उम्र तो गणित है, और ख़ूबसूरती कोई कविता|

(विवेक कवीश्वर)

उम्र तो गणित है; और ख़ूबसूरती कोई कविता,
उम्र की जमा-घटा बेशक जुदा है ख़ूबसूरती से​।

चावलों की भरी बोरी; रख भूले थे कहीं पीछे,
महक उट्ठी तो याद आई बड़ी ही ख़ूबसूरती से​।

कतरनें ज़ाफरानों की सूख कर ही महकती हैं,
उतर जाता है उनका हुस्न दिल में ख़ूबसूरती से​।

न बूढ़ा ताज है और न बूढ़ा बीबी का मकबरा,
संगमरमर के सभी जज़्बात रहते ख़ूबसूरती से​।

मेरे चेहरे की सिलवटों पे क्योंकर हंस रहा है तू,
हंसीं लम्हों के बहते आबशार वहां पर ख़ूबसूरती से​।

ये उम्र फ़ितना है; असर तुम पर भी छोड़ेगी
अपना आज महकाओ; तो कल हो ख़ूबसूरती से​।