पण्‍डित दीनदयाल उपाध्‍याय शताब्‍दी समारोह तथा स्‍वामी विवेकानंद के शिकागो में दिए गए भाषण की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर छात्रों के सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

मुझे बताया गया कि यहां पर जगह कम पड़ी है तो किसी और कमरे में भी शायद काफी बड़ी मात्रा में लोग बैठे हैं। उनका भी मैं आदरपूर्वक स्‍मरण करता हूं।

आज 11 सितंबर है। विश्‍व को 2001 से पहले यह पता ही नहीं था कि 9/11 का महत्‍व क्‍या है। दोष दुनिया का नहीं था, दोष हमारा था कि हमने ही उसे भुला दिया था, और अगर हम न भुलाते तो शायद 21वीं शताब्‍दी का भयानक 9/11 न होता। सवा सौ साल पहले एक 9/11 था, जिस दिन इस देश के एक नौजवान ने कल्‍पना कीजिए करीब-करीब आप ही की उम्र का, 5-7 साल आगे हो सकते हैं। करीब-करीब आप ही की उम्र का गेरूए वस्‍त्र धारी दुनिया जिस कपड़ों से भी परिचित नहीं थी। विश्‍व जिसे गुलाम भारत के प्रतिनिधि के रूप में देख रहा था। लेकिन उसके आत्‍मविश्‍वास में वो ताकत थी कि गुलामी की छाया उसके न चिंतन में थी, न व्‍यवहार में थी, न उसकी वाणी में थी। वो कौन सी विरासत को उसने अपने अंदर संजोया होगा कि गुलामी के हजार साल के बावजूद भी उसके भीतर वो ज्‍वाला धधक रही थी, वो विश्‍वास उमड़ रहा था और विश्‍व को देने का साम्‍थर्य इस धरती में है, यहां के चिंतन में है, यहां की जीवन शैली में है। यह असामान्‍य घटना है।

हम खुद सोचें कि हमारे चारों तरफ जब negative चलता हो, हमारी सोच के विपरीत चलता हो, चारों तरफ आवाज़ उठी हो और फिर हमें अपनी बात बोलनी हो तो कितना डर लगता है। चार बार सोचते हैं, पता नहीं कोई गलत अर्थ तो नहीं निकाल देगा। ऐसा दबाव पैदा होता है इस महापुरूष की वो कौन सी ताकत थी कि इस दबाव को कभी उसने अनुभव नहीं किया। भीतर की ज्‍वाला, भीतर की उमंग, भीतर का आत्‍मविश्‍वास इस धरती की ताकत को भली भांति जानने वाला इंसान विश्‍व को सामर्थ्‍य देने, सही दिशा देने, समस्‍याओं के समाधान का रास्‍ता दिखाने का सफल प्रयास करता है। विश्‍व को पता तक नहीं था। कि Ladies and Gentlemen के सिवाय भी कुछ बात हो सकती है। और जिस समय Brothers and sisters of America यह दो शब्‍द निकले मिनटों तक तालियों की गूंज बज रही थी। उस दो शब्‍दों में भारत की वो ताकत का उसने परिचय करवा दिया था। वह एक 9/11 था। जिस व्‍यक्ति ने अपनी तपस्‍या से माँ भारती की पदयात्रा करने के बाद, जिसने माँ भारती को अपने में संजोया था। उत्‍तर से दक्षिण पूर्व से पश्चिम, हर भाषा को हर बोली को जिसने आत्‍मसात किया था। एक प्रकार से भारत मां की जादू तपस्‍या को जिसने अपने भीतर पाया था। ऐसा एक महापुरूष पल दो पल में पूरे विश्‍व को अपना बना लेता है। पूरे विश्‍व को अपने अंदर समाहित कर लेता है। हजारों साल की विकसित हुई भिन्‍न-भिन्‍न मानव संस्‍कृति को वो अपने में समेट करके विश्‍व को अपनत्व की पहचान देता है। विश्‍व को जीत लेता है। वो 9/11 था विश्‍व विजयी दिवस था मेरे लिए। विश्‍व विजयी दिवस था और 21वीं सदी के प्रारंभ का वो 9/11 जिसमें मानव के विनाश का मार्ग, संहार का मार्ग, उसी अमरीका के धरती पर एक 9/11 को प्रेम और अपनत्व का संदेश दिया जाता है, उसी अमरीका के धरती पर उस संदेश को भुला देने का परिणाम था कि मानव के संहार के रास्‍ते की एक विकृत रूप विश्‍व को हिला दिया था। उसी 9/11 को हमला हुआ और तब जाकर दुनिया को समझ आया कि भारत से निकली हुई आवाज 9/11 को किस रूप में इतिहास में जगह देती हैं और विनाश और विकृति के मार्ग पर चल पड़ा ये 9/11 विश्‍व के इतिहास में किस प्रकार अंकुरित रह जाता है और इसलिए आज जब 9/11 के दिन विवेकानंद जी को अलग रूप से समझने की आवश्‍यकता मुझे लगती है।

