त्वचा पर ऐसी गांठें या घाव हो जाते हैं जो कई सप्ताह या महीनों के बाद भी ठीक नहीं होते। इसमें  तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिसके चलते हाथों और पैरों की पेशियां कमज़ोर हो जाती हैं और उनमें संवेदनशीलता कम हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज दुनिया भर में तकरीबन 180,000 लोग कुष्ठ रोग से संक्रमित हैं, जिसमें से अधिकतर अफ्रीका और एशिया में हैं। कुष्ठ रोग से कई गलत अवधारणाएं जुड़ी हैं, जिनके चलते बीमारी से ग्रस्त लोगों को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। बहुत से लोग मानते हैं कि यह रोग मानव स्पर्श से फैलता है, लेकिन वास्तव में यह रोग इतना संक्रामक नहीं है। यह रोग तभी फैलता है जब आप ऐसे मरीज़ के नाक और मुँह के तरल के बार-बार संपर्क में आएं, जिसने बीमारी का इलाज न कराया हो। बच्चों में व्यस्क की तुलना में कुष्ठ रोग की संभावना अधिक होती है। जीवाणु के संपर्क में आने के बाद लक्षण दिखाई देने में आमतौर पर 3-5 साल का समय लगता है। जीवाणु/ बैक्टीरिया के संपर्क में आने तथा लक्षण दिखाई देने के बीच की अवधि को इन्क्यूबेशन पीरियड कहा जाता है।  रोग सबसे पहले परिधीय तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और इसके बाद त्वचा एवं अन्य उतकों/ अंगों, विशेष रूप से आंखों, नाक के म्यूकस तथा उपरी श्वसन तंत्र पर इसका प्रभाव पड़ता है। निदान और इलाज में देरी के परिणाम घातक हो सकते हैं। इसमें आखों की पलकों और भौहों के बाल पूरी तरह से उड़ जाते हैं, पेशियां कमज़ोर हो जाती हैं, हाथों और पैरों की तंत्रिकाएं स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति अपंग हो सकता है। इसमें पैरों में भी गहरी दरारें आ जाती हैं, जिसे फिशर फीट कहा जाता है। इसके अलावा जोड़ों में अचानक दर्द, बुखार, त्वचा पर हाइपो पिगमेन्टेड घाव और गंभीर अल्सर भी इसके लक्षण हैं। इसके अलावा नाक में कन्जेशन, नकसीर आना, नाक के सेप्टम का खराब होना, आइरिटिस (आखों की आइरिस में सूजन), ग्लुकोमा (आंख का एक रोग जिसमें आॅप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है) भी इसके लक्षण है। कुष्ठरोग- पायलट इरेक्टाईल डिस्फंक्शन, बांझपन और किडनी फेलियर का कारण भी बन जाता है।   रोग के लक्षणों एवं स्किन स्मीयर के परिणामों के आधार पर कुष्ठ रोग का वर्गीकरण किया जाता है। स्किन स्मीयर की बात करें तो जिन मरीज़ों में सभी साईट्स पर स्मीयर के परिणाम नकारात्मक होते हैं, उन्हें पाॅसिबेसिलरी  लेप्रोसी ;च्ठद्ध कहा जाता है। वहीं जिन मरीज़ों में किसी  एक साईट पर परिणाम सकारात्मक आए उन्हें मल्टीबेसिलरी लेप्रोसी ;डठद्ध कहा जाता है।   पाॅसिबेसिलरी लेप्रोसी में मरीज़ को 6 महीनों के लिए डेपसोन और रिफाम्पिसिन पर रखा जाता है। वहीं मल्टीबेसिलरी लेप्रोसी के इलाज में 12 महीनों तक मरीज़ को रिफाम्पिसिन, डेपसोन और क्लोफाज़िमिन पर रखा जाता है। इसके अलावा कई अन्य एंटीबायोटिक दवाएं भी दी जाती हैं। पिछले 20 सालों में रोग के 16 मिलियन मरीज़ों का इलाज किया जा चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कुष्ठ रोग के लिए मुफ्त इलाज उपलब्ध कराता है।  कुष्ठ रोग से बचने के लिए ऐसे सक्रंमित मरीज़ से बचना ज़रूरी है जिन्होंने अपना इलाज न करवाया हो। रोग का जल्दी निदान सही इलाज के लिए महत्वपूर्ण होता है। जल्दी इलाज शुरू होने से उतकों को  क्षतिग्रस्त  होने  से  बचाया  जा  सकता  है।  रोग  को  फैलने  से  रोका  जा  सकता  है  और  गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है। अगर रोग की अडवान्स्ड अवस्था में निदान हो तो मरीज़ अपंग हो सकता है, उसके शरीर के विभिन्न अंगों में विरूपता आ सकती है। इसलिए जल्दी निदान इलाज का सबसे अच्छा तरीका है।