जेपी हॉस्पिटल के डाॅ ज्ञानेन्द्र अग्रवाल से जाने टीबी ( क्षयरोग ) के बारे में

ट्यूबरकुलोसिस ( टीबी ) दुनिया भर में पाए जाने वाले सबसे आम संक्रामक रोगों में से एक है। यह एक जीवाणु मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होता है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन शरीर के किसी भी अंग पर हमला कर सकती है। टीबी हवा से फैलने वाला रोग है और ज़्यादातर बूंदों से फैलता है।

धूम्रपान से टीबी की संभावना बढ़ जाती है, साथ ही यह टीबी संक्रमण के बढ़ावा देता है। धूम्रपान करने वाले टीबी के मरीज़ों में दवा भी जल्दी असर नहीं करती। साथ ही इससे दूसरों में भी टीबी फैलने की संभावना बढ़ जाती है। पैसिव स्मोकिंग भी उतनी ही हानिकर है जितनी की एक्टिव स्मोकिंग। इससे बच्चों और व्यस्कों दोनों में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।

आंकड़े –
टीबी दुनिया भर में होने वाली मौतों के दस मुख्य कारणों में से एक है, हर साल तकरीबन 2 मिलियन लोगों की मृत्यु टीबी के कारण हो जाती है। केवल राष्ट्रीय सरकारें हीं नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी टीबी उन्मूलन के लिए प्रयास कर रहे हैं।

जिन देशों में टीबी के मामलों की संख्या अधिक है उन्हें ‘ज़्यादा बोझ वाले देश’ कहा जाता है। दुनिया भर में टीबी के एक चैथाई मामले भारत में पाए जाते हैं। 2017 में देश में टीबी के 14,840 नए मामले दर्ज किए गए।

राष्ट्रीय स्तर पर टीबी की प्रतिशतता 6 फीसदी है जबकि राजधानी दिल्ली में यह लगभग 14 फीसदी है। बच्चों में टीबी का मुख्य कारण इम्युनिटी यानि रोग प्रतिरोधी क्षमता कम होना।

भारत सरकार ने हाल ही में ऐलान किया है कि इसने 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य तय किया है। सरकार ने इसके लिए नई राष्ट्रीय सामरिक योजना 2017 की भी घोषणा की है। सरकार का दावा है कि देश से टीबी के उन्मूलन के लिए ज़मीनी स्तर पर प्रयास किए जाएंगे।

लक्षण –
– खांसी जो दो सप्तह या इससे ज़्यादा तक रहे।
– खांसी के साथ खून आना
– भूख कम होना और वज़न में अचानक कमी
– बुखार, ठंड लगना, रात में पसीना आना, थकान महसूस होना
हालांकि लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि शरीर का कौनसा हिस्सा रोग से प्रभावित हुआ है।

टीबी का निदान
टीबी एक गंभीर संक्रामक रोग है, लेकिन इसका इलाज संभव है। टीबी शरीर के लगभग हर हिस्से में हो सकता है। आमतौर पर यह फेफड़ों, लिम्फ नोड, आंतों, हड्डियों और दिमाग को प्रभावित करता है।

टीबी के इलाज के लिए आमतौर पर कुछ दवाओं का संयोजन दिया जाता है, जिन्हें कम से कम छह महीने तक लेना होता है। टीबी का जीवाणु धीरे धीरे मरता है, इसलिए दवाएं कुछ महीनांे तक जारी रखनी पड़ती हैं। हालांकि कुछ समय दवा लेने के बाद मरीज़ अपने आप को ठीक महसूस करने लगता है, लेकिन इस समय भी बैक्टीरिया शरीर में मौजूद रहता है। इसलिए मरीज़ को डाॅक्टर की सलाह के अनुसार पूरा इलाज लेना चाहिए। ज़्यादातर मरीज़ इसके इलाज को झेल पाते हैं। हांलाकि अगर मरीज़ में कुछ साईड इफेक्ट्स दिखाई दें तो उन्हें डाॅक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

मरीज़ को खुद टीबी का निदान करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्यों कि कुछ अन्य बीमारियों के लक्षण भी टीबी की तरह ही होते हैं। इसके अलावा टीबी का इलाज न करना जानलेवा साबित हो सकता है। अगर खांसी दो सप्ताह से ज़्यादा रहे तो छाती का एक्स-रे किया जात है। सरकार टीबी के लिए मुफ्त स्पुटम ट्रीटमेन्ट सुविधा मुहैया करती है। टीबी का इलाज पूरी तरह संभव है अगर मरीज़ डाॅक्टर की सलाह के अनुसार नियमित रूप से दवा ले और समय-समय पर अपनी जांच करवाए।

रोकथाम
टीबी को फैलने से रोकने के तरीके
– टीबी का निदान होने पर मरीज़ को डीओटी ;क्पतमबजसल वइेमतअमक जीमतंचल.क्व्ज्द्ध थेरेपी दी जानी चाहिए।
– खांसते, छींकते या हंसते समय अपने मुह को टिश्यू पेपर से ढकना चाहिए।
– सेहतमंद आहार के साथ अच्छी गुणवत्ता की दवाएं लेनी चाहिए।
मिथक और वास्तविकताएं
मिथक- टीबी का इलाज संभव नहीं।
वास्तविकता- टीबी के इलाज के लिए समय पर निदान ज़रूरी हे। मरीज़ को नियमित जांच के साथ डाॅक्टर की सलाह के अनुसार दवाएं और पूरा इलाज लेना चाहिए।

मिथक – गरीब लोगों में टीबी की संभावना अधिक होती हैं
वास्तविकता – कोई भी व्यक्ति टीबी का शिकार हो सकता हैं

मिथक – टीबी केवल फेफड़ों को प्रभावित करता हैं
वास्तविकता – हालांकि टीबी के सबसे ज़्यादा लक्षण फेफड़ों में ही पाए जाते हैं लेकिन इसका बैक्टीरिया शरीर के अन्य अंगों जैसे लिम्फ नोड, आंतों, हड्डी और दिमाग को प्रभावित कर सकता है।

मिथक – बीसीजी का टीका जीवनभर के लिए टीबी संक्रमण से बचाता है।
वास्तविकता – बीसीजी केवल कुछ समय के लिए ही टीबी से सुरक्षा देता है।

मिथक – एक बार इलाज हो जाने पर टीबी दोबारा नहीं हो सकता।
वास्तविकता – टीबी के दोबारा होने की संभावना बढ़ जाती है अगर मरीज़ अपने इलाज का कोर्स पूरा न करे।

मिथक – टीबी एक आनुवंशिक बीमारी है।
वास्तविकता – टीबी का जीन से कोई संबंध नहीं, इसलिए यह आनुवंशिक बीमारी नहीं है। टीबी का बैक्टीरिया हवा के माध्यम से फैलता है और सांस के साथ स्वस्थ व्यक्ति में प्रवेश कर जाता है और इस तरह वह व्यक्ति भी टीबी से ग्रस्त हो जाता है।