विवेकानंद जी के दो रूप, अगर आप बारीकी से देखोगे तो ध्‍यान में आएगा। विश्‍व में जहां गए वहां, जहां भी बात करने का मौका मिला वहां बड़े विश्‍वास के साथ, बड़े गौरव के साथ भारत का महिमामंडन, भारत की महान परंपराओं का महिमामंडन, भारत की महान परंपराओं का महिमामंडन, भारत की महान चिंतन का महिमामंडन उसको व्‍यक्‍त करने में वो कभी थकते नहीं थे। रूकते नहीं थे, कभी उलझन अनुभव नहीं करते थे। वो एक रूप था विवेकानंद का और दूसरा रूप वो था जब भारत के भीतर बात करते थे तो हमारी बुराइयों को खुलेआम कोसते थे। हमारे भीतर की दुर्बलताओं पर कठोर घात करते थे और वो जिस भाषा का प्रयोग करते थे उस भाषा का प्रयोग तो आज भी हम अगर करें तो शायद लोगों को आश्‍चर्य होगा कि ऐसे कैसे बोल रहे हैं। ये समाज के हर बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाते थे। और समय के समाज की कल्‍पना कीजिए जब Ritual का महत्‍व ज्‍यादा था, पूजा पाठ, परंपरा, ये सहज समाज जीवन की प्रकृति थी। ऐसे समय 30 साल का एक नौजवान, ऐसे माहौल में खड़ा होकर कह दे कि पूजा-पाठ, पूजा अर्चन मंदिर में बैठे रहने से कोई भगवान, वगवान मिलने वाला नहीं है। जन सेवा यही प्रभु सेवा, जाओ जनता जनार्दन गरीबों की सेवा करो, तब जा करके प्रभु प्राप्‍त होगा… कितनी बड़ी ताकत।

जो इंसान विश्‍व के अंदर जा करके भारत का गुणगान करता था, लेकिन भारत में आता था तो भारत के अंदर जो बुराइयां थीं वो बुराईयों पर कठोर प्रहार करता था। वे संत परंपरा से थे लेकिन जीवन में वे कभी गुरू खोजने नहीं निकले थे। ये सीखने और समझने का विषय है। वे गुरू खोजने के लिए नहीं निकले थे। वे सत्‍य की तलाश में थे। महात्‍मा गांधी भी जीवन भर सत्‍य की तलाश से जुड़े हुए थे। वे सत्‍य की तलाश में थे। परिवार में, आर्थिक स्थिति कठिन थी। राम कृष्‍ण देव मां काली के पास भेजते हैं। जा तूझे जो चाहिए मां काली से मांग और बाद में पूछा कुछ मांगा, बोले नहीं मांगा। कौन-सा मिजाज होगा, जो काली के सामने खड़े होकर भी मांगने के लिए तैयार नहीं है। भीतर वो कौन सा लौहतत्‍व होगा, वह कौन सी ऊर्जा होगी जिसमें यह सामर्थ्‍य पैदा हुआ। इसलिए वर्तमान समाज में जो बुराइयां हैं। क्‍या हमारे समाज के बुराइयों के खिलाफ हम नहीं लड़ेंगे। हम स्‍वीकार कर लेंगे। अमरीका की धरती पर विवेकानंद जी Brothers and Sisters ऑफ़ अमरीका कहें। हम खुद नाच उठे। लेकिन मेरे देश में ही मैं नौजवानों को विशेष रूप से कहना चाहूंगा क्‍या हम नारी का सम्‍मान करते हैं क्‍या। हम लड़कियों के प्रति आदर भाव से देखते हैं क्‍या जो देखते हैं उनको मैं 100 बार नमन करता हूं। लेकिन जो उसके भीतर इंसान नहीं देख पाते हैं, मानव नहीं देख पाते। यह भी ईश्वर की एक कृति है , अपनी बराबरी से है। ये भाव अगर नहीं देखते हैं, तो फिर स्‍वामी विवेकानंद के वो शब्‍दशिष्‍ट Brothers and Sisters ऑफ़ अमेरिका हमें तालिया बजाने का हक है कि नहीं है। 50 बार हमें सोचना है।

हम कभी सोचे हैं विवेकानंद जी कहते थे जनसेवा प्रभु सेवा। अब देखिए एक इंसान 30 साल की उम्र में पूरे विश्‍व में ऐसा जय-जयकार करके आया है। उस गुलामी के कालखंड में दो व्‍यक्तित्‍व जिसने भारत में एक नई चेतना नई ऊर्जा प्रकट की थी। दो घटनाओं ने, एक जब रविंद्रनाथ टैगोर को नॉबेल प्राइज मिला और जब स्‍वामी विवेकानंद जी का 9/11 के भाषण के देश दुनिया में चर्चा होने लगी। भारत गुलामी के कालखंड में एक नई चेतना का एक भाव पूरे भारत में इन दो घटनाओं ने जगाया था। और दोनों बंगाल की संतान थे | कितना गर्व होता है जब मैं दुनिया में किसी को जाके कहता हूं कि मेरे देश के रविंद्रनाथ टैगोर श्रीलंका का राष्‍ट्रगीत भी उन्‍होंने बनाया, भारत का राष्‍ट्रगीत भी उन्‍होंने बनाया, बांग्‍लादेश का राष्‍ट्रगीत भी उन्‍होंने बनाया। क्‍या हम हमारी इस विरासत के प्रति‍ गर्व करते हैं क्‍या और खोखला नहीं है। आज हिंदुस्‍तान में, दुनिया में हम एक युवा देश है। 800 मिलियन लोग इस देश में उस उम्र के हैं जो विवेकानंद जी ने शिकागो में भाषण दिया उससे भी कम उम्र के हैं। इस देश की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या विश्‍व में डंका बजाने वाले विवेकानंद जी की उम्र से कम उम्र की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या जिस देश की हो उस देश में विवेकानंद से बड़ी प्रेरणा क्‍या हो सकती है और इसलिए विवेकानंद जी ने काम कैसा किया, वो सिर्फ उपदेश देने वाले नहीं रहे। उन्‍होंने Ideas को Idealism में convert किया और Idealism और Ideas का combination करके Institutional फ्रेम वर्क बनाया। आज से करीब 120 साल पहले इस महापुरूष ने RamKrishna मिशन को जन्‍म दिया। विवेकानंद मिशन को जन्‍म नहीं दिया। RamKrishna को जन्‍म दिया। बात छोटी होती है, लेकिन अकलमंद को इशारा काफी होता है और उन्‍होंने RamKrishna मिशन का जिस भाव से उदय हुआ। आज 120 साल के बाद भी न Delusion आया है न Diversion आया है। एक ऐसी संस्‍था को कैसी मजबूत नींव बनाई होगी उन्‍होंने। फाउंडेशन कितना Strong होगा। Vision कितना क्लियर होगा। एक्‍शन प्‍लान कितना Strong होगा। भारत के विषय में हर चीज की कितनी गहराई से अनुभूति होगी तब जा करके एक संस्‍था 120 साल के बाद भी वो आंदोलन आज भी उसी भाव से चल रहा है।

