अचल संपत्ति से संबंधित कानून (रेरा) को अधिसूचित करने के लिए राज्यों को दी गयी तीन महीने की मोहलत जुलाई में खत्म होने के साथ ही देश में रीअल एस्टेट और आवास क्षेत्र में बदलाव का रास्ता साफ हो गया है। यह मोहलत ऐसी परियोजनाओं की वजह से दी गयी थी जिनका निर्माण कार्य चल रहा है और अब मोहलत की अवधि बीत जाने पर अचल संपत्ति और आवास क्षेत्र के परिपक्व, पेशेवर, संगठित और पारदर्शी तरीके से काम करने वाले क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आने की संभावना है जिससे सभी सम्बद्ध पक्षों को फायदा होगा।
केन्द्र सरकार ने एक युगांतरकारी कदम उठाते हुए अचल संपत्तियों और आवास के बारे में रीअल एस्टेट विनियमन और विकास अधिनियम (रेरा) के रूप में रीअल एस्टेट क्षेत्र को 1 मई, 2016 से पहला विनियामक दिया। केन्द्रीय आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने राज्यों को नियामक के कामकाज के नियम बनाने और उन्हें अधिसूचित करने के लिए 1 मई, 2017 तक का समय दिया था।
रीअल एस्टेट विनियमन अधिनियम (रेरा) का उद्देश्य अचल संपत्ति क्षेत्र को विनियमित करने और बढ़ावा देने के लिए एक विनियामक प्राधिकरण की स्थापना करना है ताकि इस क्षेत्र में होने वाले लेन-देनों में दक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके और विवादों के शीघ्रता से समाधान की ऐसी कानूनी प्रणाली कायम हो जिससे उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो। अधिनियम में अचल संपत्तियों के न्यायोचित लेन-देन, बिल्डरों द्वारा समयबद्ध तरीके से आवास उपलब्ध कराने और निर्माण में गुणवत्ता जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया है।
यह कानून बिल्डरों द्वारा मकान उपलब्ध कराने में बहुत ज्यादा देरी के खिलाफ मकान खरीदने वाले देश के लाखों लोगों के विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूामि में आया है और इससे अपने रहने के लिए आशियाने की उम्मीद में अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई मकानों पर लगाने वालों ने राहत की सांस ली है। अब तक घर खरीदने वाले अक्सर बेईमान बिल्डरों के हथकंडों का शिकार बनते रहे हैं जो उन्हें बिना मंजूरी वाली परियोजनाओं में पैसा लगाकर मोटा मुनाफा कमाने के लिए बहकाते रहे हैं। लेकिन रेरा कानून के लागू होने के बाद मकान खरीदने वालों के हित सुरक्षित हैं क्योंकि केवल वही डिवेलपर किसी भवन परियोजना की शुरुआत कर सकते हैं जो पंजीकृत हैं। इसके अलावा डिवेलपर अधिकारियों से तमाम वांछित स्वीकृतियां प्राप्त किये बिना किसी भवन परियोजना शुरुआत या उसका विज्ञापन जारी नहीं कर सकते और न मकानों की बुकिंग कर सकते हैं। बुकिंग की राशि मनमाने तरीके से वसूलने की भी मनाही है क्योंकि नये नियमों के अनुसार बुकिंग की राशि संपत्ति की कीमत का 10 प्रतिशत तय की गयी है।
