•हिन्दी नई दिशा की ओर••

साहित्यकार
रंजना झा
कौशाम्बी ( गाज़ियाबाद )
उत्तर प्रदेश

स्वतंत्र भारत में हिन्दी का प्रचार प्रसार दिनों दिन बढ़ता जा रहा है  सरकारी काम काज के अधिकाधिक प्रयोग के संबंध में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों,विभागों द्वारा काम किए जा रहे हैं  कार्यक्रमों का समन्वय करने और नीति संबंधी दिशा निर्देश देने वाली हिन्दी सलाहकार समिति  सर्वोच्च समिति  है।
                 भारत सरकार द्वारा विभिन्न संस्थानों में हिन्दी भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित कर उसका मान और यश बढ़ा है।हमारे देश में हिन्दी का विकास सरकारी, गैर सरकारी,सभी जगहों पर हिन्दी के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की है यहाँ तक कि फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों की भी कमाई हिन्दी भाषा के जरिए ही होती है।
अब देश में हिन्दी के प्रति जागरूकता बढ़ी है। प्रिंट मीडिया ,इलाॅक्ट्रनिक मीडिया या अन्य आधुनिक तकनीक से निर्मित सभी तरह से हिन्दी को राष्ट्र की उन्नति का मूल समझ कर इसका  विकास हुआ है ।
महात्मा गांधी गुजराती होते हुए भी राष्ट्रीय और समाज सुधार की अपनी भाव धारा को हिन्दी के द्वारा ही सारे देश में फैलाया था।बाल गंगाधर तिलक ने मराठी होकर भी (1920)  बनारस में हिन्दी में भाषण दिया था उनके यह विचार वास्तव में हिन्दी के व्यापकता का सुपुस्ष्ट प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।उन्होंने कहा था कि मेरी समझ में  हिन्दी भारत की सामान्य भाषा होनी चाहिए। जब एक प्रांत से दूसरे प्रांत मिले तो आपस में विचार विनिमय का माध्यम हिन्दी ही होनी चाहिए।
  आज दक्षिण के चारों राज्यों में हिन्दी का जो सफल लेखन , पठन, और अध्यापन हो रहा है उसमें भी राष्ट्र पिता महात्मा गांधी द्वारा स्थापित “दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा “और “राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा” जैसी अनेक संस्थाओं का अत्यधिक योगदान है।इसी प्रकार उड़ीसा, असम, तथा मेघालय में भी हिन्दी का व्यापक प्रचार तथा प्रसार परिलक्षित होता है ।
दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा सीखने के प्रति जागरूकता बढ़ी रही है। दक्षिण भारत में हिन्दी का श्रेय दो वर्गो को देना चाहूँगी जिसमें दक्षिण भारतीय प्रचारिणी सभा का मुख्य योगदान रहा है।दक्षिण भारत में वहाँ के लेखकों के अतिरिक्त उतरी क्षेत्र से संबंधित अनेक लेखक और पत्रकार “दक्षिण भारतीय  हिन्दी  प्रचारिणी” सभा से जुड़े हुए हैं। डा• मंगल प्रसाद जी जो कर्नाटक हिन्दी अकादमी की ओर से “भाषा स्पंदन  नामक पत्रिका का संपादन  कर रहे हैं और ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी के तो निबंध बंगलौर विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठयक्रमों में पढ़ाए जा रहे हैं।
राजनीतिक क्षेत्र में हिन्दी को वैश्विक स्तर पर सम्मान मिल रहा है।हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त होने के कारण विदेशों में विदेशी सांसदों  द्वारा दिए जाने वाले भाषण उनकी आम  भाषा में होने पर भी वहाँ पर उपस्थित नेतागण अपनी भाषा में सुन सकते हैं।अतः विदेशों में सम्पर्क की भाषा हिन्दी अपनी जड़  पकड़ती जा रही है। हिन्दी भाषा ने राजनीतिक क्षेत्र में लोकप्रियता एंव व्यवहारिकता हासिल की है प्रशासन और संसदीय क्षेत्र में विदेशी नेता जो भारतीय सांसद  है उनके द्वारा दिये जाने वाले भाषण को हिन्दी में अनुवाद केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरों के कार्यरत अधिकारियों से करवाया जाता है।
इसी के परिणाम स्वरूप आज हिन्दी पूरे भारत में मान सम्मान के साथ बोली जाती है। आज हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा के पद पर विराजमान है। सारे  देश में  ऐसा कोई कोना नहीं है जहाँ कोई हिन्दी जानता न हो।पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण तक सारे छोटे-बड़े शहरों में सिर्फ बोली ही नहीं जाती बल्कि सीखी और सिखाई भी जाती है ।भारत के सभी स्कूलों में हिन्दी अनिवार्य है।इसके बिना कोई भी परीक्षा पास होने की गुंजाइश नहीं है ।आज भारत के किसी प्रदेश में हम जा सकते हैं वहाँ गुजारा कर सकते हैं! अब स्थानीय भाषा की  समस्या नहीं हैं।
यह सच है कि हिन्दी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की भाषा है।विश्व में बोली जाने वाली  तीसरे नम्बर की भाषा है। आज विश्व में हिन्दी भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। जिन जिन देशों में  भारतीय मूल के लोग ज्यादा  मात्रा में रहते हैं वहाँ हिन्दी का प्रचार प्रसार हो रहा हैं।
      विदेशों में आर्य समाज का प्रचार करने हेतु जो प्रचारक गए थे “सत्यार्थ प्रकाश” को लेकर गए थे।
यह मूल रूप से हिन्दी में ही है।उन प्रचारकों ने विश्व के उन देशों में आर्य समाज की स्थापना की और हिन्दी का प्रचार प्रसार किया। हिन्दी को पढ़ने -पढ़ाने के लिए उन लोगों ने उस भाषा में पुस्तक भी तैयार की। विदेशों में हिन्दी भेजने का  श्रेय आर्य समाज  को भी हैं ।विश्व हिन्दू परिषद भी हिन्दी का प्रचारक विदेशों में कर रही है।भारतीय संस्कृति का प्रचार -प्रसार करने वाले अनेक संगठन विदेशों में गए और उन्होंने संत,महात्माओं,के भजन,कीर्तन हिन्दी में गाया संत कवियों की अध्यात्मिक अनुभूतियों को हिन्दी में कहने के कारण हिंदी भाषा का एक ऐसा माध्यम है।
भाषा मात्र मानव समुदाय को प्राप्त अनुभूतियों  की देन है।
वह भावों की ओर विचारों की वाहिनी है अज्ञात काल से संचित ज्ञान का भण्डार है।विशेषत: काव्य कला की वह रीढ़ की हड्डी है।भाषा वह फलक है जिसमें एक समाज की संस्कृति एंव संस्कारों का चित्र,अगली पीढ़ी के लिए स्पष्ट रूप से अंकित है।
अंत में यह बता दूँ कि हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा है और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्र भाषा है जो हिन्दी है। 14 सिस्तम्बर  1947 को हिन्दी भाषा भारत की राष्ट्रभाषा  घोषित की गयी। 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान बना और हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
      फीजी, सूरीनाम, मारिशस,  ग्यान, मलेशिया, की अधिकतर और नेपाल में कुछ लोग हिन्दी बोलते हैं   हिन्दी राष्ट्र भाषा, राजभाषा, जनभाषा, सम्पर्क भाषा के सोपानों को पार कर विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है।