मेरा सौभाग्‍य रहा है कि मुझे भी उस महान परंपरा में कुछ पल आचमन लेने का मुझे भी सौभाग्‍य मिला है। जब विवेकानंद जी के 9/11 की भाषण की शताब्‍दी थी तो मुझे उस दिन शिकागो में जाने का सौभाग्‍य मिला था। उस सभागार में जाने का सौभाग्‍य मिला था और उस शताब्‍दी समारोह के अवसर पर मुझे शरीक होने का सौभाग्‍य मिला था। मैं कल्‍पना कर सकता हूं कि वो कैसा विश्‍व भाव था। कैसा वो भाव पल था।

क्‍या कभी दुनिया में किसी ने सोचा है कि किसी लेक्‍चर के सवां सौ वर्ष मनायी जाए। कुछ पल की वो वाणी, कुछ पल के वो शब्‍द सवा सौ साल के बाद भी जिंदा हों, जागृत हों, और जागृति पैदा करने का सामर्थ्‍य रखते हों। ये अपने-आप में हम लोगों के लिए एक महान विरासत के रूप में मनाने का अवसर है।

मैं यहां आया इतनी पूरी ताकत से वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम सुन रहा था। रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हृदय के अंदर भारत भक्ति का एक भाव सहजरूप से जग जाता है। लेकिन मैं सभानुभव को नहीं पूछ रहा हूं मैं पूरे हिंदुस्‍तान को पूछ रहा हूं क्‍या हमें वंदेमातरम कहने का हक है क्‍या। मैं जानता हूं मेरी यह बात बहुत लोगों को चोट पहुंचाएगी। मैं जानता हूं 50 बार 50 बार सोच लीजिए क्‍या हमें, हमें वंदे मातरम कहने का हक है क्‍या। हम वो लोग पान खा करके उस भारत मां पर पिचकारी मार रहे हैं और फिर वंदेमातरम बोले। हम वो रोज सारा कूड़ा-कचरा भारत मां पर फेंके और फिर वंदेमातरम बोले। वंदेमातरम बोलने का इस देश में सबसे पहला किसी को हक है तो देशभर में सफाई का काम करने वाले भारत मां के उन सच्‍चे संतानों को है जो सफाई करते हैं और इसलिए, और इसलिए हम यह जरूर सोचें कि ये हमारी भारत माता सुजलां सुफलाम् भारत माता। हम सफाई करें या नहीं करें गंदा करने का हक हमें नहीं है। गंगा के प्रति श्रद्धा हो, गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुलते हों। हर नौजवान के मन में रहता है कि मेरे मां-बाप को एक बार गंगा स्‍नान कराऊं लेकिन क्‍या उस गंगा को हम गंदा करने से हम अपने आप को रोक पाते हैं क्‍या। क्‍या आज विवेकानंद जी होते तो हमें इस बात पर डांटते कि नहीं डांटते। हमें कुछ कहते कि नहीं कहते और इसलिए कभी-कभी हम लोगों को लगता है कि हम स्वस्थ इसलिए क्योंकि डॉक्टरों की भरमार है , क्योंकि उत्तम से उत्तम डॉक्टर हैं। जी नहीं, हम इसलिए स्वस्थ नहीं हैं क्योंकि हमारे पास उत्तम से उत्तम डॉक्टर हैं।

हम स्‍वस्‍थ इसलिए हैं कि कोई मेरा कामदार सफाई कर रहा है |डॉक्‍टर से भी ज्‍यादा अगर उसके प्रति सम्मान रहे तब जाकर वंदे मातरम कहने का आनंद आता है। और इसलिए मुझे बराबर याद है एक बार मैंने बोल दिया पहले शौचालय फिर देवालय। बहुत लोगों ने मेरे बाल नोंच लिये थे। लेकिन आज मुझे खुशी है कि देश में ऐसी बेटियां हैं जो शौचालय नहीं, तो शादी नहीं करेंगी ऐसा तय कर लिया। हम लोग हजारों साल से टिके हैं। उसका कारण क्‍या है। हम समयानुकुल परिवर्तन के अनुसार लोग हैं। हम हमारे भीतर से ऐसे लोगों को जन्‍म देते हैं जो हमारी बुराईयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए नेतृत्‍व देते हैं और वह ही हमारी ताकत है। और इसलिए स्‍वामी विवेकानंद जी का हम स्‍मरण करते हैं तब वो 9/11 शब्‍दों का भंडार नहीं था। वो एक तपस्‍वी की वाणी थी, एक तप वाणी थी, तब जा करके यह निकलता था जो दुनिया को अभिभूत कर देता था। वरना हिन्‍दुस्‍तान याद है सांप-सपेरों का देश, जादू-टोना वालों का देश एकादशी को क्‍या खाना और पूर्णिमा को क्‍या नहीं खाना , यही देश यही हमारी पहचान थी। विवेकानंद ने दुनिया के सामने कह दिया था हमारा हमारी परंपरा के नीचे उनकी परंपरा नहीं है। क्‍या खाना, क्‍या नहीं खाना यह मेरे देश की संस्‍कृति परंपरा नहीं है, वो तो हमारी व्‍यवस्‍थाओं का हिस्‍सा होगा, हमारी सांस्‍कृतिक व्‍यवस्‍था अलग है। आत्मवत् सर्व भूतेषु यह हमारी सोच है। अहम् ब्रह्मास्मि ऐसी निकली हुई बातें नहीं है। कृण्वन्तो विश्वं आर्यम यह आर्य शब्‍द हम पूरे विश्‍व को सुसंस्‍कृत करेंगे, इस अर्थ में है किसी जाति परिवर्तन धर्म परिवर्तन के लिए नहीं है और इसलिए जिस महान विरासत के हम उस परंपरा से पले-बढ़े लोग हैं यह सब इस धरती की पैदावर है।

