यू तो जिन्दगी सबके इम्तहान लेतीं हैं परन्तु किसी किसी शक्सियत के जिन्दगी आ नियति हर रोज एक नया तुफा,सजाएं रखतीं हैं। एक जंग खत्म तो दुसरी शुरू।ऐसे ही तुफानो में पलने वालीं शक्सियत का नाम है सुमन अर्पण ।जो लोगों के लिए एक आदर्श बन कर लोगों जीवन ज़िंदादिली से जीने की प्रेरणा देती हैं। सुमन जी का बचपन से चुनौतियों भरा था ,बचपन में एक दुर्घटना में उन के टांग को श्रति पहूंचा गया।जिस ने उनके जीवन के मायने ही बदल दिए। उनकी माता इस सदमे को सह नहीं सकी अपनी बेटी के भविष्य की चिंता के दर्द मे दुनिया से चलीं गई।ये उनकी जिन्दगी सबसे बड़ा और गहरा जख्म जो आज भी हरा है। मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी सुमन के मन के कुछ करने का जुनून बचपन से था परन्तु हौसलो को उङान नहीं मिली।आत्मविश्वास की धनी सुमन को अपने ही श्री अध्यापक व प्राध्यापक द्वारा पीडित किया गया। खेलने कूदने,साईकिलग,भाषण, काव्य, शिक्षा, मंच संचालन सब मे अव्वल। कमी थी तो बस इतनी सी की वो मामूली सा लंगड़ा कर चलती थी।
रेडियो स्टेशन पर वक्ता व महिला कॉलेज मे हिन्दीऐच्छिक पढाने का मोका आत्मविश्वास व समाजसेवा को देख कर मिला।सुमन ने कभी स्वयं को विकलांग नहीं माना और न ही कभी इसका प्रमाण पत्र बनवाया। अपने जिद्दी स्वाभाव के कारण उनहोंने अपने कार ट्रेनर को,कार सीख कर गलत साबित दिया। स्कूटी तो बडे भाई ने बचपन में ही सीखा दी पिता अपनी बेटी पर गर्व करते नहीं थकते थे। पर जहाँ शादी हर नारी के जीवन का सबसे सपना होता है वही विवाह सुमन जी जीवन विडम्बना बन गया। जिन्दगी हर रोज उन्हे अंगारे पर चलाती और सब ठीक हो जाएगा की आशा में सुलगती आगे बढती जा रही थी।
पर तकदीर ने कडै इम्तहान का बीड़ा उठाया और एक चांद सी बेटी के रूप में बधिर शहजादी उन की गोद मे आई इससे पहले बेटी की कमी उन्हे पता चलती दुसरी बेटी गोद मे थी।बेटी के जन्म के साथ ही संकल्प लिया कि वह अपनी बेटियों को सबसे पहले छत देंगी। वहीं से उन्हे व्यापार करने की प्रेरणा मिली।पैसे की कमी तो कम होने लगी पर जिन्दगी की उलझनो का ताना बाना कङा हो गया।
यहाँ से जिन्दगी ने एक बार फिर करवट ली। सारा जमाना मुझें गिराने के लिए रोज नॢई साजिशे रचता रहा पर मैने भी हार न मानने की कसम खा ली। तीन बय्चो की परवरिश के साथ खुद की शिक्षा प्रारम्भ की।टयूशन पढाई। बुटीक खोला,केबल ऑपरेटर का काम किया, रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री लगाई। दिवयागो ,महिलाऔ और विधवा को काम देना शुरू किया। एक एन जी औ बनाया। जिसमें जिन्दगी से हारे लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती। परन्तु अपने ससुराल से कभी एक फूटी कौड़ी भी नहीं ली।इस के पश्चात् एस्पोर्ट हाउस की शुरुआत की। वहाँ पर भी विकलांग लोग कार्य करते थे।
नुकसान के चलते एस्पोर्ट हाउस बंद हो गया और उस की जगह कपडे के शौरूम ने ली। जो 13फरवरी 2017 की सीलिंग प्रकिया के चलते सील हो गई। भाजपा नेता होने के बावजूद भी संगठन से कोई समर्थन नहीं मिला। ऐसे में वकालत की जो शिक्षा उनहोंने गरीब व असहाय लोगों के हक की लडाई के लिए ली थी वही उन कीरोजी-रोटी रोटी का का साधन बनी पर संघर्ष अब भी जारी है। उन की संस्था द प्राइड वायस ऑफ राइट महिलाओं के अघिकारो ,सुरक्षा, शिक्षा,सशक्तिकरण, विकलांग जन के हितो के कार्य करतीं हैं। राजनीति मे उन के आने का भी यही मकसद है हताश और निराश को उनका अधिकार दिला सके। जिन्दगी फूलों की सेज तो नहीं परन्तु रोते-बिलखते हुए भाग्य का लिखा नहीं मिटाया जा सकता है अगर भाग्य का लिखा बदलना है तो हौसलो और हिम्मत के साथ बदल जा सकता है। अपने बारे मे वे कहती हैं कि