कर्नाटक में 104 सीटों वाली बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए सात विधायकों का जुगाड़ और करना है जिसके लिए राज्यपाल ने बीजेपी को 15 दिन दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने इसे घटाकर एक दिन कर दिया. बीजेपी को आज विधानसभा में इसे साबित करना है. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर वो 7 विधायक बीजेपी कहां से लाएगी और कैसे कर्नाटक में अपनी सरकार और साख बचाएगी? कर्नाटक में 224 में से 222 सीटों पर वोटिंग हुई थी. जेडीएस के कुमारस्वामी 2 सीटों से जीते हैं इसलिए कुल विधायकों की संख्या 221 हुई. इस तरह बहुमत का आंकड़ा 111 हुआ. बीजेपी के पास 104 विधायक हैं. जबकि कांग्रेस के पास 78 और जेडीएस के पास 37 विधायक हैं. इसके अलावा दो निर्दलीय विधायक भी हैं. ऐसे में अब येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए सात विधायकों की जरूरत और है और इस स्थिति में येदियुरप्पा के पास चार विकल्प हो सकते हैं. पहला विकल्प ये है- बीजेपी कांग्रेस और जेडीएस के 14 विधायकों का इस्तीफा दिलवा दे. इस हालत में सदन के सदस्यों की कुल संख्या 221 से 207 हो जाएगी और इस आंकड़े पर बीजेपी की 104 सीटें ही बहुमत के लिए काफी होंगी. दूसरा विकल्पः बीजेपी के कहने पर कांग्रेस और जेडीएस के 14 विधायक वोटिंग के दौरान सदन में अनुपस्थित रहें. तब भी बीजेपी 104 सीटों के साथ ही बहुमत हासिल कर लेगी. तीसरा विकल्पः कांग्रेस और जेडीएस के सात विधायक बीजेपी के पक्ष में वोटिंग कर दें. इस स्थिति में भले ही उन विधायकों की सदस्यता चली जाए लेकिन बीजेपी 111 वोट के साथ बहुमत हासिल कर लेगी. चौथा विकल्पः बीजेपी अगर कांग्रेस और जेडीएस के दो तिहाई विधायकों को तोड़ ले जाने में कामयाब हो जाती है तो वो दल-बदल कानून से बच जाएगी. इसके लिए कांग्रेस के 52 और जेडीएस के 26 विधायकों को राजी करना होगा आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राज्यपाल वजुभाई वाला की ओर से येदियुरप्पा सरकार को बहुमत साबित करने के लिए दिए गए 15 दिन की अवधि को घटाकर शनिवार शाम 4 बजे तक कर दिया और आदेश दिया कि फ्लोर टेस्ट का काम शाम तक पूरा करा लिया जाए. अमूमन राज्यपाल राज्य में सरकार बनाने वाली पार्टी को बहुमत साबित करने की बात तब कहते हैं जब उन्हें पता हो कि सरकार बनाने वाली पार्टी के पास पर्याप्त बहुमत नहीं हो. फ्लोर टेस्ट के जरिए यह फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार या मुख्यमंत्री के पास पर्याप्त बहुमत है या नहीं. चुने हुए विधायक अपने मत के जरिए सरकार के भविष्य का फैसला करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया प्रोटेम स्पीकर की निगरानी में आयोजित की जाए. साथ ही वह फ्लोर टेस्ट से संबंधित सभी फैसले भी लेंगे. हालांकि कांग्रेस और जेडीएस विधायक केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बनाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ लेने के बाद प्रोटेम स्पीकर के पास दो विकल्प होंगे. पहला यह कि फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला लें और बहुमत के लिए वोटिंग कराने का निर्देश दें. या फिर वो पहले सदन के स्पीकर को निर्वाचित करें. वोटिंग होने की सूरत में पहले विधायकों की ओर से ध्वनि मत लिया जाएगा. इसके बाद कोरम बेल बजेगी. फिर सदन में मौजूद सभी विधायकों को पक्ष और विपक्ष में बंटने को कहा जाएगा. विधायक सदन में बने हां या नहीं वाले लॉबी की ओर रुख करते हैं. इसके बाद पक्ष-विपक्ष में बंटे विधायकों की गिनती की जाएगी. फिर स्पीकर परिणाम की घोषणा करेंगे.