सदियों की तपस्‍या से निकली हुई चीजें.. इस देश के हर व्‍यक्ति ने इसके अंदर कुछ कुछ जोड़ा ही है। यही तो देश है भीख मांगने वाला भी तब तो ज्ञान से भरा हुआ होता है। जब कोई आता है तो कहता है देने वाला का भी भला न देने वाला का भी भला। और इसलिए स्‍वामी विवेकानंद जी की सफलता का मूल आधार यह था उनके भीतर आत्‍म सम्‍मान और आत्‍म गौरव का भाव था। और आत्‍म मतलब not a person जिस देश को वो represent कर रहे थे उसकी इस महान विरासत को आत्‍म गौरव, आत्‍म सम्‍मान के रूप में उन्‍होंने प्रस्‍तुत किया था। क्‍या हम कभी सोचते है कि हम क्‍या कहते हैं। किसी अच्‍छी जगह पर हम चले जाए, बढि़या प्राकृतिक वातावरण हो, साफ-सुथरा हो, बहुत अच्‍छा लगता हो तो पहला शब्‍द क्‍या निकलता है मुंह से …यह लगता नहीं है कि हिन्‍दुस्‍तान है.. कहते है कि नहीं कहते ऐसा। बताइये ऐसा होता है कि नहीं होता है। अगर भीतर आत्‍म-सम्‍मान, आत्‍म गौरव से पले-बढ़े होते, तो यह भाव नहीं आता, गर्व होता चलिए भाई कुछ भी हो मेरे देश में भी यह है, ऐसा है।

विवेकानंद जी, मैं सच बताता हूं दोस्‍तो आज के संदर्भ में विवेकानंद जी को देखें.. कुछ लोगों को लगता होगा जब मैं कहता हूं Make in India, Make in India तो बहुत लोग है जो कहते हैं कि इसका विरोध करने वाले भी लोग हैं। कुछ कहते हैं कि Make in India नहीं Made in India चाहिए। ऐसा भी कहते हैं बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग तो भांति-भांति की चीज निकाल लेते हैं। लेकिन जिसको मालूम होगा कि विवेकानन्‍द जी और जमशेद जी टाटा के बीच जो संवाद हुआ, अगर वो संवाद मालूम होगा। विवेक जी और जमशेद जी टाटा के बीच का जो पत्र व्‍यवहार है वो किसी ने देखा होगा तो पता चलेगा कि उस समय गुलाम हिन्‍दुस्‍तान था। तब भी विवेकानंद 30 साल का नौजवान जमशेद जी टाटा जैसे व्‍यक्ति को कह रहा है। कि भारत में उद्योग लगाओ न। Make in India बनाओ न। और स्‍वयं जमशेद जी टाटा ने लिखा है, स्‍वयं कहा कि विवेकानंद जी के वो शब्‍द, वो बाते मेरे लिए प्रेरणा रही। उसी के कारण मैं इस भारत के अंदर भारत के उद्योगों को बनाने के लिए गया।

आप हैरान होंगे जी हमारे देश में first agriculture revolution विवेकानंद जी के विचारों में निकलता है कि भारत में कृषि क्रांति कैसे करनी चाहिए और डॉक्‍टर सेन जो पहले agriculture revolution के मुखिया माने जाते हैं। उन्‍होंने यह institute बनाई थी उस institution का नाम विवेकानंद Agriculture Research Institution के नाम से रखा था। यानी हिन्‍दुस्‍तान में कृषि को आधुनिक बनाना चाहिए, वैज्ञानिक रिसर्च से बनाना चाहिए इस सोच की बाते विवेकानंद जी उस उम्र में करते थे।

