‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन के तहत आयोजित कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज का 25वां सत्र (यूएनएफसीसीसी सीओपी 25)’ स्पेन के मैड्रिड में सम्पन्न हुआ, जिसमें बेसिक मंत्रिस्तरीय संयुक्त वक्तव्य कुछ इस प्रकार रहा :
· 10 दिसम्बर, 2019 को स्पेन के मैड्रिड में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन के तहत आयोजित कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के 25वें सत्र (यूएनएफसीसीसी सीओपी 25)’ के दौरान ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन के समूह (बेसिक) के मंत्रियों की बैठक हुई। इस बैठक की अध्यक्षता चीन के पारिस्थितिकी और पर्यावरण उप मंत्री श्री झाओ ईंगमिन ने की और इसमें ब्राजील के पर्यावरण मंत्री श्री रिकार्डो सैलेस, दक्षिण अफ्रीका की पर्यावरण, वानिकी एवं मत्स्य पालन मंत्री सुश्री बारबरा क्रीसी और भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन और सूचना व प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी इसमें शिरकत की।
· इस अवसर पर उपस्थित मंत्रियों ने चिली द्वारा सीओपी की अध्यक्षता को अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया, इस बैठक की मेजबानी करने के लिए स्पेन के साम्राज्य का आभार व्यक्त किया और यह बात रेखांकित की कि सीओपी 25 का केन्द्रीय अधिदेश सम्मेलन एवं इसके प्रोटोकॉल के तहत की गई जलवायु संबंधी कार्रवाई के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2020 के बाद की अवधि के दौरान पेरिस समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए विशिष्ट मार्ग तैयार करना है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2020 से पहले के एजेंडे की दिशा में हुई प्रगति को इस सीओपी के लिए सफलता का मानक माना जाएगा।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन के तहत अनुमोदित पेरिस समझौता बहुपक्षवाद के उत्तरोत्तर विकास में एक अहम पड़ाव का प्रतिनिधित्व करता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में कमी लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सामूहिक दृष्टि से प्रयास कर सके, जो एक प्रमुख वैश्विक चिंता है। मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पेरिस समझौते के व्यापक कार्यान्वयन पर फोकस करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यान्वयन सम्मेलन के लक्ष्यों और सिद्धान्तों के अनुसार ही होना चाहिए, जिनमें विभिन्न देशों के हालात को ध्यान में रखते हुए समानता एवं साझा, लेकिन भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धान्त शामिल हैं।
· मंत्रियों ने यह बात रेखांकित की कि सीओपी 25 को विभिन्न परिणामों को हासिल करना चाहिए, जिनका उल्लेख नीचे किया गया हैं :
o पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 से संबंधित वार्ताओं का समापन किया जाए।
o वर्ष 2020 से पहले हुई प्रगति एवं कमियों का आकलन करने के लिए एसबीआई के तहत दो वर्षीय कार्यकलाप कार्यक्रम तय किया जाना चाहिए, ताकि इन कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं की जा सकें।
o विकसित देशों से वित्त मुहैया कराने, प्रौद्योगिकी विकास एवं हस्तांतरण और विकासशील देशों को क्षमता निर्माण संबंधी सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का अनुरोध करना चाहिए।
o पेरिस समझौते के प्रावधानों की व्याख्या करने के साथ-साथ इन्हें सही ढंग से कार्यान्वित करना चाहिए।
· मंत्रियों ने समझौते में उल्लिखित सिद्धान्तों के अनुसार पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 पर चर्चाओं का समापन करने की अहमियत को रेखांकित किया। मंत्रियों ने अनुच्छेद 6.2 और अनुच्छेद 6.4 के तहत की गई व्यवस्थाओं में संतुलन बनाये रखने के महत्व पर विशेष जोर दिया। मंत्रियों ने अनुच्छेद 6.2 और अनुच्छेद 6.4 दोनों ही के तहत धनराशि को एकत्रित करने पर भी विशेष बल दिया।
· मंत्रियों ने यह बात दोहराई कि सबसे पहले संबंधित पक्षों की प्रतिबद्धताओं पर अमल के जरिये उनकी महत्वाकांक्षा का आकलन किया जाता है। वर्ष 2020 से पहले की अवधि के दौरान विकसित देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं पर अमल किया जाना चाहिए, क्योंकि वर्ष 2020 के बाद की अवधि में पारस्परिक विश्वास एवं महत्वाकांक्षा हेतु आवश्यक आधार बनाने के लिए वर्ष 2020 से पहले के एजेंडे का पूरा होना अत्यंत जरूरी है।
· मंत्रियों ने यह बात रेखांकित की कि सम्मेलन के तहत दीर्घकालिक वैश्विक लक्ष्य की समय-समय पर समीक्षा एक विशिष्ट व्यवस्था के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने वाले एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय फोरम के रूप में इस सम्मेलन की पुष्टि करती है।
· मंत्रियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बेसिक देश अपने यहां के राष्ट्रीय हालात को ध्यान में रखते हुए जलवायु परिवर्तन से जुड़े महत्वाकांक्षी उपायों पर अमल कर रहे हैं और इसके साथ ही इन देशों ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के प्रयासों में अहम योगदान मिल रहा है। वर्ष 2018 में चीन ने प्रति यूनिट जीडीपी के लिहाज से कार्बन-डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन में वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में 45.8 प्रतिशत की कमी की है और इसके साथ ही प्राथमिक ऊर्जा खपत में गैर-जीवाश्म ईंधनों की हिस्सेदारी बढ़ाकर 14.3 प्रतिशत कर दी है।
इसी तरह दक्षिण अफ्रीका ने हाल ही में कार्बन टैक्स लगाया है और अपनी नवीनतम विद्युत योजना के तहत एक व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम की घोषणा की है। भारत पहले ही वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2014 में जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 21 प्रतिशत की कमी दर्ज कर चुका है। इस तरह भारत ने वर्ष 2020 से पहले के अपने स्वैच्छिक लक्ष्य को हासिल कर लिया है। ‘बेसिक देश’ पहले ही जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अपनी नीतियां और योगदान तय कर चुके है, जो हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों से इतर हमारी सर्वाधिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। अब अगले वर्ष या उसके बाद नहीं, बल्कि जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने का वक्त आ गया है।