व्यवसाय के क्षेत्र
1. दीर्घावधि ऋण को बढ़ाने पर नाबार्ड के बल देने के कारण इस वर्ष बेहतर वृद्धि हासिल हुई और बकाया पुनर्वित्त 17% बढ़कर रु.1,22,688 करोड़ हो गया.
2. 2017-18 के दौरान रु.10.00 लाख करोड़ के लक्ष्य के समक्ष 28 फरवरी 2018 की स्थिति के अनुसार वास्तविक कृषि ऋण प्रवाह रु.10.46 लाख करोड़ रहा (अनंतिम आंकड़े – सावधि ऋण रु.3,69,624 करोड़; फसल ऋण – रु.6,76,653 करोड़) रहा. नाबार्ड के पुनर्वित्त ने आधार स्तरीय ऋण प्रवाह के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभाई. नाबार्ड का कुल पुनर्वित्त संवितरण रु.1,45,061 करोड़ (दीर्घावधि : रु. 65,240 करोड़ + अल्पावधि : रु.79,821 करोड़) कुल आधार स्तरीय ऋण का लगभग 14% रहा. क्षेग्रा बैंकों और सहकारी बैंकों के मामले में पुनर्वित्त उनके कुल संवितरण का लगभग 55% रहा.
3. नाबार्ड के ग्राहक आधार में विविधीकरण इस वर्ष की उल्लेखनीय उपलब्धि है. लघु वित्त बैंकों को रु.3900 करोड़ और एनबीएफसी/ एनबीएफसी-एमएफआई को रु.2794 करोड़ का ऋण संवितरण किया गया.
4.ग्रामीण भारत के विकास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह रही कि अनेक प्रकार की ग्रामीण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का वित्तपोषण किया गया. पिछले चार वर्षों में हमने ग्रामीण भारत के बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में अपनी भूमिका स्थापित की है. वर्ष के दौरान, आरआईडीएफ और एलटीआईएफ के अंतर्गत बकाया ऋण रु.1,30,509 करोड़ पहुंच गया. साथ ही, नाबार्ड ने ग्रामीण इलाकों के लाभ के लिए प्रत्यक्ष आधारभूत सुविधा ऋण उपलब्ध कराने में भी उल्लेखनीय सफलता पाई. नाबार्ड आधारभूत सुविधा विकास सहायता (नीडा) के अंतर्गत बकाया ऋण पिछले वर्ष के रु.4948 करोड़ से बढ़कर रु.7,242 करोड़ पहुंच गया. भंडारागारों के वित्तपोषण के लिए बकाया ऋण रु.4,296 करोड़ रहा, जबकि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बकाया ऋण रु.239 करोड़ रहा. नाबार्ड में स्थापित खाद्य प्रसंस्करण निधि से ग्यारह मेगा फूड पार्कों, एक समन्वित फूड पार्क और 3 एकल खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को मंजूरी दी गई.
6.नाबार्ड ने राष्ट्रीय ग्रामीण आधारभूत सुविधा विकास प्राधिकरण (एनआरआईडीए) को रु.9,000 करोड़ के ऋण के माध्यम से प्रधान मंत्री आवास योजना – ग्रामीण (पीएमएवाई – जी) को सहायता दी. वर्ष 2017-18 के दौरान रु.7,329 करोड़ की सहायता ली गई.
इ.वर्ष के दौरान नाबार्ड द्वारा किए गए विकासात्मक कार्य
1. वित्तीय समावेशन और नाबार्ड : वर्ष 2017-18 के दौरान डिजिटल बैंकिंग अपनाने के क्षेत्र में सहकारी बैंकों ने उल्लेखनीय प्रगति की. 31 मार्च 2018 की स्थिति के अनुसार नाबार्ड के सहयोग से 350 सहकारी बैंक रुपे किसान कार्ड (आरकेसी) प्लेटफार्म पर आ गए. इन बैंकों ने इस अवधि में 1.76 करोड़ आरकेसी जारी किए. वित्तीय वर्ष 2017-18 में क्षेग्रा बैंकों द्वारा जारी आरकेसी की संख्या 1.13 करोड़ हो गई.