आज जिसको ले करके के चर्चा है कि हमारा नौजवान University जाता है यह करता है। आज 9/11 पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय की शताब्‍दी समारोह से भी जुड़ा है और आज 9/11 जिस महापुरूष ने महात्‍मा गांधी को जी करके दिखाया, ऐसे आचार्य बनोवा भावे की भी जन्‍म जयंती है और आज जब मैं इस बात को कहता हूँ तब दीनदयाल जी के विचारों को जिन्‍होंने देखा होगा,सुना होगा, पढ़ा होगा। यही भावों को आधुनिक संदर्भ में प्रकटीकरण है, अन्‍त्‍योदय है, जन सेवा ही प्रभु सेवा है यह भी विवेकानंद जी कहते थे। आचार्य बिनोवा जी के बड़े निकट के साथी दादा धर्माधिकारी…गांधी जी जो सोचते थे, कहते थे उसको व्‍यक्‍त करने का काम जीवन के द्वारा बिनोवा जी ने किया और बिनोवा जी जो सोचते थे, उसको शब्‍दों में ढालने का काम दादा धर्माजी के चिंतन में दिखता है। दादा धर्माधिकारी जी ने एक किताब में लिखा है बड़ा मजेदार लिखा है। कोई नौजवान उनके पास आया नौकरी के लिए कोई परिचित के द्वारा आया था। वो चाहता था कि धर्माधिकारी जी कुछ सिफारिश करे, कुछ मदद करे तो कहीं काम मिल जाए। दादा धर्माधिकारी जी ने लिखा है उसको मैंने पूछा कि तुम्‍हें क्‍या आता है, तो उसने कहा कि मैं graduate हूं। उन्‍होंने दोबारा पूछा कि तुम्‍हें क्‍या आता है तो उसने दोबारा कहा कि मैं graduate हूं। वो समझ नहीं पाया दादा धर्माधिकारी कह रहे यह क्‍या पूछ रहे हैं। तीसरी बार पूछा कि भाई तुम्‍हें क्‍या आता है? नहीं बोले कि मैं graduate हूं। धर्माधिकारी ने पूछा कि तुम्‍हें Typing करना आता है क्‍या? तो बोले नहीं, खाना पकाना आता है? बोले नहीं, फर्नीचर बनाना आता है? बोले नहीं, चाय नाश्‍ता बनाना आता है? जी नहीं मुझे नहीं मैं तो graduate हूं। अब देखिए विवेकानंद जी ने क्‍या कहा था, विवेकानंद जी की हर बात हमारे दिमाग को बहुत बड़ा हिला देने वाली उनकी nature थी। और वो उसी भाषा में बात करते थे। और उन्‍होंने बड़ा मजेदार कहा- ‘Education is not the amount of information that we put into your brain and runs riot there, undigested, all your life.’. ऐसा ज्ञान का खजाना भर देते हैं कि undigested रहता है। If you have assimilated five ideas and made them your life and character, you have more education than any man who has got by heart a whole library… यानी पूरी library भरी पड़ी है सबके दिल दिमाग में लेकिन पांच उसूलों को ले कर जीता है …….. कहने का मतलब है उन्‍होंने Knowledge और skill को अलग किया। आज पूरे विश्‍व के हाथ में Certificate है उसका महत्‍व है कि हाथ में हुनर है, उसका महत्‍व है। इस सरकार ने उसी विचार को आगे बढ़ाने की कोशिश की है- Skill Development.

हमारे देश में Skill Development नया विषय नहीं है लेकिन पहले डिपार्टमेंटों में बिखरा पड़ा था कोई उसका मालिक नहीं था। जिसकी मर्जी पड़े उस दिशा में चलता था। हमने आ करके इन सारे Skill Development को एक जगह पर लाया उसका अलग Ministry बनायी अलग Department बनाया और Focus way में Skill Development जो कि देश में ऐसे नौजवानों को तैयार करे जिसको कभी किसी पर निर्भर न रहना पड़े। मेरे देश का नौजवान Job Seeker नहीं Job Creator बनना चाहिए। मेरे देश का नौजवान मांगने वाला नहीं देने वाला बनना चाहिए और इसलिए मैं आज जब स्‍वामी विवेकानंद जी के विचारों को याद कर रहा हूँ तब वो Innovation के पश्‍चात् अनुसंधान के पश्‍चात् वो घिसी पीटी टूटी-फूटी चीजों का बहिष्‍कार करने के लिए आह्वान करते हैं। कितनी महान क्‍यों न हो कितनी अच्‍छी क्‍यों न लगती हो लेकिन छोड़ने के लिए वो आह्वान करते हैं।

समाज जीवन भी तभी प्रगति कर सकता है कि जब नित्‍य नूतन हो, नित्‍य नूतन प्राणवान हो तभी जाकर हम सफल हैं और इसलिए हमारे देश की युवा पीढ़ी उसमें वो साहस चाहिए, वो जज्‍़बा चाहिए जिसमें Innovation कम हो। इरादा रहे कुछ लोगों को यही डर लगता है यार करूँ लेकिन फेल हो जाऊँ तो मैं करूं तो फेल हो जाऊँ दुनिया में कोई इंसान देखा है आपने जो फेलियर हुए बिना success हुआ हो। कभी-कभी तो success का रास्‍ता ही failure बनाती हैं और इसलिए Failure से घबराना ये जिंदगी नहीं होती दोस्‍तो! जो किनारे पर खड़ा है, वो डूबता नहीं दोस्‍तों जो पानी में छलांग रहा है डूबता भी है और डूबते हुए तैरना भी सीख लेता है जी। किनारे पर खड़े रह करके लहरे गिनते हुए जिंदगी पूरी कर लेता है जी। जो लहरों को पार करने का सामर्थ्‍य आता है तालाब में, नदी में, समंदर में कूदने का लोहा ले कर के चलता है स्‍वामी विवेकानंद जी ऐसे युवाओं की अपेक्षा करते हैं, ऐसे नौजवानों की अपेक्षा करते हैं।