रेरा कानून ने डिवेलपरों/परियोजना शुरू करने वालों के लिए परियोजना के बारे में तमाम जरूरी घोषणाएं करना अनिवार्य कर दिया है। इनमें विभिन्न प्राधिकारियों से प्राप्त स्वीकृतियां, परियोजना शुरू होने की तारीख, बने हुए मकान देने की तारीख, परियोजना का विवरण और उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधाओं आदि का ब्यौरा शामिल है। इस तरह की तमाम जानकारियां बिल्डर द्वारा परियोजना की वेबसाइट पर डालना जरूरी है। विकास प्राधिकरण के वेबसाइट पर भी इन सब जानकारियों का होना आवश्यक है। इन अनिवार्य उद्घोषणाओं को देखते हुए यह उम्मीद की जाती है कि मकानों के खरीदार किसी खास संपत्ति की खरीद करते समय थोड़ी मेहनत करेंगे और अपने निवेश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सोच समझ कर ही कोई फैसला करेंगे।
जहां तक निवेश की सुरक्षा का सवाल है यहां यह बताना भी जरूरी है कि रेरा कानून में डिवेलपरों के लिए कठोर प्रावधान किये गये हैं और उनसे जमीन की कीमत समेत खरीदारों से एकत्र की गयी 70 प्रतिशत राशि को‘एस्क्रो अकाउंट’ में रखने को कहा गया है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि पैसा किसी दूसरे काम में नहीं लगेगा बल्कि उसी परियोजना में खर्च किया जाएगा जिसके लिए इसे इकट्ठा किया गया है। आज अगर बड़ी तादाद में निर्माणाधीन रिहायशी परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं तो इसकी वजह यही है कि डिवेलपर पैसे का नाजायज फायदा उठाते हुए इसे दूसरी परियोजनाओं में लगा देते थे। यहां तक कि ऐसे धन का उपयोग भूमि बैंक कायम करने में भी किया जाता था। लेकिन अब ऐसी परियोजनाओं के लिए उनके पास कोई पैसा नहीं रहेगा।
नये रीअल एस्टेट कानून से खरीदारों को मकानों के क्षेत्रफल को लेकर की जाने वाली हेराफेरी से बचाने में भी मदद मिलेगी। रेरा कानून में सुपर बिल्टअप एरिया के आधार पर संपत्ति की बिक्री पर रोक लगा दी गयी है क्योंकि इसमें संदेह की गुंजाइश बनी रहती थी। खरीदार को यह पता ही नहीं चल पाता था कि उसके मकान में कितनी जगह होगी। अब डिवेलपर के लिए यह जरूरी होगा कि वह सिर्फ कार्पेट एरिया (खरीदार द्वारा वास्तव में उपयोग में लाए जाने वाले क्षेत्रफल) के आधार पर ही संपत्ति की बिक्री करे। इससे खरीदार के लिए स्पष्टता और पारदर्शिता सुनिश्चित कर दी गयी है जिसकी बहुत जरूरत थी।
रीअल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम डिवेलपर्स की धांधलियों के खिलाफ भी एक बड़ा कवच साबित होगा क्योंकि इसमें धोखाधड़ी करने वाले डिवेलपर्स पर भारी जुर्माना लगाने के साथ-साथ कारावास का भी प्रावधान किया गया है। नये कानून के अनुसार अगर किसी परियोजना का प्रमोटर खरीदारों को तयशुदा तारीख तक मकान उपलब्ध नहीं करा पाता तो उसे खरीदार द्वारा निवेश किया गया सारा का सारा पैसा अनुबंध में पहले से तय ब्याज के साथ लौटाना होगा। लेकिन अगर खरीदार मकान लेना ही चाहता है तो बिल्डर को देरी के लिए मकान मिलने तक मासिक आधार पर ब्याज का भुगतान करना होगा। देरी के ऐसे मामलों में अब तक बिल्डर खरीदारों को बहुत मामूली ब्याज देते थे जबकि खरीदार की ओर से भुगतान में चूक होने पर मोटा ब्याज वसूल लेते थे। रेरा कानून के बन जाने से इस तरह की धांधली पर रोक लग गयी है। यही नहीं समय पर मकान न देने पर डिवेलपर को नियमों के उल्लंघन के लिए दंड का भागी होना पड़ेगा। इसी तरह गुणवत्ता ठीक न होने पर भी डिवेलपर को जुर्माना देना होगा। पीडि़त खरीदार रेरा के तहत फास्ट ट्रैक कोर्ट में छह महीने के भीतर अपनी शिकायत का समाधान पा सकता है।
