पोर्क खाकर बनाई दिलों में जगह: सुनील देवधर

त्रिपुरा में 25 साल पुरानी वाम सत्ता को उखाड़ फेंकने वाले बीजेपी के राज्य प्रभारी सुनील देवधर ने कहा कि राज्य में संगठन खड़ा करने के लिए उन्होंने खुद पर बहुत काम किया. यहां तक कि अपनी फूड हैबिट में भी बदलाव किया. त्रिपुरा आकर पोर्क खाना शुरू किया. उन्होंने बताया, बीजेपी ने यह करिश्मा कांग्रेस के हथियार से ही किया जिसे कभी खुद कांग्रेस नहीं कर पाई. राज्य का मौजूदा बीजेपी संगठन 90% कांग्रेस और तृणमूल कार्यकर्ताओं से ही बन पाया.

हालांकि उन्होंने इस बात को पूरी तरह से खारिज किया कि बीजेपी ने सत्ता के लिए त्रिपुरा में विचारधारा से समझौता कर गठबंधन किया. राज्य में जीत के दो दिन बाद Aajtak.in से खास बातचीत में सुनील देवधर ने तमाम ऐसे मुद्दों पर बात की जो अब तक सामने नहीं आ पाए थे. उन्होंने बीजेपी की जीत का सक्सेस फॉर्मूला भी बताया. आइए पढ़ते हैं विस्तृत बातचीत के संपादित अंश, जानते हैं सुनील का त्रिपुरा सक्सेस फॉर्मूला, उन्होंने ऐसा क्या किया जो 25 साल तक कांग्रेस नहीं कर पाई…

क्या त्रिपुरा में बीजेपी की ऐसी जीत का भरोसा था?

देवधर: त्रिपुरा में ऐसी जीत का मुझे बिलकुल भरोसा नहीं था. जब अमित भाई ने मुझे घर बुलाकर दायित्व सौंपा तो मैंने उनसे सवाल भी किया. मैं कैसे कर पाऊंगा? उन्होंने कहा, मुझे आप पर पूरा भरोसा है. पार्टी के निर्देश के बाद मैं त्रिपुरा पहुंचा. 6 महीने रहा तो मैंने महसूस किया कि लोगों में डर है और लोग बदलाव भी चाहते हैं. कई सालों से राज्य में वाम सत्ता काबिज थी. उसके खिलाफ कांग्रेस (विपक्ष) ने जमीन पर कुछ नहीं किया था.

राज्य में संगठन खड़ा करने के लिए किस तरह शुरुआत की?

देवधर: त्रिपुरा में पार्टी के अभियान को बढ़ाने के लिए मैंने जो पहला काम शुरू किया वह था जनजातियों का मफलर यानी गमछा पहनना. हमने इस तरह की बहुत सी छोटी-छोटी चीजें की. ऐसी चीजें काफी मदद करती हैं.

पार्टी को मजबूत बनाने के लिए खुद पर किस तरह काम किया?

देवधर: मेरे दिमाग में कभी हार या जीत नहीं थी. यहां लोग मुझे अपना समझें, ये मेरा मुख्य मकसद था. मैंने अपनी फूड हैबिट तक बदल दी. हालांकि मैं नॉनवेज पहले से खाता था पर मैंने पोर्क खाना त्रिपुरा में ही शुरू किया (यहां के समाज में पोर्क खाया जाता है). महाराष्ट्र से आकर यहां ये सबकुछ करना आसान नहीं था.

क्या पोर्क खाना चुनावी रणनीति का हिस्सा था?

देवधर: ऐसा नहीं है. ये चुनाव जीतने के लिए नहीं था. मुझे कभी हार या जीत की फिक्र नहीं थी. मैंने संगठन खड़ा करने के लिए ऐसा किया. मैं संघ में प्रचारक रहा हूं. हमें सिखाया गया है कि ‘यस्मिन देशे यदाचार…’ यानी जहां आप जाएंगे वहां के रीति-रिवाज में घुलमिल कर रहेंगे तो आत्मीयता हो जाती है. आत्मीयता बढ़ती है.

खुद पर और किस तरह काम करना पड़ा, ऐसी कोई बात जो बताना चाहें?

देवधर: मैं यहां आने से पहले थोड़ी बहुत बंगाली जानता था, लेकिन यहां आने के बाद मैंने उस पर अच्छे से काम करना शुरू किया. बंगाली सीखने के लिए मैंने ट्यूटर रखा. रोज मेहनत की. बंगाली गाने सुनता था. जनजातीय भाषा सीखने के लिए भी अलग ट्यूटर रखा, हालांकि यह अनियमित था. ट्रांसलेटर भी रखा. जो देवनागरी स्क्रिप्ट में जनजातीय भाषा में स्पीच ट्रांसलेट करके देता था. लोगों से जुड़ने में इन चीजों ने काफी मदद की.

जिस वक्त आपने अभियान की शुरुआत की देश में बीफ पर बहस हो रही थी, क्या खान-पान को लेकर त्रिपुरा में इस तरह के सवाल से सामना हुआ?

देवधर: बीफ को लेकर देश में जारी डिबेट का त्रिपुरा में कोई असर नहीं दिखा. हम बस बांग्लादेश से पशुओं की अवैध तस्करी की खिलाफत कर रहे थे. त्रिपुरा में 90 प्रतिशत हिंदू हैं और वो बीफ नहीं खाते. सीपीएम ने मुस्लिमों में जरूर दुष्प्रचार किया. लेकिन मजेदार बात यह है कि इस राज्य में दूध की भारी कमी थी. यहां पाउडर का दूध इस्तेमाल होता है. जो काफी नुकसानदेह है. हिंदू, मुसलमान, ईसाई, कम्युनिस्ट- सबके बच्चों को दूध चाहिए. त्रिपुरा में दूध के लिए गो संवर्धन करने का फैसला राज्य की वाम सरकार का निर्णय है.

जीत के बाद आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी ने सत्ता के लिए विचारधारा से समझौता कर लिया माणिक सरकार ने नहीं किया. एक तरह से लोग इसे बीजेपी की हार भी बता रहे हैं?

देवधर: किसी संगठन का अलग राज्य की मांग करना कोई देश विरोध नहीं है. हमने जिनके साथ गठबंधन किया उन्होंने अलग राज्य की मांग की है. उनके आतंकी होने या ऐसे संगठनों से संबंध का कोई आधार नहीं हैं. यह सिर्फ आरोप भर हैं. हमने उनको मनाया. हमने समझाया कि अलग राज्य की मांग बाजू रखकर हमारे साथ आइए. आदिवासियों का उत्थान करें. इन लोगों (विपक्ष) को आतंकवाद पर बोलने का अधिकार नहीं. हमारी दृष्टि में अलग राज्य की मांग अनप्रैक्टिकल है पर अनकांसिट्यूशनल बिल्कुल नहीं. हमने वहां के सामाज में अलगाव को कम करने का प्रयास किया, सीपीएम ने तो इसे बढ़ाना चाहा. यह प्रचारित किया कि बीजेपी ईसाइयों के खिलाफ है. लेकिन हमें यहां उनका भी वोट मिला. ईसाई बीजेपी के खिलाफ नहीं हैं.

त्रिपुरा में बीजेपी की जीत को देश के दूसरे हिस्सों में किस तरह देखते हैं?

देवधर: नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी का ब्रेक करना बहुत बड़ी बात है. देशभर में बहुत पॉजिटिव मैसेज जाएगा. त्रिपुरा में वाम पर जीत का जश्न केरल और पश्चिम बंगाल में भी मनाया गया है. इसके दूरगामी असर होंगे.