पुर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. लेफ्ट के दुर्ग की सियासी जंग को बीजेपी हर हाल में जीतने की कवायद में है. इसी मद्देनजर किताब को भी वो एक सियासी हथियार को तौर पर इस्तेमाल कर रही है. ‘माणिक सरकार-दृश्यम और सत्यम’ नाम की किताब के जरिए सीएम मणिक सरकार पर बीजेपी सीधे हमला कर रही है.
मराठी में लिखी ‘माणिक सरकार-दृश्यम और सत्यम’ किताब का अब हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है. बीजेपी के महासचिव राम माधव ने कहा कि इस किताब के जरिए त्रिपुरा की सच्चाई देश के सामने आएगी. उन्होंने कहा कि माणिक सरकार की जो छवि बनाई गई है, वो सिर्फ छलावा है.
बीजेपी के रणनीतिकार इस किताब को मणिक सरकार के इमेज पर हमला करने के लिए सबसे बड़े हथियार मान कर चल रहे हैं. उन्हें लगता है कि इस किताब के जरिए लेफ्ट के दुर्ग में सेंधमारी की जा सकती है.
किताब में त्रिपुरा की राज्यव्यवस्था पर लिखी गई है. इसमें में माणिक सरकार पर सवाल खड़े किए गए हैं. इसमें कानून व्यवस्था से लेकर चुनाव में बूथ कैप्चरिंग का आरोप लगाए गए हैं. ऐसे में बीजेपी इस किताब की बातों को राज्य के चुनाव में जिक्र करेगी.
1978 के बाद सिर्फ एक बार लेफ्ट हारा
गौरतलब है कि 1978 के बाद से वाममोर्चा सिर्फ एक बार 1988-93 के दौरान राज्य के सत्ता से दूर रहा था. बाकी सभी विधानसभा चुनाव में लेफ्ट का कब्जा रहा है. 1998 से लगातार त्रिपुरा में 3 बार से सीपीएम के मुख्यमंत्री माणिक सरकार के सामने इस बार बीजेपी एक बड़ी चुनौती बनी है. राज्य में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा है. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट के क्षेत्रों पर फोकस किया है. इसके अलावा आरएसएस लगातार पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में सक्रिय है.
त्रिपुरा का सियासी समीकरण
बता दें कि त्रिपुरा के 2013 विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 60 सीटों में से वाममोर्चा ने 50 सीटें जीती थी, जिनमें से CPM को 49 और CPI को 1 सीट. जबकि कांग्रेस को 10 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था, लेकिन तीन साल के बाद 2016 में कांग्रेस के 6 विधायकों ने ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ज्वाइन कर लिया था. लेकिन ये छह विधायक टीएमसी में भी नहीं रह सके और सभी 6 विधायकों ने अगस्त 2017 में बीजेपी ज्वाइन कर लिया.
कांग्रेस का घटा बीजेपी का ग्राफ बढ़ा
त्रिपुरा में 3 बार के सीपीएम मुख्यमंत्री माणिक सरकार को चुनौती मिलना मुश्किल ही लगता है. बीजेपी ने 2013 चुनावों के 2 फीसदी वोट शेयर को बढ़ाकर 2014 में 6 फीसदी कर लिया था. हालांकि इस दौरान कांग्रेस 37 से घटकर 15 फीसदी पर पहुंच गई. त्रिपुरा विधानसभा की 60 सीटों में से 20 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.
लेफ्ट की सबसे बड़ी जीत
1978 के बाद वाम मोर्चा ने सबसे बेहतर जीत हासिल किया था. राज्य की 60 सीटों में से 56 पर जीत हासिल की थी. 1978 जैसा करिश्माई परिणाम लेफ्ट दोबारा नहीं दोहरा सकी है. माणिक सरकार ने ईमानदारी के बल पर 2013 के विधानसभा चुनाव में उतरे और उन्होंने 2008 के तुलना में एक सीट ज्यादा दर्ज करते हुए 50 सीटों का आंकड़ा छुआ था.