आज भारत सरकार अभियान चला रही है Start-up India, Stand-up India मुद्रा से बिना बैंक गारंटी के पैसा मिलता है। मैं चाहूंगा मेरे देश का नौजवान मेरे देश की समस्‍याओं का समाधान के लिए नए Innovation नए Product ले करके आए और लोगों के पास जाए हिन्‍दुस्‍तान बहुत बड़ा Market है। मेरे देश के नौजवानों के बुद्धि और सामर्थ्‍य का इंतजार कर रहा है। और विवेकानंद जी ने जो Knowledge और Skill को जो अलग किया है आज समय की मांग है उसी भाव से हम Skill का महात्‍म्‍य बढ़ाते चलें। रातों रात नहीं होता है- बढ़ाते चलें। आप देखिए परिणाम कुछ और होता है। Innovation हमने हमारे नीति आयोग के द्वारा अटल Innovation Mission App चला रखा है। उसके साथ अटल Tinkering Labs उसके देश के छोटे-छोटे बालक जो इस प्रकार के Innovation करते हैं उनको प्रोत्‍साहन देने का एक पूरा movement चल रहा है। Silent Movement है लेकिन चल रहा है। और बहुत प्रतिभावान बच्‍चे नयी नयी चीजें लेकर के आए। मैं राष्‍ट्रपति भवन में जब प्रणव दा राष्‍ट्रपति थे, तो देश भर से इस प्रकार के बच्‍चों को एक बार उन्‍होंने बुलाया था। 12-15 बच्‍चे आये थे। वो अपने अपने Innovation की चीजें लाए थे, तो प्रणब दा ने मुझे आग्रह किया की जरा इन बच्‍चों को मिलो मैं देखने गया। मैं हैरान था वो 12-15 बच्‍चे थे उसमें से आधे से ज्‍यादा वो चीजों को Innovate करके लाए थे और 8वीं, 9वीं, 10वीं कक्षा के बच्चे थे। कूड़े कचरे का Waste को बेस्ट में कैसे Create करना उसके Project को लेकर आए थे देखिए स्‍वच्‍छता अभियान का प्रभाव कैसा था। वो उन चीजों को लेकर के आए थे कि कूड़ों कचरों से क्‍या बन सकता है। कहने का मेरा तात्‍पर्य यह है कि भातर में कोई प्रतिभा की कमी नहीं है। और उस पर हमें सोचना चाहिए आज पूरा विश्‍व विदेश नीति पर ढेर सारी चर्चाएं होती हैं। ये खेमा वो खेमा,ये ग्रुप वो ग्रुप कोल्‍ड वार ये बढिया बढिया क्‍या क्‍या शब्‍द चुने हैं। कभी विवेकानंद जी को किसी ने पढ़ा है क्‍या, उनकी विदेश नीति क्‍या थी। स्‍वामी विवेकानंद जी ने उस समय कहा था और आज 120 साल के बाद दुनिया के सामने नजर आ रहा है। उन्‍होंने कहा था One Asia, One Asia का concept दिया था और One Asia Concept के द्वारा उन्‍होंने कहा था कि विश्‍व जब संकटों से घिरा होगा तब उसको रास्‍ता दिखाने की ताकत अगर किसी में होगी तो One Asia में होगी एक सांस्‍कृतिक विरासत का धनी है- one Asia. आज दुनिया कह रही है कि 21वीं सदी Asia की है कोई कहता China की कोई कहता है भारत की लेकिन इसमें कोई मतभेद नहीं है कि सारी दुनिया कहती है कि 21वीं सदी Asia की सदी है।

125 साल पहले जिस महापुरूष ने ये दर्शन किया था One Asia की कल्‍पना की थी और विश्‍व के इस पूरे चित्र के अंदर One Asia क्‍या रोल प्‍ले कर सकता है समस्‍याओं का समाधान करने की मूलभूत ताकत इस One Asia में क्‍या पड़ी हुई हैं इसकी हजारों वर्ष की विरासत इसके पास क्‍या है ये दर्शन विवेकानंद जी के पास था। और इसलिए आधुनिक संदर्भ में हमें विवेकानंद जी को देखना चाहिए वे Entrepreneurship को बढ़ावा देने की बात करते हैं उनकी हर बातचीत में भारत सामर्थ्‍यवान, सशक्‍त बने उसके आधार क्‍या तो Agriculture Revolution की बात करते हैं तो दूसरी तरफ Innovation की बात करते थे तो तीसरी तरफ वे Entrepreneurship की बात करते थे। और समाज के अंदर जो दोष हैं उसके खिलाफ लड़ाई लड़ने की भी बात करते थे। छुआ-छूत के खिलाफ वो इतना बोलते थे ,पागलपन कहते थे- ये छुआ-छूत, ऊँच-नीच के भाव को पागलपन कहते थे जिस महापुरूष ने इतना सारा दिया आज दीनदयाल जी की जन्‍म शताब्‍दी मना रहे है, तब वो भी अंत्‍योदय की बात करते थे।

महात्‍मा गांधी भी कहते थे कोई भी निर्णय करिए तो समाज के जो आख़िरी छोर पर बैठा है उसका भला होगा की नहीं इतना देख लीजिए। आप का निर्णय सही होगा।

पिछले दिनों कुछ नौजवानों ने कार्यक्रम किया और वो कार्यक्रम था जो अटल जी के समय गोल्‍डन चतुष्कोण बना था उस पर ट्रेवलिंग करने का, साइकिल ले करके गये और Relay Race किया। उन्‍होंने शायद 6000 किलोमीटर साइकिल पर Relay Race करते करते किया था। उनका बड़ा अच्‍छा मंत्र था, उन्‍होंने कहा था कि Follow the rule and India will Rule. हम 125 करोड़ देशवासी इतना करलें Follow the Rule फिर विवेकानंद जी का जो सपना था मेरा भारत विश्‍व गुरू बनेगा अपने आप India will rule मगर We must follow the rule । और इसलिए इन भावों को ले करके हम आज जब विवेकानंद जी की शताब्‍दी 125 सौ साल उनके भाषण के और पंडित दीनदयाल जी की शताब्‍दी और सौभाग्‍य से विनोवा जी का भी जन्‍म दिन और दूसरी तरफ वो भयानक 9/11 जिसने संहार किया विनाश किया दुनिया को आतंकवाद में झोंक दिया। मानव मानव का दुश्‍मन बन गया। ऐसे समय वसुधैव कुटुम्‍बकम का विचार ले करके चले हुए हम लोग प्रकृति में भी परमात्‍मा देखने वाले हम लोग, पौधे में भी परमेश्‍वर देखने वाले हम लोग, नदी को भी मॉ मानने वाले हम लोग पूरे ब्रह्माण्ड को परिवार मानने वाले लोग संकटों से घिरे हुए मानवता को, संकटों से घिरे हुए विश्‍व का हम तब कुछ दे पाएंगे जब हम अपनी बातों पर गर्व करें और समयानुकूल परिवर्तन करें। जो गलत है, समाज के लिए विनाशक हैं कितनी ही मान्‍यताएं अपने जमाने में सही होंगी अगर आज के जमाने में वो नहीं है उसके खिलाफ आवाज उठाकर उसको नष्‍ट करने के लिए निकला चाहिए।