रीअल एस्टेट से जुड़े तमाम पक्ष रेरा कानून को कुल मिलाकर इस क्षेत्र में दूरगामी सुधार लाने वाला कदम मानते हैं। एक जानेमाने प्रोपर्टी कन्सल्टेंट ने इसे रीअल एस्टेट क्षेत्र के तमाम पक्षों को, जिनमें डिवेलपर से लेकर प्रापर्टी के खरीदार तक और निवेशक से लेकर ऋण देने वाली संस्था तक शामिल हैं, प्रभावित कर इस क्षेत्र में आमूल परिवर्तन लाने वाला उपाय बताया है। उन्होंने इसे रीअल एस्टेट की अंधेरी दुनिया में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में की गयी पहल भी कहा है जिससे उपभोक्ताओं का संरक्षण हो सकेगा, जिसकी बड़ी जरूरत थी।
उनके अनुसार अब रीअल एस्टेट क्षेत्र मानकीकृत प्रक्रियाओं और कार्यविधि के दौर में प्रवेश करेगा जिसकी रीअल एस्टेट उद्योग की प्रगति के लिए बड़ी आवश्यकता थी। इंटरनेशनल रीअल एस्टेट फैडरेशन (एफआईएबीसीआई) के अध्यक्ष फारूख महमूद रेरा कानून सहित रीअल एस्टेट क्षेत्र में सरकार की कुछ पहलों को एक ऐसा सकारात्मक कदम बताते हैं जिनसे भारत निवेशकों के लिए और अधिक अनुकूल बनेगा और इससे देश में विदेशी निवेश के द्वार भी खुलेंगे। इस तरह की पहलों में किफायती आवास-निर्माण गतिविधियों को उद्योग का दर्जा दिया जाना, ब्याज के दायरे में आने वाले विदेशी ऋणों के लिए रियायती दर से ब्याज की व्यवस्था और विदेशी निवेशकों को निवेश की न्यूनतम सीमा और रोजगार के अवसरों के आधार पर स्थायी निवासी का दर्जा देना शामिल हैं। नेशनल रीअल एस्टेट डिवेलपमेंट काउंसिल (एनएआरईडीसीओ) के अध्यक्ष प्रवीण जैन का कहना है कि रीअल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने का लक्ष्य रखकर रेरा ने रीअल एस्टेट क्षेत्र के बारे में आम आदमी की धारणा को बदल कर रख दिया है।
रेरा के इन तमाम सार्थक प्रभावों के बावजूद इसके असर को लेकर कुछ चिंताएं भी व्यक्त की गयी हैं। आलोचकों ने इसके समय पर और समुचित तरीके से लागू होने को लेकर संदेह व्यक्त किया है। कुछ राज्यों ने अब तक रेरा के बारे में अधिसूचना जारी नहीं की है और कुछ उपभोक्ता संगठन कुछ राज्यों द्वारा रेरा के प्रावधानों को कमजोर कर दिये जाने की शिकायत कर रहे हैं। लेकिन सरकार इस कानून पर अक्षरश: अमल सुनिश्चित करने को वचनबद्ध है। इसी संदर्भ में पूर्व शहरी विकास मंत्री श्री एम। वेंकैया नायडू ने (जिन्हें इस कानून को पारित कराने का श्रेय भी दिया जा सकता है) राज्यों से रेरा कानून को बिना किसी छेड़छाड़ के समय पर अधिसूचित करने पर जोर दिया है। इसके साथ ही चुनौतीवाला एक और कार्य ठप्प पड़ी आवास परियोजनाओं को फिर से शुरू करने का है। यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे लोगों को अंतत: सिर छिपाने के लिए ठिकाना मिले। इस उद्योग के जानकारों के अनुसार एक ही स्थान पर तमाम मंजूरियां देने की प्रणाली से रेरा कानून को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा जिससे यह अपने वांछित परिणामों को प्राप्त करने में कामयाब रहेगा।