वर्ष 2017-18 में, नाबार्ड ने विविध पहलों के लिए वित्तीय समावेशन निधि के अंतर्गत रु.293.79 करोड़ खर्च किए जैसे वित्तीय साक्षरता शिविर, एटीएम वैन के जरिए बैंकिंग प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन, वित्तीय साक्षरता केन्द्र और अन्य विविध प्रकार की क्षमता निर्माण परियोजनाएं.
2.स्वयं सहायता समूह आंदोलन के भविष्य के रूप में ई-शक्ति के माध्यम से डिजिटाइजेशन : समूहों के डिजिटाइजेशन की ई-शक्ति परियोजना आज कुल 100 जिलों में कार्यान्वित की जा रही है. 31 मार्च 2018 की स्थिति के अनुसार 54,600 गांवों के 3.5 लाख स्वयं सहायता समूहों को डिजिटाइज़ किया जा चुका है और इस तरह 38 लाख परिवार इसमें शामिल हो चुके हैं.
3.वर्ष 2017-18 के दौरान सूक्ष्म वित्त के क्षेत्र में प्रगति जारी रही. उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि इस कार्यक्रम में 88.78 लाख स्वयं सहायता समूह शामिल हैं. वर्ष के दौरान, वित्तपोषित समूहों की अनुमानित संख्या लगभग 28 लाख है, जिन्हें वर्ष के दौरान रु.47,000 करोड़ की राशि ऋण के रूप में दी गई. संयुक्त देयता समूहों की संख्या 22.22 लाख तक पहुंच जाना भी उत्साहवर्धक है. वर्ष 2017-18 के दौरान 6.50 लाख संयुक्त देयता समूहों को रु.6,514 करोड़ की राशि ऋण के रूप में दी गई.
4.वर्ष के दौरान हरित पहलें : इस क्षेत्र में नाबार्ड के कार्यों को भारी बल मिला जब यूएनएफसीसीसी के अंतर्गत एडाप्टेशन फंड के लिए नाबार्ड को 2022 तक के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयन एन्टीटी (एनआईई) के रूप में पुन: मान्यता दी गई. नाबार्ड द्वारा जीसीएफ, एएफ और एनएससीसीसी जैसे विविध निधीयन तंत्रों के अंतर्गत रु.1593 करोड़ की अनुदान सहायता के साथ 35 परियोजनाएं मंजूर की गईं जो पंजाब और हरियाणा में अवशिष्ट फसल प्रबंधन, छतों पर सौर ऊर्जा और भूमिगत जल स्रोत की बहाली और सौर पंपिंग प्रणाली जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से जुड़ी हैं.
5.नाबार्ड ने अपने वाटरशेड विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 5.16 लाख किसानों की आजीविका और अपने वाड़ी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 3.66 लाख आदिवासी परिवारों की आजीविका में सुधार लाने में सफलता पाई. ये 2290 परियोजनाएं 28 राज्यों में अवस्थित हैं. नाबार्ड द्वारा विभिन्न वाटरशेड कार्यक्रमों के अंतर्गत अब तक रु.1,641 करोड़ और वाड़ी कार्यक्रम के अंतर्गत रु.1,462 करोड़ की संचयी अनुदान सहायता जारी की गई हैं.
6.कृषक समूह : नाबार्ड वर्ष के दौरान कृषक उत्पादक संगठनों की स्थापना के अपने कार्यक्रम को लेकर आगे बढ़ता रहा. भारत सरकार की प्रोड्यूस निधि के अंतर्गत संचयी रूप से 2154 कृषक उत्पादक संगठनों को मंजूरी दी गई है जिनमें से 31 मार्च 2018 तक 2,040 कृषक उत्पादक संगठन पंजीकृत किए जा चुके हैं. इसके साथ ही, नाबार्ड ने भी 3,000 कृषक उत्पादक संगठनों के गठन का लक्ष्य अपने लिए रखा था जिसमें से 1,850 कृषक उत्पादक संगठन गठित किए जा चुके हैं. एक अलग तरह की पहल के रूप में, नाबार्ड ने “कृषक सारथी” की स्थापना की जो कृषक क्लबों के डिजिटाइजेशन के लिए एक पोर्टल है जो किसानों के डाटाबेस के डिजिटल डाटाबेस की सुविधा प्रदान करता है और उनका दीर्घावधि स्थायित्व सुनिश्चित करता है