देश के नौनिहालों और माताओं की जिंदगी में रंग बिखेर रहा है मिशन इंद्रधनुष

वर्ष 1985 में जब राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान शुरू हुआ तो बेहद कम परिवार जानते थे कि सिर्फ कुछ जीवनरक्षक टीके ही नवजात शिशुओं की जान बचा सकते हैं। चुनौती इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि देश में अभी भी कई ऐसे माता-पिता आसानी से मिल जाएंगे जो पांच साल तक के बच्चों में होने वाली संक्रामक बीमारियों या मौत के लिए कुतर्क कारणों का हवाला देते हैं। लेकिन पिछले दो दशकों में केंद्र एवं राज्य सरकारों और विभिन्न संगठनों की मदद से उठाए गए कदम अब पांच साल तक के बच्चों की जान बचाने में बेहद कारगर नजर आ रहे हैं। कामयाबी के लिए मिशन इंद्रधनुष को मील का पत्थर समझना गलत नहीं होगा। अप्रैल, 2015 में शुरू किए गए मिशन इंद्रधनुष के तहत अब तक देश के लगभग 247 लाख शिशुओं को टीके लगाए जा चुके हैं। लेकिन इसकी नींव बहुत पहले ही नीति-निर्धारकों ने रख दी थी।

वर्ष 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर भारत सरकार ने जब मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (एमडीजी) के तहत शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए हामी भरी तो इसे एक असंभव सा माना गया था। इसे संख्या में यदि समझें तो वर्ष 1990 में प्रति हजार पैदा होने वाले शिशुओं में से लगभग 80 दम तोड़ देते थे। एमडीजी के तहत भारत में यह दर घटाकर प्रति हजार बच्चों में 29 तक लाने का लक्ष्य था। जहां एक ओर भारत में संक्रमण से होने वाली बीमारियों से बच्चों की मौत रोकने का लक्ष्य था, वहीं दूसरी ओर देश में अच्छी और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं सूदूर इलाकों तक पहुंचाने की भी जिम्मेदारी थी। विगत दस वर्षों से भी ज्यादा अवधि में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और फिर हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में तब्दील हो चुकी योजना के तहत भारत सरकार ने पूरे देश में उप-स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पताल तक तैयार करवाए हैं।

लेकिन इसके बावजूद देश में बच्चों की मौत रोकने में सबसे सटीक और कारगर तरीका टीकाकरण ही साबित हुआ है। जन्‍म होने से लेकर पांच साल तक के भीतर अगर बच्चों को सभी जीवनरक्षक टीके लगा दिए जाएं तो उनके जिंदा रहने की संभावना हमेशा ही ज्यादा बनी रहती है।

राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान की कुछ मुख्य बातें

    • राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत लगभग 2.6 करोड़ बच्चों और 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं को टीके लगाए जाते हैं
    • केंद्र सरकार की ओर से अभियान में शिशु और माताओं के लिए लगभग 90 लाख सत्र चलाए जाते हैं
    • देश में टीकों की सुरक्षा के लिए 27000 कोल्ड चेन केंद्र हैं जहां इन्हें उचित तापमान पर रखा जाता है
    • टीकाकरण के तहत – बीसीजी, डीपीटी, ओपीवी, आईपीवी, खसरा, हेपाटाइटिस-बी, टिटनेस और पेंटावैलेंट के टीके सभी शिशुओं को लगाने का लक्ष्य है

तस्वीर कैसे बदल रहा है मिशन इंद्रधनुष

भारत में सालाना लगभग  2.6 करोड़ बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण की जरूरत है। मिशन इंद्रधनुष शुरू होने से पहले 2015 तक देश में मात्र  65 फीसदी बच्चों को ही सभी टीके उपलब्ध हो पाते थे। उस दौरान देश में लगभग 17 लाख शिशुओं को जन्म के बाद एक भी टीका नसीब नहीं होता था, जबकि  72 लाख नवजातों को कुछ टीके ही लग पाते थे। विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि जिन बच्चों को टीका नहीं लगता है या आंशिक रूप से ही टीकाकरण हो पाता है उनके बीमारियों के कारण मरने की संभावना  3-6 फीसदी तक ज्यादा होती है।

2015 में शुरू मिशन इंद्रधनुष को खास तौर पर राष्ट्रीय टीकाकरण अभिय़ान के बाद भी इससे वंचित रहे बच्चों को पूरे टीके लगाने का ही एक सघन कार्यक्रम समझा जा सकता है। भारत सरकार ने मिशन के तहत देश के 90 प्रतिशत बच्चों तक पूरे टीके पहुंचाने का लक्ष्य रखा ताकि संक्रमण व अन्य बीमारियों के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सके। चार चरणों में चले इस कार्यक्रम के तहत अब तक 35 राज्यों के 528 जिलों में अभियान चलाया जा चुका है। मिशन में 246 लाख बच्चों को टीके लगाने के साथ-साथ 66 लाख गर्भवती महिलाओं को भी टीटनेस के टीके लगाए गए।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2009 से 2015 के बीच संपूर्ण टीकाकरण की दर एक फीसदी के हिसाब से आगे बढ़ रही थी। लेकिन मिशन इंद्रधनुष शुरू होने के बाद अब देश में सालाना 6.7 प्रतिशत की दर से संपूर्ण टीकाकरण होने लगा है। इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि शहरी इलाकों में संपूर्ण टीकाकरण 3.1 फीसदी की दर से बढ़ा है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 7.9 प्रतिशत की दर से बढ़ा है।