उत्तरी दिल्ली – हिन्दू-महाविद्यालय ( दिल्ली विश्वविद्यालय ) के बी.ए. प्रोगाम के छात्रों द्वारा आयोजित दो दिवसीय वार्षिक कार्यक्रम ‘कारवाँ’ 21-22 मार्च को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ । ‘कारवाँ’ के पहले दिन दिल्ली-विश्वविद्यालय के संस्कृत-विभाग में कार्यरत डॉ० सुभाष चन्द्र ने Computational Linguistic विषय पर बोलते हुए पाणिनी के व्याकरण और कम्पूयटर की प्रोग्रामिंग में समानता को स्पष्ट किया। साथ ही भविष्य में होने वाली कम्पूयटर-प्रोग्रामिंग के लिए संस्कृत-व्याकरण में अपार संभावना को बताया । दूसरे दिन विभिन्न भाषाओं पर आधारित कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस विषय में संस्कृत-विभाग की वरिष्ठा प्राध्यापिका डॉ० अनीता राजपाल ने बताया कि आधुनिक भारतीय भाषाओं का उद्भव और विकास संस्कृत भाषा से ही हुआ है। इन भाषाओं के परस्पर सम्बन्ध को काव्य के माध्यम से छात्र समझ सकें और उनमें काव्य-सौन्दर्य तथा साहित्य की गहराई की समझ भी विकसित हो सकें। इसलिए इस बहुभाषी कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। विभाग-प्रभारी डॉ० जगमोहन ने बताया कि दिल्ली-विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम ने बी.ए. प्रोग्राम के छात्रों के लिए यह व्यवस्था की है कि वे अन्य विषयों के साथ संस्कृत, पंजाबी, उर्दू, बंगलादि अनेक भाषाओं में से किसी भी एक भाषा का चयन कर सकते है। वर्तमान में विभिन्न प्रांतों के अनेक छात्र संस्कृत भाषा का अध्ययन कर रहे है। इसलिए भी अनेक भाषाओं के कवियों को आमंत्रित किया गया।
पंजाबी कवि प्रो० मनजीत सिंह, पूर्वविभागाध्यक्ष, पंजाबी-विभाग, दिल्ली-विश्वविद्यालय , ने अनुप्रास अलंकार में अग्ग, मग्ग और पग्ग शब्दों का सुन्दर प्रयोग करते हुए पंजाब की राजनैतिक पीड़ा को व्यक्त किया। संस्कृत-कवियित्री डॉ० मीरा द्विवेदी ने सरल और सहज संस्कृत-भाषा में अपना रचना पाठ करते हुए उनके हिन्दी भावानुवाद से छात्रों को दो भाषाओं के रस में भिगो दिया। अनस फैज़ी की शायरी ने युवा-मन की भावनाओं को बखूबी उकेरा। इस्लामी संस्कृति पर चुटकी लेते हुए एकविवाह को जायज़ ठहराया। हिन्दी व्यंग्यकार डॉ० हरीश नवल ने ‘बडे अजब थे बडे गजब थे अपने बाबू जी’ कविता पाठ से जीवन में माता-पिता के महत्त्व को बतलाया। लगभग दस छात्रों ने अपनी काव्य रचनायें सुनाई। उन्हे पुरस्कृत भी किया गया। मंच संचालन हिन्दी कवि डॉ० आशीष कंधवे ने किया। एक ओर उन्होनें अपने चुटीले अंदाज से छात्र कवियों की कविताओं पर टीका-टिप्पणी करते हुए छात्रों को खूब हँसाया। दूसरी ओर अतिथि कवियों के कविता पाठ की प्रशंसा कविता से करते हुए वातावरण को कवितामय, रसमय कर दिया। इस प्रकार दो दिन तक चलने वाला ज्ञान-विज्ञान का ‘कारवाँ’ छात्राओं के लिये प्रेरणास्पद रहा।