लेकिन मेरे नौजवानों 2022 स्‍वामी विवेकानंद ने जिस Ramkrishna मिशन के नाम को शुरू किया था उसको 125 साल हो गये। 2022 भारत की आजादी के 75 साल हो गए। हम कोई संकल्‍प ले सकते हैं क्या। और संकल्‍प… मेरा जीवन व्रत बनना चाहिए। मैं यह करूँगा और आप देखिए जिंदगी जीने का अलग आनंद होगा। कभी-कभी हमारे देश में ये विवाद होता है कि जो College University वाले छात्र होते हैं. University के अध्‍यक्ष पद पर बैठे हुए सारे चुनाव जीत करके आए छात्र नेता हैं सारे.. छात्र राजनीति कहां से शुरू और कहां पहुँची वह चिंतन का विषय है लेकिन मैं कभी कभी देखता हूँ कि छात्र राजनीति करने वाले लोग जब चुनाव लड़ते हैं तो हम ये करेंगे, हम वो करेंगे… ये सब कहते हैं लेकिन अभी तक मैंने देखा नहीं है कि किसी चुनाव में उम्‍मीदवारों ने ये कहा हो कि हम कैम्‍पस साफ रखेंगे। हमारी जो University का कैम्‍पस है आप किसी भी University के चुनाव होने के दूसरे दिन जाइए क्‍या पड़ा होता है वहां? क्‍या होता है… फिर वन्दे मातरम्… क्‍या 21वीं सदी हिंदुस्‍तान की सदी बनानी है 2022 आजादी के 75 साल मना रहे हैं तो गांधी के सपनों का हिंदुस्‍तान, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू के सपनों का हिंदुस्‍तान, सुभाष बाबु के सपनों का हिंदुस्‍तान, विवेकानंद के सपनों का हिंदुस्‍तान क्‍या हम लोंगो का दायित्व नहीं है। और इसलिए वो Management वालों को पढ़ाते हैं न Everybody is somebody, nobody हैं जो Management विद्यार्थी हैं वो पढ़ा होगा और Ultimately कुछ नहीं और इसलिए आवश्‍यक है ये मैं करूँगा ये मेरी जिम्‍मेदारी है। आप देखिए कि हिंदुस्‍तान को बदलते देर नहीं लगेगी। अगर 125 करोड़ हिंदुस्‍तानी एक कदम चलें तो हिंदुस्‍तान 125 करोड़ कदम आगे बढ़ जाएगा।

मैंने देखा है कि Colleges में किसी को अच्‍छा लगे किसी को बुरा लगे लोग किसी का विरोध भी केरते हैं ऐसे लोग भी हैं थोड़े। Colleges में Day मनाते हैं अलग-अलग डे मनाते हैं आज रोज़ डे है कुछ लोगों के विचार इस विरोधी हैं इसमें यहां भी बैठे होंगे मैं इसका विरोधी नहीं हूँ। देखिए हमने रोबोट तैयार नहीं करने हैं, हमें Creativity चाहिए हमारे भीतर का इंसान हमारी संवेदनाएं उसे प्रकट होने के लिए University Campus से बड़ा कोई जगह नहीं होता है। लेकिन क्‍या कभी हमें विचार आता है कि हरियाणा की College हो और तय करे कि आज तमिल-डे मनाएंगे। पंजाब की College हो और तय करे कि आज केरल-डे मनाएंगे। दो गीत उसके गाएंगे दो गीत उसके सुनेंगे उनके जैसा पहनावा पहन कर उस दिन College आएंगे। हाथ से चावल खाने की आदत डालेंगे। College में कोई मलयालम फिल्‍म देखेंगे, तमिल फिल्‍म देखेंगे वहां से कुछ नौजवानों को बुलाएंगे भाई तुम्‍हारे तमिलनाडू के अंदर गांव में कैसे खेल खेले जाते हैं आओ खेलते हैं। मुझे बताइए डे मनेगा की नहीं मनेगा। वो डे Productive होगा कि नहीं होगा। एक भारत श्रेष्‍ठ भारत बनेगा कि नहीं बनेगा। हमें विविधता आप लोग तो बहुत नारा भी बोलते हैं विविधता में एकता को लेकर के, लेकिन क्‍या इस विविधता का गौरव जीने का प्रयास हम करते हैं क्‍या? जब तक हिंदुस्‍तान में हमारे हर राज्‍य के प्रति गौरव का भाव पैदा नहीं करेंगे, हर भाषा के प्रति गौरव का भाव पैदा नहीं करेंगे…मुझे याद है अभी मुझे तमिल University के तमिलनाडु के नौजवान अभी ऊपर आए मैंने उन्‍हें वण्‍णक्‍कम कहा एकदम से खुश हो गए। एकदम छू गया उनको. ये अपने हैं। क्‍या हमारा मन नहीं करता है कि हम ऐसा माहौल बनाए कि हमारे University में ऐसे भी तो डे मनाएं क्‍या कभी नहीं लगता है कि हमारी University में Sikh गुरूओं का डे मना करके पंजाब के सिख गुरूओं ने क्‍या त्‍याग तपस्‍या बलिदान किए हैं देखें तो सही या सिर्फ भांगड़े से ही अटक जाएंगे क्‍या। पराठा और भांगडा. पंजाब उससे भी बहुत आगे हैं और इसलिए हम कुछ करें तो उसमें देखिए Creativity के बिना जिंदगी नहीं है। हम रॉबोट नहीं बन सकते हमारे भीतर का इंसान हर पल उजागर होते रहना चाहिए लेकिन वो करें जिससे देश की ताकत बढ़े देश का सामर्थ्‍य बढ़े और जो देश की आवश्‍यकता है उसकी पूर्ति हो। जब तक हम इन चीजों से अछूत रहेंगे हम धीरे-धीरे सिमट जाएंगे।

विवेकानंद जी कूपमंडूपता पर एक बड़ी कथा सुनाया करते थे। कुँए के मेंढक की बात करते थे। हम वैसे नहीं बन सकते। हम तो जय जगत वाले लोग हैं पूरे विश्‍व को अपने भीतर समाहित करना है और हमी एक कोचले में बंध हो जाएंगे तो ये कोई हम लोगों को सोच भी नहीं सकता। उपनिषद से उपग्रह तक की हमारी यात्रा हमने विश्‍व के हर विचार को अगर हमारे लिए अनुकूल है मानवता के लिए अनुकूल है तो स्‍वीकार करने में संकोच नहीं किया है। और हम डरे भी नहीं हैं कि कोई आएगा और हमारा कुचल जाएगा जी नहीं जो आएगा उसको हम पचा लेंगे ये सोच के हम लोग हैं। उसे अपना बना लेगें उसकी जो अच्‍छाई है उसको ले करके आगे चलेंगे तभी तो भारत विश्‍व को कुछ देने का सामर्थ्‍यवान बनेगा। और इसलिए कोई एक काल खंड होगा जब गुलामी की जिंदगी जी रहे थे तब हम Protective Nature के साथ अपना गुजारा किया होगा। आज हमें अपने भीतर इतना सामर्थ्‍य होना चाहिए कि बाहर की चीजों से हम कोई परेशान हो जाएंगे सोचने की जरूरत नहीं है दोस्‍तो! और मैं तो आज दुनिया में जहां जाता हूँ मैं अनुभव कर रहा हूँ हिंदुस्‍तान के प्रति देखने का विश्‍व का नजरिया बदल चुका है। ये ताकत राजनीतिक शक्ति से नहीं है ये जन शक्ति से है। ये सवा सौ करोड़ देश वासियों की ताकत का कारण। लेकिन हमें हमारी बुराइयों को अब हम दरी के नीचे डालते चले जाएंगे तो सिवाए गंध और सड़ने के सिवा कुछ नहीं होने वाला है। हमें इन बुराइओं के खिलाफ लड़ना है। हमारे भीतर की बुराइओं के खिलाफ लड़ना है। भारत को आधुनिक बनाने को हम लोगों को सपना होना चाहिए। क्‍यों न मेरा देश आधुनिक न हो। क्‍यों मेरे देश का नौजवान दुनिया की बराबरी न करे। इसे सामर्थ्‍यवान क्‍यों न होना चाहिए। और इसलिए कभी मैं एक बार किसी महापुरूष को मिला था। बहुत समय पहले की बात है तो उन्‍होंने कहीं मेरा भाषण वाषण पढ़ा होगा तो उसकी चर्चा निकाली। तब मैं राजनीति में नहीं था। उन्‍होंने मुझे कहा कि देखो भाई आप को पता है कि हमारे हिंदुस्‍तान की एक कठिनाई क्‍या है? मैंने कहा क्‍या? बोले हम लोग हमारे यहां पांच हजार साल पहले ऐसा था दो हजार साल पहले ऐसा था.. बुद्ध के जमाने में ऐसा था राम के जमाने में ऐसा था। इसी से बाहर नहीं निकले। बोले दुनिया आज आप कहां पर हो उस आधार पर आप का मूल्‍यांकन करती है। हम भाग्‍यवान हैं कि हमारे पास एक महान विरासत है लेकिन हमारा दुर्भाग्‍य है कि हम उसी के गौरवगान से आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं। गौरवगान आगे बढ़ने की प्रेरणा के लिए होना चाहिए, गौरवगान पीछे हट करके रूकने के लिए नहीं होना चाहिए। हमे गौरवगान से आगे बढ़ना है और युवा, युवा एक परिस्थिति का नाम नहीं है दोस्तों, युवा एक मन: स्थिति का नाम है। जो बीते हुए कल में खोया हुआ रहता है, उसे युवा नहीं मान सकते। लेकिन जो बीती हुई बातों की जो श्रेष्‍ठ है उसको लेकर के आगे आने वाले कल के लिए सोचता है,समझता है, सुनता है वो युवा है। उस युवा भाव को भीतर समेटते हुए कैसे आगे बढ़ें उसका संकल्‍प लेकर के आप चलें इसी भावना के साथ आज दीनदयाल उपाध्‍याय जी को मैं आज नमन करता हूँ, स्‍वामी विवेकानंद जी को नमन करता हूँ, श्रीमान विनोवा भावे जी को नमन करता हूँ और आप सब मेरे देशवासी नौजवानों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ।