आन्दोलन जीवियो से ना ले पंगे फिसल गये तो हर हर गंगे ‘ ‘ – खबरी लाल

भारततीय राजनीति की फिजा में आज की सर्द सुबह मे कुछ गरमाहट की आहट लिये दबे पाँव सेआप के द्वार पर दस्तक दे गई कि पाँच राज्यो उत्तर प्रदेश ,उत्तराखण्ड ‘ पंजाब ‘गोबा व मणिपुर में होने वाले विधानसभा के चुनाव का विगुल बज गया है ! हालाकि हवाई चप्पल वालो को हवाई यात्रा का करने का दिवा स्वपन्न दिखाने वाले साहब स्वयं सड़क पर सेना के भारी भरकम्प विमान उत्तर कर अपने अंध भक्तो को चर्चा करने का स्वर्णिम अवसर दे दिया है , लेकिन विपक्षी कहा पीछे रहने वाले थें अगले दिन उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने अपने लॉव लस्कार के साथ अपनी शक्ति प्रदर्शन करे पहुंचे गये थे।तभी अगली अगले दिन अचानक सुबह-सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानून वापस लेना की घोषणा कर दी। अपने सम्बोधन मे प्रधान मंत्री किसान के समक्ष अपनी वाक पटुता की शैली कार्यो की चर्चा करते हुए संसद के अगले सत्र में नये तीन कृषि कानून को वापस करने के लिए संसदीय प्रक्रिया शुरू करेगी। प्रधान मंत्री के इस घोषणा के बाद पक्ष विपक्ष में ब्यान बाजी शरू हो गई । सत्ता पक्ष के नेताओ ने प्रधान मंत्री तारिफ में पुल बाँधते हुए किसान प्रेम की कशिदे पढ जाने लगे,वही विपक्ष के नेताओ ने मोदी सरकार की पराजय व अन्नदाताओं की विजय बताया है। अगर इस कृषि कानून की वापसी पर सरसरी तौर पर नजर डाली जाय तो कई बातें समाने आ रही है।
किसान आन्दोलन पर पैनी नजर रहने वाले का मानना है कि कृषि कानून केन्द्र सरकार ने वापस नहीं लिया है ‘ बल्कि किसानों ने वापस लेने को मजबूर कर दिया है। स्वतंत्र भारत के राजनीति की इतिहास में सबसे शानदार, संगठित और अहिंसक केंद्र सरकार के खिलाफ इस लम्बी लड़ाई में किसानों को जीत मिली है।अगर आप के ईरादे नेक व सहीं हों तो जीत आखिरकार आपकी ही होगी।सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। इस कृषि आन्दोलन के दौरान किसानों पर देशद्रोही, आढ़तिये, मुट्ठीभर और खालिस्तानी ‘ आतंकी जैसे तरह-तरह के विशेषणों से नवाजे गये लेकिन आज अचानक मोदीजी को किसानों पर इतना मेहरबान क्यों? इसका उत्तर एक राज्य के महामहिम संवैधानिक पद कई महीनों से देते आये हैं।वे कह रहे हैं कि ग्राउंड रिपोर्ट्स बता रही है किसानों के विरोध की वजह से यह सरकार सिर्फ यूपी का चुनाव ही नहीं हारेगी बल्कि 2024 में सत्ता से पूरी तरह बेदखल हो जाएगी।
कृषि कानूनों को लेकर सरकार का रवैया हठ्ठी बच्चे से ज्यादा अड़ियल और तानाशाही भरा रहा था। राज्यसभा तक में इसे नियमों को ताक पर रखकर पास करवाया गया था। किसानों को अपनी गाड़ी से कुचल देने वाले के पिता आज भी मोदी सरकार में मंत्री है। इसलिए प्रधानमंत्री चाहकर किसानों के बीच यह संदेश नहीं भेज सकते कि यह फैसला उन्होंने किसानों से हमदर्दी के आधार पर लिया है।
दुसरी बात इस आन्दोलन में 700 किसानों की मौत और आम नागरिकों को हुई बेशुमार परेशानी के बाद कानून वापसी के फैसले को केद्र सरकार के मास्टर स्ट्रोक भाजपा के नेता किस तरह बताएगी मेरी समझ नही आ रही है। कॉरपोरेट गोदी मीडिया यह तोहफा कैसे साबित करेगा यह बड़ा सवाल है। केन्द्र सरकार और गोदी मीडिया ‘ व व्हाटस एप युर्निवसिटी के लिए चुनौतियां बड़ी हैं। तीनो कृषि कानून के नाम पर पूरे वर्ष देश में जो कुछ चला है, वह केंद्र सरकार को निरंकुश, अहंकारी और गैर-जिम्मेदार साबित करता है। पहला सवाल यह है कि देश के अन्न दाताओ यानी किसानों की जिंदगी और मौत से जुड़ा फैसला उनसे विना सलाह मशुहरा बिना क्यों किया गया? इतना क्या जल्दी थी संसद मे चर्चा किये बिना ही आनन फानन मेंविल पास करवा लिया जाता है।
अगर फैसला देशहित में इतना ही ज़रूरी था तो फिर इसे चोरी -चुपके से वापस क्यों लिया जा रहा है? यह सारे ज्वलंत प्रशन सरकार पीछा नहीं छोड़ेंगे। जो कल तक तीनो कृषि कानून देशहित था ‘ वही कानून आज चुनावी फायदे के लिए वापस लेना मौकापरस्ती ‘ सरकार को गैर-जिम्मेदार या मौका-परस्त दोनों में कोई एक विशेषण अपने लिए चुनना पड़ेगा। इसके अलावे कोई और रास्ता नहीं है।
इस पूरे प्रकरण का पटाक्षेप सबसे बड़ा धक्का प्रधानमंत्री मोदी की उस छवि को लगा है, जिसमें उन्हें कठोर और निर्णायक फैसले लेने वाले नेता के तौर पर चित्रित किया जाता है। अन्धो भक्तो का वह चेहता मोदी है तो मुमकिन है।
तीनो नये कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब शायद विधान सभा में खास कर गाँवों में बीजेपी कार्यकर्ता घुस पाएंगे। लेकिन किसानों व उनके परिवार के जख्म हरे हैं, इसलिए एक सीमा से ज्यादा भरपाई नहीं हो पाएगा। कानून वापसी का इस्तेमाल विपक्ष के नेता यह संदेश देने में करेगा कि भाजपा को पता है कि वो चुनाव हार रही है।
आगामी लोक सभा 2024 के दिल्ली का सफर अभी दूर है।
किसानो आन्दोलन से जुड़े हुए नेताओ व समर्थक का कहना है कि हमारा आन्दोलन समाप्त नही हुए है – हमारे लिए संसद व संसदीय व्यवस्था मे पूर्ण विश्वास है । जिस तरह सरकार के द्वारा संसद से पारित कर किसान विरोधी तीनो नये कानून लाये गये थे , उसी संसद व संसदीय प्रक्रिया के कानून वापस लिये जाये तथा एम एस पी पर कानून बनाया जाय । इसके लिए एक स्वतंत्र समिति बनाया जाय, जिसमे सरकार के प्रतिनिधि व किसान संगठनों के प्रतिनिधि आपस चर्चा कर किसानो के हित फैसला ले । हमारा आन्दोलन तभी समाप्त होगा .।यह किसान व आम भारतीय नागरिको की जीत है।
अभी शंका व संसय की घुन्ध ली तस्वीर स्पष्ट होने कुछ वक्त लगेगा । आप को याद होगा लोक तंत्र पवित्र मन्दिर में देश के प्रधान सेवक जी ने अपने शब्द कोष मे से नये शब्द का आव्षिकार कर ते हुए आन्दोलन जीवी कहा था जिस पर सता पक्ष ने करतल ध्वनि से मेज थप थाप से स्वागत किया था आज वही आन्दोलन जीवियो के आन्दोलन के आगे के घुटने टेकते हुए तीनो कृषि कानून की वापसी करने को मजुबर हो गई । आन्दोलन जीवयो से ना ले पंगे ‘ फिसल गये तो हर – हर गंगे ।फिलहाल मै आपसे यह कहते हुए विदा लेते है कि – ” ना ही काहूँ से दोस्ती ‘ ना ही काहूँ से बैर । खबरी लाल तो माँगे ‘ सबकी खैर ॥ फिर आपसे मिलेगे तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग ।
प्रस्तृति
विनोद तकिया वाला
मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार